Surjit Singh
सवालः क्या पढ़ाई करते हो ?
जवाबः बीए
सवालः किस सब्जेक्ट से ?
जवाबः बीए, प्लेन बीए.”
“नो प्लेस फॉर अर्बन, नक्सल इन विकसित भारत. इसका क्या मतलब है. हंसते हुए सर नहीं पता है.”
“सवालः बोर्ड पर क्या लिखा है?
जवाबः से नो टू वेल्थ वेल्चर.
सवालः इसका क्या मतलब है?
जवाबः सर यहां पर हम कांग्रेस के विरुद्ध लड़ रहे हैं. ताकि जो चीज सबको चाहिए मिल सके.
सवालः क्या मिल सके?
जवाबः जो चीज सबको चाहिए.
सवालः प्रोटेस्ट किस लिए है?
जवाबः सर, हम बीजेपी को.”
“एक छात्र कह रहा है कि पढ़ा लिखा होने का यह मतलब नहीं कि, हम दिमाग का इस्तेमाल करना चाहिए. हमें यह देखना चाहिए कि देश की सरकार क्या कह रही है. देश की सरकार कह रही है कि झूठ है, तो बिल्कुल झूठ मानेंगे. हमें देश के बारे में सोचना चाहिए.”
“विरोध प्रदर्शन क्यों कर रहे? वेल्थ डिस्ट्रीब्यूशन क्या है. पहले ले जाएंगे वोट, फिर ले जाएंगे मंगलसूत्र व नोट. इसके जवाब में छात्रों ने कहा कि कांग्रेस का मेनिफेस्टो पढ़ा नहीं. कौन संपत्ति छीन रहा है. इस पर छात्र ने बताया कि उन्हें नहीं पता, कौन छीन रहा है. हम विरोध कर रहे हैं, राहुल गांधी के हेल्थ एंड वेल्थ टैक्स वाले बयान का. मां-बहनों की गहनों पर नजर ना गड़ाओ, लिखे तख्ती लेकर चल रहे छात्र को इसका मतलब ही नहीं पता था.”
यह महज कुछ उदाहरण है, ग्रेटर नोयडा स्थित गलगोटिया यूनिवर्सिटी के छात्रों की पढ़ाई-लिखाई के स्तर का. गलगोटिया के छात्र दो दिन पहले कांग्रेस के खिलाफ प्रदर्शन करने निकले थे. उनके हाथों में पोस्टर थे. तख्तियां थी. जिसमें कांग्रेस के विरोध की बातें लिखी थी. आजतक चैनल में छात्रों से सवाल कर दिए. छात्रों ने क्या जवाब दिया, आपने पढ़ लिया. छात्रों ने बिना सिर-पैर की बातें कहीं. ऐसी बातें जिसके बारे में उन्हें कोई जानकारी ही नहीं है. एक छात्र को तो ठीक से हिन्दी पढ़ना तक नहीं आता. अपने हाथ में वह जो तख्ती लिए था, उसे पढ़ तक नहीं सका. गड़ाओ को गाड़ो पढ़ रहा था. ऐसा लगता है किसी ने उन्हें पोस्टर व तख्तियां पकड़ा दी और वे प्रदर्शन करने पहुंच गए. वो ना राजनीति समझते हैं, ना देश के बारे में कुछ जानते हैं, ना समाज के बारे में. उन्हें सिर्फ ऐसी बातें पता है, जो वाट्सएप पर फैलाए जाते हैं.
आजतक का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है. एक्स पर लगातार दो दिन से ट्रेंड कर रहा है. कुल मिलाकर राजनीति के चक्कर गलगोटिया यूनिवर्सिटी की बैंड बज गई. यह वही गलगोटिया यूनिवर्सिटी है, जो दावा करती है कि उसे 300 से अधिक राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय अवॉर्ड मिले हैं. हर साल 500 से अधिक कंपनियों में उसके छात्रों का प्लेसमेंट होता है. जिसके छात्र को सबसे अधिक पैकेज मिलता है. जिसकी 1000 से अधिक इंडस्ट्री के साथ टाइअप हैं. इसी गलगोटिया यूनिवर्सिटी का विज्ञापन हम साल में पांच से छह बार अखबारों के पहले पन्ने पर देखते हैं, अक्सर टीवी पर देखते हैं, और लाखों रुपये खर्च कर अपने बच्चों को पढ़ने भेजते हैं. इन सबके बीच जो बड़ा सवाल है, वह यह कि क्या एक शैक्षणिक संस्थान के छात्रों का, इस तरह एक खास पार्टी के पक्ष में या एक खास पार्टी के विरोध में प्रोपोगेंडा फैलाना कितना सही है?