NewDelhi : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में कहा था कि सरकार कुछ सरकारी बैंकों को निजी करेगी. खबर आ रही है कि निजी बनाने के लिए सरकार ने चार सरकारी बैंकों का चयन किया है. इनमें चौंकाने वाला नाम है बैंक ऑफ इंडिया. अन्य तीन बैंक हैं बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल. इस प्रक्रिया को शुरू होने में 5-6 महीने लगेंगे।
सरकार ने बजट में दो बैंकों के हिस्से को बेचने की बात कही थी. वैसे सरकार पहले ही कह चुकी है कि निजीकरण से कर्मचारियों की नौकरी नहीं जाएगी. बैंक ऑफ इंडिया के पास 50 हजार कर्मचारी हैं, जबकि सेंट्रल बैंक में 33 हजार कर्मचारी हैं. इंडियन ओवरसीज बैंक में 26 हजार और बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 13 हजार कर्मचारी हैं. इस तरह कुल मिलाकर एक लाख से ज्यादा कर्मचारी इन चारों सरकारी बैंकों में हैं.
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ज्यादातर हिस्सेदारी सरकार के पास रहेगी
सरकार बड़े बैंकों में अपनी ज्यादातर हिस्सेदारी रखेगी, जिससे नियंत्रण बना रहे। सरकार कोरोना के बाद काफी बड़े पैमाने पर सुधार करने की योजना बना रही है. सरकार इन बैंकों को बुरे फंसे कर्ज से भी पार करना चाहती है. अगले वित्त वर्ष में इन बैंकों में 20 हजार करोड़ रुपए डाले जाएंगे ताकि ये बैंक रेगुलेटर के नियमों को पूरा कर सकें.
सरकार देश में कुछ बड़े सरकारी बैंकों को ही चलाने के पक्ष में है. जैसे- भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और कैनरा बैंक. पहले कुल 23 सरकारी बैंक थे. इनमें से कई छोटे बैंक को बड़े बैंक में पहले ही मर्ज किया जा चुका है. सरकार ने इस बार बजट में दो बैंकों में हिस्सा बेचने की बात कही थी. हालांकि, चार बैंकों के नाम सामने आए हैं.
बैंक के अकाउंट होल्डर्स को घबराने की जरूरत नहीं
अकाउंट होल्डर्स का जो भी पैसा इन चार बैंकों में जमा है, उस पर कोई खतरा नहीं है. खाता रखने वालों को फायदा ये होगा कि प्राइवेटाइजेशन हो जाने के बाद उन्हें डिपॉजिट्स, लोन जैसी बैंकिंग सर्विसेस पहले के मुकाबले बेहतर तरीके से मिल सकती हैं. एक जोखिम यह रहेगा कि कुछ मामलों में उन्हें ज्यादा चार्ज देना होगा. प्राइवेटाइजेशन की प्रक्रिया शुरू होने में 5-6 महीने लगेंगे. चार में से दो बैंकों को इसी फाइनेंशियल ईयर में प्राइवेटाइजेशन के लिए चुन लिया जाएगा.
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