तिसरी, गावां और कोडरमा के चंदवारा में है अभ्रक का बड़ा भंडार
वन विभाग की सख्ती से खदानें बंद, लोगों का छिना रोजगार
पहले अभ्रक पर निर्भर थी क्षेत्र की अर्थ व्यवस्था
Aditya
Ganwa (Giridih) : देश-विदेश में अपनी चमक बिखेरने वाले अभ्रक का कारोबार इन दिनों झारखंड के गिरिडीह और कोडरमा के इलाके में फीका पड़ गया है. साठ के दशक से इस इलाके की अर्थव्यवस्था इसी खनिज पर निर्भर थी. करीब एक लाख स्थानीय लोगों को इस खनिज की वजह से रोजगार मिल रहा था. लेकिन, वन विभाग की सख्ती के कारण पिछले कुछ वर्षों से अभ्रक (माइका) की खदानें बंद हैं. इस वजह से लोगों के रोजगार छिन गए और मजदूरों का पलायन भी हो रहा है. पूरे देश में कुछ इलाकों को छोड़ दें तो गिरिडीह के तिसरी, गावां और कोडरमा के चंदवारा में अभ्रक बड़े पैमाने में पाया जाता है. कहने को तो यहां की अभ्रक खदानें बंद हैं लेकिन अवैध तरीके खनन करने वाले लोग आज भी दूसरे देशों में अभ्रक भेज रहे हैं.
वर्ष 1930-35 में तिसरी और गावां में अभ्रक का पता चला
वर्ष 1930-35 के आसपास गिरिडीह के तिसरी और गावां में अभ्रक का भंडार होने का पता चला था. इसकी खोज अंग्रेजी कंपनी की देखरेख में की गई थी. 1950 के दशक में दिल्ली की कंपनी सीएमआई के तत्कालीन निदेशक राजकुमार अग्रवाल को सरकार ने इसके उत्खनन के लिए लीज दी थी. इसके बाद कई निजी कंपनियां यहां आईं और अभ्रक के कारोबार से जुड़ गईं. 1960 के दशक में अभ्रक का व्यवसाय काफी मुनाफा वाला साबित हुआ. लेकिन जैसे-जैसे खदानों की गहराई बढ़ती गई, उत्पादन लागत बढ़ी और माइका का धंधा मंदा होता गया.
इंग्लैंड ले गए थे अंग्रेज
अंग्रेजी हुकूमत के समय एक अंग्रेज कोडरमा की ओर से गुजर रहा था. तभी गझंडी के पास अभ्रक की चमक देख उसने इसे इंग्लैंड की लेबोरेटरी में ले जाकर जांच करवाई. जांच में पाया गया कि यह विद्युत का कुचालक है. इसके बाद पर्ष 1930-32 में अंग्रेजी कंपनी तिसरी और गावां सहित तिलैया, कोडरमा, गझंडी, डोमचांच आदि जगहों की खदानों से अभ्रक इंग्लैंड ले गई.
रॉकेट, अंतरिक्ष यान में होता है उपयोग
अभ्रक विद्युत का कुचालक पदार्थ है. इसका उपयोग रॉकेट, अंतरिक्ष यान, हवाई जहाज सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने में किया जाता है.
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