Ranchi/Chaibasa : पश्चिम सिंहभूम के जुरका गांव में बाल मजदूरी एक बड़ी समस्या है. इसकी वजह यह है कि गांव के लोगों की आर्थिक स्थिति काफी खराब है. दूसरी ओर उन्हें यह भी नहीं पता कि बाल मजदूरी अपराध है. गांव के लोग यही समझते हैं कि बच्चे भी काम करेंगे तो परिवार को थोड़ा सहारा मिल जाएगा. अभी कुछ दिनों पूर्व गांव की चार बच्चियों को बाल मजदूरी के दलदल से बाहर निकाला गया.
इन बच्चियों के माता-पिता ने उन्हें काम करने के लिए शहर भेज दिया था. ये बच्चियां जहां काम काम कर रही थीं, वहां उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं होता था. इस बात की जानकारी मिलने पर उन्हें पुलिस की मदद से बचाया गया. बच्चों को रेस्क्यू कराने के बाद सेव द चिल्ड्रन की ओर से उन्हें सिलाई-कढ़ाई का छह माह का नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया गया. अब बच्चियां गांव में ही हैं. खुद सिलाई करती हैं और पढ़ाई भी कर रही हैं. इसका खुलासा बच्चों के कल्याण के लिए काम करने वाली संस्था सेव द चिल्ड्रन की लेखन कार्यशाला में किया गया.
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रंजीता प्रधान ने कार्यशाला में दी जानकारी
कार्यशाला में रंजीता प्रधान, श्यामलाल बोदरा, सोमा बोदरा, नामसी बोदरा, अजय गोप और सृष्टि रानी शामिल थे. ये किशोर-किशोरियां 9वीं से 12वीं के विद्यार्थी हैं, जो गुमला और चक्रधरपुर के निवासी हैं. लेखन कार्यशाला में बच्चों को बताया गया कि आसपास के मुद्दों को किस तरह खबर के रूप में लिखा जाता. इन बच्चों ने बाल विवाह रोकने के लिए भी काम किया है. कार्यशाला में जुरका गांव में बाल मजदूरी से निकाली गई बच्चियों की जानकारी चक्रधरपुर की रंजीता प्रधान ने दी. रंजीता ने बताया कि उन बच्चियों को बाल श्रम से मुक्ति दिलाने में उसकी भी भूमिका रही है.
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