LagatarDesk : देश के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार छठे सप्ताह गिरावट आयी है. आरबीआई ने शुक्रवार को अपने ताजा आंकड़ों में यह जानकारी दी है. आंकड़ों के अनुसार, 15 अप्रैल को खत्म हुए सप्ताह में यह 31.1 करोड़ डॉलर घटा है. जिसके बाद यह 603.694 अरब डॉलर रह गया. इससे पहले 8 अप्रैल को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.471 अरब डॉलर घटकर 604.004 अरब डॉलर रह गया था.
6 सप्ताह में 18.581अरब डॉलर से ज्यादा घटा देश का भंडार
बता दें कि 1 अप्रैल को समाप्त हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 11.173 अरब डॉलर घटकर 606.475 अरब डॉलर पर आ गया था. जो अब तक की सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट थी. इससे पहले 25 मार्च को खत्म हुए सप्ताह में यह 2.03 अरब डॉलर घटकर 617.648 अरब डॉलर रह गया था. वहीं 18 मार्च समाप्त हुए सप्ताह में यह 2.597 अरब डॉलर घटकर 619.678 अरब डॉलर पर आ गया था. 11 मार्च को खत्म हुए सप्ताह में देश का भंडार 9.646 अरब डॉलर घटकर 622.275 अरब डॉलर रह गया था. बीते 6 हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 18.581 अरब डॉलर घट चुका है.
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87.7 करोड़ डॉलर घटकर 536.768 अरब डॉलर रह गया एफसीए
साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, फॉरेन करेंसी एसेट्स (एफसीए) घटने के कारण विदेशी मुद्रा भंडार में भी कमी आयी है. विदेशी मुद्रा भंडार में एफसीए का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. फॉरेन करेंसी एसेट्स में डॉलर के अलावा यूरो, पाउंड और येन जैसी मुद्राओं को भी शामिल किया जाता है. रिपोर्टिंग वीक में एफसीए 87.7 करोड़ डॉलर घटकर 536.768 अरब डॉलर रह गया. इससे पहले 8 अप्रैल को खत्म हुए सप्ताह में यह 10.7 बिलियन डॉलर घटकर 539.727 बिलियन डॉलर हो गयी थी.
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भारत के गोल्ड रिजर्व 62.6 करोड़ डॉलर बढ़ा
बता दें कि आलोच्य सप्ताह में देश का स्वर्ण भंडार में बढ़त आयी है. गोल्ड रिजर्व 62.6 करोड़ डॉलर बढ़कर 43.145 अरब डॉलर पर पहुंच गया. हालांकि इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड के पास जमा स्पेशल ड्राइंग राइट (एसडीआर) 4.4 करोड़ डॉलर घटकर 18.694 अरब डॉलर रह गया. वहीं आरक्षित विदेशी मुद्रा भंडार 1.6 करोड़ डॉलर घटकर 5.086 अरब डॉलर पर आ गया.
ग्लोबल जियोपॉलिटिकल फैक्टर की वजह से कम हुआ खजाना
माना जा रहा है कि ग्लोबल जियोपॉलिटिकल फैक्टर के कारण इंडियन करेंसी (रुपये) में दबाव के कारण हुआ है. दबाव को कम करने के लिए आरबीआई ने भारत के खजाने से डॉलर बेच दिया. जिसकी वजह से विदेशी मुद्रा भंडार में घटा है. वहीं सरकारी तेल कंपनियों को कच्चा तेल खरीदने के लिए ज्यादा डॉलर चुकाना पड़ रहा है. जिसकी वजह से भी विदेशी मुद्रा भंडार कम हुआ है.
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