Galudih (Prakash Das) : पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर गालूडीह में 190 साल से अग्रेजों से लोहा लेने वाले वाले भूमिज राजा क्षेत्रमोहन सिंह की विजेता तलवारें जय, विजय और रंजिनी की पूजा की परंपरा जारी है. राजा के वंशजों ने आज भी अपनी विरासत को जीवंत रखा है. हर साल विजया दशमी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा के समक्ष इन दोनों तलवारों को रखकर पूरे विधि-विधान व परंपरा के साथ राजा के वंशज पूजा करते हैं.
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फर्ग्युशन का अत्याचार बढ़ने पर राजा ने बुलंद की आवाज
भूमिज राजा क्षेत्रमोहन सिंह के वंशज बताते हैं कि सन् 1832 में ईस्ट जंगल महल क्षेत्र में ब्रिटिश हुकूमत का अत्याचार आम जनमानस पर बढ़ गया था. ईस्ट जंगल महल के तत्कालीन ब्रिटिश शासक लार्ड फर्ग्युशन का अत्याचार ईस्ट जंगल महल के लोगों पर बढ़ने लगा था. तब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ तत्कालीन भूमिज समाज के राजा क्षेत्रमोहन सिंह ने आवाज बुलंद की. भूमिज राजा क्षेत्रमोहन सिंह के पास कोई बड़ी रियासत नहीं थी. न ही उनके पास अंग्रेजों से मुकाबले को कोई सैनिकों की टुकड़ी थी. लेकिन, भूमिज राजा क्षेत्रमोहन सिंह ने ऐलान किया था कि वे स्वतंत्र हैं. अंग्रेजों से लड़ने के लिये भूमिज राजा क्षेत्रमोहन सिंह ने देवी दुर्गा की आराधना करने का निश्चय किया. ब्रिटिश हुकूमत से लड़ाई जीतने को उन्होंने शक्ति के लिये देवी की आराधना की. देवी की पूजा कर युद्ध लड़ा और अंग्रेजों को अपने क्षेत्र में परास्त किया.
राजा के वंशज वासंती प्रसाद सिंह कर रहे पूजा
आज लगभग 190 वर्ष बीत जाने के बाद भी पूजा की परंपरा बरकरार है. भूमिज राजा के वंशज आज भी जिन तलवारों से राजा ने युद्ध लड़ा था, उन तीनों तलवारों की दशमी के दिन पूजा अर्चना करते हैं. मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है. वर्तमान में उनके वंशज बड़ाखुर्शी पंचायत के पैरागुड़ी गांव निवासी वासंती प्रसाद सिंह बताते हैं कि अंग्रेजों से स्वतंत्रता पाने के लिए भूमिज राजा क्षेत्रमोहन सिंह ने देवी की आराधना कर शक्ति की प्रार्थना की थी. भूमिज राजा ने देवी दुर्गा की आराधना कर अंग्रेजों से मुकाबला किया था. इसके फलस्वरूप फर्ग्युशन को झुकना पड़ा था. उस युद्ध में भूमिज राजा के द्वारा प्रयुक्त तलवार को जय, विजय व रंजिनी कहा जाता है. इनकी पूजा हर वर्ष दशमी के दिन होती है. अन्य दिन इन्हें काफी सम्मान के साथ सहेज कर रखा जाता है.
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