Soumita Roy
आज का सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस बार का बजट किसके लिए था? आम जनता के लिए, या मोदीजी के दोस्त कॉरपोरेट्स के लिए? वित्त मंत्री ने बजट को अगले 25 साल की बुनियाद बताया है. क्या यह मान लें कि भारत की आज़ादी के 100वें साल में लोग ही ख़त्म हो जाएंगे?
एक ऐसे देश में जहां 5.3 करोड़ बेरोजगार बैठे हैं, 60% श्रम शक्ति के पास काम नहीं है, उपभोग 40 साल में सबसे कम है, 23 करोड़ लोग ग़रीबी के गर्त में डूब चुके हैं और भारतीय रुपया एशिया की सबसे निम्न मुद्रा बन चुकी है- बजट में मानवीय दृष्टिकोण की ज़रूरत थी.
लेकिन निर्मला सीतारमण ने मोदी के पिछले 15 अगस्त को दिए भाषण के 7 विज़न से पढ़ना शुरू किया.
बुलेट ट्रेन नहीं तो 400 वंदे भारत ट्रेन (ज़्यादा किराया और वसूली), 100 लॉजिस्टिक हब (उद्योगपतियों के लिए)- ये सब किनके लिए है? किसानों को 2.7 लाख करोड़ की MSP तो 2020-21 के 2.87 लाख करोड़ से भी कम है. क्या यही समावेशी विकास है? किसानों को उपज का सही भाव चाहिए और वित्त मंत्री उन्हें ड्रोन दे रही हैं. ये उनके ड्रोनाचार्य बॉस का ही आईडिया हो सकता है.
तबाही के लिए अकेले केन-बेतवा ही काफ़ी नहीं थी कि 5 और नदियों को जोड़ेंगे. माने लाखों विस्थापित, लाखों हेक्टेयर जंगल डूबेंगे और बाढ़ की तबाही अलग से. मोटा अनाज ठीक है, लेकिन उसे कौन, किस कीमत पर बेचेगा? अडानी, अंबानी और रामदेव? 10 गुना कीमत पर?
2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का 2018 में मोदी ने जो जुमला फेंका था, वह एक्सपायर हो गया.
इस साल तक सभी को घर देने का भी वादा था. लेकिन बजट में 80 लाख नए मकानों के लिए 48 हज़ार करोड़ का टुकड़ा फेंककर वित्त मंत्री चुप हो गईं. अकेले यूपी की 24 करोड़ आबादी में सिर्फ 9.82 लाख लोगों के पास छत है. जल जीवन मिशन के लिए 60 हज़ार करोड़ नाकाफ़ी हैं.
वित्त मंत्री ने सबसे बड़ा जुमला मेक इन इंडिया के फ्लॉप शो से 60 लाख नौकरियां जुटाने का फेंका है. उन्होंने दावा किया कि 15 लाख नौकरियां पैदा हुई हैं. 5.3 करोड़ बेरोजगार और 15 लाख नौकरियों का दावा.
देश में 1.5 लाख डाकघरों को बैंक बनाया जाएगा. फिर बैंक क्या करेंगे? बंद हो जाएंगे?
200 चैनलों से पढ़ाई, ई विद्या स्कूलों के लिए खतरे की घंटी है.
मोदी सरकार ने आज पेश किए गए बजट में देश के सबसे गरीब लोगों के पेट पर जोरदार लात मारी है. ये लात देश के किसानों और 60 करोड़ ग़रीबों को ज़िंदा रखने के लिए चलाई जा रही योजनाओं के बजट और सब्सिडी में कटौती कर मारी गई है.
मनरेगा के लिए वित्त मंत्री ने सिर्फ़ 73000 करोड़ रुपये दिए हैं, जो 98000 करोड़ के पिछले आवंटन से कम हैं. कोविड की दोनों लहर में मनरेगा ने ही गांव में लोगों को ज़िंदा रखा था.
– खाद्य सब्सिडी को 2.86 लाख करोड़ से घटाकर 2.06 लाख करोड़ किया गया है.
– उर्वरक सहायता की राशि को 1.40 लाख करोड़ से घटाकर 2022-23 के लिए 1.05 लाख करोड़ कर दिया गया है.
किसानों ने जो बात कही है, वह सही ही लगता है कि मोदी सरकार से बड़ा किसान, ग़रीब विरोधी और कोई हो ही नहीं सकता.
मोदी सरकार ने अपने बजट में ग़रीब, किसान, मध्यम वर्ग को ही नहीं सेना को भी नहीं बख़्शा है. इधर, लद्दाख में चीन हमारी सरहद में घुसकर बैठा है, वहीं सरकार ने थलसेना के पूंजीगत खर्च में 10105 करोड़, नौसेना के लिए 7193 करोड़ और वायुसेना के लिए 1384 करोड़ की कमी कर दी है. दूसरी तरफ, कॉर्पोरेट टैक्स और सरचार्ज दोनों घटाया गया है. साफ है यह सरकार आमलोगों, किसानों और सेना के बजाय कॉरपोरेट्स की भलाई के लिए ज्यादा चिंतित है.
कोविड के बावज़ूद स्वास्थ्य का बजट सिर्फ़ 0.23% बढ़ा है. पिछले बजट के संशोधित अनुमान 86 हज़ार करोड़ से इस बार का बजट 86200 करोड़ हुआ है. 2017 की स्वास्थ्य नीति के मुताबिक सरकार को जीडीपी का 2.5% स्वास्थ्य पर 2025 तक खर्च करना ही है. अभी यह 2.1% से कुछ ही ज़्यादा है. पिछले बजट में मोदी सरकार ने कोविड इमरजेंसी रेस्पॉन्स पैकेज में 15730 करोड़ डाले थे. इस बार कोई फंड नहीं दिया गया है. पोषण 2.0 के लिए 20,263 करोड़ दिए तो हैं, लेकिन योजना अभी तक शुरू ही नहीं हुई है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.