Abhay Verma
Giridih : झारखंड के खूबसूरत ज़िलों में शुमार गिरिडीह की ख़ूबसूरती पर पलायन का धब्बा पहले से कहीं काला और गहरा होता जा रहा है. क्या शहर, क्या गांव, पलायन की दर्द से पूरा ज़िला ही बेज़ार हो रहा है. सरकार और जिला प्रशासन के दावे और सारी कवायद फ़ाइल, दफ़्तरों और सिस्टम के गलियारों में ही यात्रा कर रहे हैं. दूसरी ओर गांव-गांव से पलायन यात्रा निकल रही है. हर रोज सैंकड़ों लोग अपनी लाचारी की गठरी बांधकर अपना घर परिवार कहीं पीछे छोड़कर पराये शहर को जा रहे हैं. गिरिडीह जिले का श्रम नियोजन विभाग कहता है कि इस साल 1 जनवरी से 31 जुलाई तक 17 हज़ार 720 मजदूर पलायन कर मुंबई, सूरत, दिल्ली जैसे दूसरे बड़े शहरों को रवाना हो गये. ये तो निबंधित प्रवासी मजदूरों का आंकड़ा है. एक बड़ी तादात उन मजदूरों की भी है जिनका कोई निबंधन, कोई डाटा विभाग के पास नहीं है.
घर में नहीं मिल रहा है रोजगार
लॉकडाउन के दौरान दूसरे शहरों में फंसे जिले के प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के बाद सरकार और प्रशासन ने घर में ही रोजगार देने की बात कही थी. दो साल बीत जाने के बाद घर में रोजी नहीं मिली तो फिर से भूख और लाचारी ने घर छोड़ने को विवश कर दिया. मजदूरों का कहना है कि प्रशासन की तरफ़ से किसी ने कोई सुध नहीं ली. झूठी उम्मीद के चूल्हे पर बूढ़े मां-बाप और बच्चों के लिए रोटी जुटा पाना मुश्किल हो रहा है. कौन अपना घरबार छोड़ना चाहता है? लोगों की बातों से ज़ाहिर है प्रशासन अपने ही कही बातों पर खड़ा नहीं उतर पाया.
प्रवासी मजदूरों मैं गिरिडीह की संख्या सर्वाधिक
रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे प्रवासी मजदूरों में गिरिडीह की संख्या राज्य में सर्वाधिक है. श्रम नियोजन विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो 1 जनवरी से 31 जुलाई तक गिरिडीह के 17 हज़ार 270 मजदूर पलायन कर चुके हैं. दूसरे नंबर पर हजारीबाग है, जहां के 9 हज़ार 804 प्रवासी मजदूर बाहर गए. तीसरे नंबर पर गोड्डा है जहां के 9 हज़ार 728 लोगों ने बाहर का रुख किया. ये आंकड़े निबंधित मजदूरों के हैं. गौरतलब है कि लॉकडाउन के बाद प्रशासन ने करीब 69 हज़ार प्रवासी मजदूरों को जिले में उनकों घरों तक पहुंचाया था. पलायन के इन आंकड़ों से पनपते सवालों को लेकर जिला प्रशासन के पास कोई ठोस जवाब नहीं है.
प्रवासी मजदूरों के निबंधन पर ज़ोर – श्रम अधीक्षक
श्रम अधीक्षक रविशंकर ने भी माना कि जिले से बड़ी संख्या में मजदूर पलायन करते हैं. विभाग की कोशिश रहती है कि बाहर जाने वाले लोगों का निबंधन किया जा सके. ताकि योजनाओं का लाभ उन तक पहुंच सके. साथ ही प्रवासी मजदूरों की मौत पर सरकार की ओर से तय मुआवजा भी आश्रितों तक पहुंचाया जा सके. योजना के तहत सरकार निबंधित मजदूर की मौत पर डेढ़ लाख और बिना परिचय पत्र के श्रमिकों को सहायता राशि के रूप में एक लाख की राशि देती है.
Edited by : Krishnakant Sah
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