NeweDelhi : सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जजों ने अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन ऐक्ट (यूएपीए) और राजद्रोह की धारा को असंवैधानिक बताते हुए कहा है कि इन कानूनों का दुरुपयोग रोकने के लिए सख्त उपाय किये जाने चाहिए. बता दें कि शनिवार, 24 जुलाई को सेंटर फॉर ज्यूडीशियल अकाउंटिबिलिटी एंड रिफॉर्म द्वारा आयोजित वेबिनार में इन पूर्व जजों ने अपनी राय रखी.
इन जजों नें SC के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस आफताब आलम, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस वी गोपाल गौड़ सहित पटना हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अंजना प्रकाश शामिल थे,
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जस्टिस मदन बी लोकुर ने संदेह व्यक्त किया
वेबिनार में जस्टिस मदन बी लोकुर ने संदेह व्यक्त किया कि क्या देशद्रोह और आतंकवाद से निपटने वाले एक खंड और कानून को पूरी तरह से खत्म कर दिया जायेगा? साथ ही उन्होंने इनके दुरुपयोग से बचने के उपाय सुझाये. कहा कि यह कहना अच्छा है कि यूएपीए, देशद्रोह कानून जाना चाहिए. लेकिन जैसा कि मैंने कहा, मुझे नहीं लगता कि ये जाने वाले हैं. संभवतः नेशनल सिक्योरिटी ऐक्ट (एनएसए) का अब इस्तेमाल किया जायेगा. ऐसे में लोग स्थितियों का सामना कैसे करेंगे? एक ही तरीका है, जवाहदेही तय हो. यह दो तरह से हो सकती है.
वित्तीय जवाबदेही, जहां मुआवाजा दिया जाना चाहिए
पहली वित्तीय जवाबदेही, जहां मुआवाजा दिया जाना चाहिए. एक बार जब अदालतें, पुलिस या अभियोजन पक्ष से यह कहना शुरू कर दें कि आप बेहतर तरीके से पांच या 10 लाख रुपये का भुगतान करें, तो मुझे लगता है कि वे शायद अपने होश में आ जायेंगे. जस्टिस लोकुर का कहना था कि अब…सॉफ्ट टॉर्चर जैसी कुछ चीज है. हम थर्ड और सेकेंड डिग्री टॉर्चर के तरीके जानते हैं, पर आपके पास सॉफ्ट टॉर्चर भी है.
इस क्रम में जस्टिस लोकुर ने कैदियों से ठसाठस भरी जेलों, वहां साफ-सफाई के न होने और नाबालिगों के लिए पर्याप्त भोजन की कमी का उदाहरण दिया. कहा कि आपके पास हनी बाबू (मुंबई की जेल में बंद दिल्ली विवि के शिक्षक) जैसे लोग हैं, जिनकी आंख की स्थिति बड़ी खराब हालत में है. ऐसा लगता है कि वह अपनी आंख खो देंगे, तभी उन्हें अस्पताल भेजा जायेगा, पर उससे पहले कुछ नहीं होगा.
स्टैन स्वामी को पहले इलाज क्यों नहीं मिला?
जस्टिस लोकुर ने कहा कि स्टैन स्वामी के बारे में हर किसी ने बात की. पर उन्हें पहले इलाज क्यों नहीं मिला? पूछा कि क्या यह टॉर्चर नहीं है? जस्टिस आलम की बारी आयी तो उन्होंने एनसीआरबी आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि यूएपीए सजा देने के बजाय बेगुनाह लोगों को परेशान करने वाला साबित हुआ है. उनके अनुसार, 2019 में 2361 यूएपीए केस पेडिंग थे. 33 मामलों में 113 को दोषी करार दिया गया, जबकि 64 केस में बरी हुए और 16 केस में डिस्चार्ज किये गये. वेबिनार में मौजूद जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि आईपीसी (राजद्रोह) के सेक्शन 124ए को खत्म कर दिया जाना चाहिए. उन्होंने यूएपीए को असंवैधानिक करार दिया.
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