कलाकृतियां बनाने में करते थे सूक्ष्म पाषाण औजार ‘माइक्रोलिथ टूल’ का प्रयोग
तेलांगना के मल्लापुर में पाए शैलचित्र के समान इस्को आर्ट में मिली आकृति
Amarnath Pathak
Hazaribagh : हजारीबाग जिला मुख्यालय से करीब 48 किलोमीटर दूर इस्को रॉक आर्ट पर जंगली पशुओं, कछुआ, मानव और सूर्य की आकृतियां मिली हैं. इन शैलचित्रों में छोटे-बड़े सूर्य की कई आकृतियां मिली हैं. लेकिन इनमें एक आकृति स्पष्ट और काफी बड़ा है. सूर्य की आकृति के मध्य में एक गोला बनाकर शक्तिपुंज को उभारा गया है. बाहर वाले वृत्त के ऊपर कुल 29 रेखाओं के माध्यम से सूर्य की किरणों की प्रखरता को इस चित्र में दर्शाया गया है. पुरातत्वविद इससे अंदाजा लगा रहे हैं कि प्रारंभिक मानवों के तीन काल के चरणों में मुंडा और उरांव जनजाति के लोग सूर्य के उपासक थे.
यह आकृति विनोबाभावे विश्वविद्यालय में मानव विज्ञान के प्राध्यापक डॉ. गंगानाथ झा को शोध के दौरान अध्ययन में मिला है. यह पहला एथनो आर्कियोलॉजिकल (नृजाति पुरातात्विक) शोध में खुलासा हुआ है. इस पर उन्होंने कलाकल्प जर्नल में रिपोर्ट भी पेश प्रस्तुत किया है.
डॉ गंगानाथ झा ने ‘शुभम संदेश’ को खास बातचीत में बताया कि इस्को के शैलचित्रों में मानव का एक चित्र है. इसकी दाहिनी ओर कमर के पास दो संकेंद्रीय वृत्त (एक बड़े वृत्त के अंदर दो छोटे वृत्त) बनाए गए हैं. बड़े वृत्त के साथ ही छोटे वृत्त से भी प्रकाशपुंज निकलने के संकेत और किरण जैसी रेखा खींचकर स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है. मानव के चित्र में दोनों पैरों के नीचे एक छोटे बच्चे की आकृति बनी हुई है. यह संभवत: मानव के जन्म लेने या देने की स्थिति को दर्शाता है.
इस्को के मानव तैलचित्रों के समान ही तेलांगना के मल्लापुर में मानव के शैलचित्र पाए गए हैं. डॉ गंगाधर झा ने बताया कि इस्को गांव के शैलचित्र एक शैलाश्रय के अंदर बना हुआ है. इस्को शैलाश्रय में विभिन्न प्रकार की चित्रकारी के लिए कई रंगों का प्रयोग किया गया है.
इन शैलचित्रों में तीन कछुए की भी आकृतियां मिली हैं. इनमें एक कछुआ छोटा और एक मध्यम आकार की है. डॉ. झा कहते हैं कि यह प्रजनन एवं वंश वृद्धि का प्रतीक है. शैलचित्रों पर उजले रंग से हिरण की आकृति भी उकेरी गई है. उसे पूरब से पश्चिम दिशा की ओर छलांग लगाते दिखाया गया है. वहीं सामने मानव की आकृति भी है, जिसका एक हाथ हिरण की ओर दिखाया गया है. इससे प्रतीत होता है कि उस वक्त के प्राचीन मानव हिरण का शिकार करते थे और हिरण बचने के लिए भाग रहा है.
गंगानाथ झा ने बताया कि प्राचीन मानव कलाकृतियां बनाने में सूक्ष्म पाषाण औजार ‘माइक्रोलिथटूल’ का प्रयोग करते थे. ऐसे कई औजार भी इस्को गांव में मिले हैं. यहां की लिपि उस नवपाषाणकाल की है, जब मानव को भाषाई लिखावट का ज्ञान नहीं था.