Arun Kumar Yadav
Garhwa : जिले के रंका अनुमंडल क्षेत्र के कर्री ग्राम का सेमरखाड टोला आज भी विकास से विकास से कोसों दूर है. तीन दिशाओं से पहाडों से घिरा तेहडीया, बुगलु, सर्वादाहा, बिया, करगा तथा आमा खोचा से घिरे कर्री गाँव के सेमरखाड टोला में आजादी के अमृत महोत्सव काल में सरकार की योजनाओं का कोई अता पता नहीं है. आज भी अगर किसी गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाने की जरूरत पड़े तो यहाँ के लोगों को डोली-खटोली के द्वारा सडक मार्ग तक लाना पडता है.
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सिंचाई की नहीं है सुविधा
सिंचाई के नाम पर 1980 के दशक में डुमरखोचा डैम बना था. इसके बारे में कर्री के 70 वर्षीय बालेश्वर सिंह ने कहा कि डुमरखोचा डैम का निर्माण 1980 में हुआ. परंतु उसके बाद इस प्रकार का दूसरा कोई सिंचाई का मजबूत साधन नहीं बन पाया. वहीं 78 साल के जनार्दन का कहना है कि मात्र पश्चिमी टोला में एक पीसीसी 500 फीट सडक निर्माण पिछ्ले तीन- चार माह पूर्व झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने बनवाया है. जबकि रामलखन सिंह का कहना है जंगली क्षेत्र होने के कारण कर्री ग्राम के बारे में राजनितिक पार्टी के लोगों का नजरिया उदासीन रहता है. आज भी गर्मी के दिनों में लोग सनया एवं काशी सोत नदी से पानी पीते हैं.
पुल बनाने की मांग
ऐसा नहीं कि यहाँ के जन प्रतिनिधियों ने इस क्षेत्र में कोई विकास की खाका नहीं खिंची है. झारखंड में जब पहली बार पंचायत चुनाव हुआ था तो यहाँ के रामचंद्र सिंह कटरा पंचायत के मुखिया बने थे. बरसात के दिनों में नदी में पानी के बढ़ने से लोगों को आवागमन में परेशानी होती है.लोग आज भी नदी के किनारे- किनारे ही आया- जाया करते हैं. बरसात के दिनों में इस नदी में पानी आ जाए तो लोगों को अपना कपड़ा उतार कर पार करना पड़ता है. जंगली नदी होने के कारण हालांकि बाढ़ तो तुरंत खत्म हो जाता है, किन्तु समस्या जस की तस बनी हुई है. लोगों का कहना है कि यदि उत्क्रमित मध्य विद्यालय के पास एक पुल बना दिया जाए, तो काफी हद तक यहां के लोगों को आने जाने में सुविधा हो सकती है.
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आदिवासी बहुल है गांव
पूरी तरह से आदिवासी बहुल इस गांव में 2 से 3 हजार की आबादी निवास करती है. इसमें आदिम जनजाति, खरवार, कोरवा, परैहया महाजनी वर्ग भी निवास करती है. सेमरखाड के लोगों का कहना है कि लोगों ने प्रकृति के निर्देश के अनुसार जीने का पाठ पढ़ लिया है. लोगों का जनप्रतिनिधियों के ऊपर से विश्वास उठता जा रहा है. चुनाव के समय बड़ी-बड़ी घोषणाएं करने वाले नेता चुनाव जीतने के बाद अपने वादों को भूल जाते हैं. ग्रामीणों की समस्याएं जस की तस बनी रहती है.
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