LAGATAR DESK : साल 2013 में मणिपुर में एक समलैंगिक युवक की कथित ऑनर किलिंग पर फिल्म “वननेस” बनी है. 2019 में खुद समलैंगिक बनकर सामने आए लैशराम का कहना है कि यह फिल्म 2013 में मणिपुर में एक समलैंगिक युवक की कथित ऑनर किलिंग पर आधारित है.
प्रियकांत लैशराम सिर्फ 11 साल के थे जब उन्होंने अपने नोकिया फोन पर अपनी पहली शॉर्ट फिल्म बनाई थी. अब 24 की उम्र में कई डॉक्यूमेंट्री-फीचर्स और शॉर्ट फिल्मों के साथ, लैशराम का नवीनतम उद्यम मणिपुर की पहली समलैंगिक कथानक पर आधारित फिल्म होगी. इसका ट्रेलर पिछले हफ्ते जारी किया गया था. फीचर फिल्म, “वननेस” इस साल के अंत में रिलीज होगी.
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कथित ऑनर किलिंग पर आधारित है फिल्म
लैशराम का कहना है कि यह फिल्म 2013 में मणिपुर में एक समलैंगिक युवक की कथित ऑनर किलिंग पर आधारित है. उनका कहना है कि उन्हें इस घटना के बारे में 2020 में शुरू हुए यू ट्यूब टॉक शो के माध्यम से पता चला. कोरोना महामारी के समय पहले लॉकडाउन में वह चंडीगढ़ के कॉलेज से इंफाल लौटे थे. बता दे कि टॉक शो, “अप क्लोज विद प्रियकांता लैशराम” विभिन्न सामाजिक मुद्दों को उठाता है, जिसमें लिंग और एलजीबीटीक्यू समुदाय से संबंधित मुद्दे शामिल हैं.
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पीड़ित के चचेरे भाई ने संपर्क किया
लैशराम का कहना है कि मेरा शो सुनने के बाद, पीड़िता के चचेरे भाई ने मुझसे संपर्क किया. उसने मुझे बताया कि उसका भाई, जो एक आदिवासी समुदाय से है, एक मैतेई लड़के के साथ रिश्ते में था. वह 18 साल का था, जबकि उसका मैतेई बॉयफ्रेंड उस समय 21 साल का था. पीड़िता के परिवार को उसकी सेक्सुअलिटी के बारे में तब पता चला जब पुलिस की छापेमारी के दौरान इस जोड़े को एक होटल के कमरे में पकड़ा गया. जबकि उन्हें अपनी मां और बहन का समर्थन प्राप्त था, उनके पिता और बड़े भाई बहुत धार्मिक थे. लैशराम के अनुसार, दोनों लड़कों का धर्मांतरण उनके परिवारों द्वारा चिकित्सा के क्रम मे किया गया था. पीड़ित के चचेरे भाई ने लैशराम को बताया कि लड़के को बपतिस्मा देने के प्रयास में भूत भगाने के नाम पर पानी में डुबा दिया गया था. लैशराम का कहना है कि पीड़ित ने एक पत्रिका में जो कुछ हुआ था, उसका विस्तृत विवरण रखा, जो फिल्म का आधार बना.
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दोनों प्रेमी कई माह के बाद एक-दूसरे के संपर्क में आए
लैशराम के मुताबिक, दोनों प्रेमी कई महीनों के बाद एक-दूसरे के संपर्क में आए. पीड़ित का बड़ा भाई उस पर कड़ी निगरानी रख रहा था. उसने सारी जानकारी हासिल कर ली. एक रात पीड़ित के घर आने के बाद भाई ने उसके दूध में ब्लीचिंग पाउडर और अमोनिया मिला दिया. उसकी मौत हो गई. कोई मामला दर्ज नहीं किया गया और इसे आत्महत्या माना गया था
लैशराम के अनुसार जब उन्होनें फिल्म की घोषणा की, तो उन्हें पीड़ित के समुदाय से धमकियां मिलीं. इसके बाद मैंने चरित्र का नाम बदल दिया, और मार्टिन को उनके उपनाम के रूप में चुना. यह सब बहुत सावधानी से शोध के बाद किया, ताकि किसी भी समुदाय की भावनाओं को ठेस न पहुंचे. मार्टिन एक ऐसा नाम नहीं है जिसका आमतौर पर इस्तेमाल किया जाता है . लैशराम कहते हैं कि यह पहली बार नहीं था, जब उनके काम के लिए धमकियां मिली हों. बताया कि 2018 में जब उन्होंने पुरुष कामुकता और बाल यौन शोषण पर एक लघु फिल्म जारी की, तो चार अलग-अलग विद्रोही समूहों से धमकी भरे फोन आए. उन्होंने बताया कि मणिपुरी सिनेमा विद्रोही समूहों के फरमानों से घिरा हुआ है जो नैतिक पुलिस के रूप में कार्य करते हैं. 2002 में, मैतेई केंद्रित घाटी समूहों ने राज्य में हिंदी फिल्मों पर प्रतिबंध लगा दिया.
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मणिपुरी सिनेमा पर प्रतिबंध लगाए गए थे
इंफाल शहर में मणिपुरी सिनेमा पर प्रतिबंध लगाए गए थे. फरमान जारी किया गये थे कि मुख्य पात्रों को पारंपरिक कपड़े पहनने होंगे. फिल्म की कहानी पारंपरिक होनी चाहिए. स्वप्न दृश्यों और कल्पनाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. यह सिर्फ फिल्मों पर ही नहीं, बल्कि म्यूजिक वीडियो पर भी लागू था. चाहे वह रॉक हो या शास्त्रीय या पॉप संगीत, महिलाओं को अनिवार्य रूप से फानेक्स (मणिपुरी पारंपरिक कपड़े) पहनना पड़ता है, और किसी अन्य कपड़ों की अनुमति नहीं है.
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अभिनेता की तलाश में आठ महीने बिताए
लैशराम ने बताया कि उन्होंने मुख्य भूमिका निभाने के लिए सिर्फ एक अभिनेता की तलाश में आठ महीने बिताए. लगभग हर अभिनेता ने ना कर दी, क्योंकि यह एक समलैंगिक व्यक्ति की भूमिका थी. मुझे बॉयफ्रेंड की भूमिका निभाने के लिए एक अभिनेता मिला, मुझे फिल्म में पीड़ित का किरदार खुद ही निभाना पड़ा. बता दें कि लैशराम ने फिल्म का निर्माण,निर्देशन, संपादन खुद ही किया. यह फिल्में बनाने के माध्यम से था कि उन्होंने खुद को स्वीकार करने की प्रक्रिया शुरू की, “मणिपुरी समाज समलैंगिकता को नहीं समझता है। इसलिए यह फिल्म इतनी महत्वपूर्ण है.
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