Abhay Verma
Giridih : सदर अस्पताल परिसर स्थित मानसिक आरोग्यशाला चंद माह में ही दम तोड़ दिया. 6 बेड की इस आरोग्यशाला की शुरुआत पूरी ताम-झाम से 6 माह पूर्व हुई थी. दवा और मेन पावर के अभाव में इसे बंद कर दिया गया. फिलहाल इसमें कुपोषण उपचार केंद्र (एमटीसी) संचालित है. मेन पावर की किल्लत दूर करने के लिए राज्य सरकार को आवेदन भी भेजा गया, लेकिन राज्य सरकार ने इस दिशा में पहल नहीं की.
बुनियादी सुविधाओं का अभाव
विभागीय सूत्रों के अनुसार मानसिक आरोग्यशाला में बुनियादी सुविधाओं की कमी थी. संचालन के लिए क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट, नर्सों और अन्य मेडिकल कर्मियों की जरूरत थी. इसे बना तो दिया गया, लेकिन बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गई. इस वजह से बंद करना पड़ा. विगत दिसंबर माह में यहां कुपोषण उपचार केंद्र खोल दिया गया.
बुधवार को साप्ताहिक ओपीडी
सदर अस्पताल में हर बुधवार को मानसिक रोगियों के लिए ओपीडी की व्यवस्था है. सप्ताहिक ओपीडी में 70 से 80 मानसिक रोगी इलाज कराने आते हैं. गंभीर रोगियों को रांची के रिनपास रेफर कर दिया जाता है.
मानसिक रोग उपचार मामले में गिरिडीह उदासीन
राष्ट्रीय स्तर पर मानसिक रोगियों के आंकड़े को देखते हुए गिरिडीह जिला मानसिक रोग उपचार के मामले उदासीन है. भारतीय चिकित्सा शोध परिषद् (आईसीएमआर) ने वर्ष 2017 में अध्ययन किया. अध्ययन में ये बात सामने आई कि देश में 4.49 करोड़ लोग बेचैनी से पीड़ित हैं. 2017 के ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक देश की 7.5% जनसंख्या मानसिक विकार से ग्रस्त पाया गया. 2005 से 2015 के बीच दुनिया में डिप्रेशन के मामले 18% बढ़े. इनमें लगभग आधे दक्षिण पूर्वी एशिया में हैं. देश में 9 करोड़ से ज्यादा लोग मानसिक अवसाद से ग्रस्त पाए गए.
करीब तीन सौ मरीजों का प्रतिमाह इलाज
सदर अस्पताल के मनोरोग चिकित्सक डॉ. फजल अहमद ने बताया कि प्रतिमाह तीन सौ के करीब मानसिक रोगियों का इलाज किया जाता है. पूर्व में गंभीर मानसिक रोगी को बिजली के झटके दिए जाते थे, लेकिन अब इलाज की पद्धति बदल गई है. अब रोगियों को बिजली के झटके नहीं दिए जाते. दवाइयों से इलाज किया जाता है. मानसिक रोगियों के लिए कई दवाओं का इजाद हो चुका है. सदर अस्पताल में एंटी साइट्रिक चंद दवा ही उपलब्ध है. जो दवाइयां उपलब्ध है वह मरीजों को दी जाती है, बाकी बाहर से खरीदनी होती है.
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