Abhay Verma
Giridih : कांग्रेस ज़िलाध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया बीरबल की खिचड़ी साबित हो रही है. जिला अध्यक्ष पद की घोषणा में हो रही देरी अब दावेदारों को भी रास नहीं आ रही है. 27 जुलाई को ज़िलाध्यक्ष चुनाव को लेकर सारी कवायद शउरु हुई. सर्किट हाउस में पहले रायशुमारी और उसके बाद रांची में वरीय नेताओं के पैनल ने इंटरव्यू लिया. कहा गया कि गणेश परिक्रमा की कोई ज़रूरत नहीं काबिल को ही ताज़ मिलेगा. लेकिन 55 दिन बाद भी कांग्रेस गिरिडीह के काबिल नेता को नहीं चुन पाई.
दिल्ली की दौर लगा चुके दावेदारों के जोश हुए फुस्स
इंटरव्यू से ज़िलाध्यक्ष का चुनाव करने के फ़ैसले के बावजूद तमाम दावेदारों ने रांची दिल्ली एक करने में कोई कमी नहीं की. चाहे गौरव यात्रा हो या दिल्ली में भारत जोड़ो यात्रा से पहले महंगाई पर राहुल गांधी की हल्ला बोल रैली. जिलाध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल अजय कुमार सिन्हा, सतीश केडिया, धनंजय सिंह, अशोक विश्वकर्मा और महसर इमाम ने भी ख़ूब हल्ला बोला. लेकिन ज़िलाध्यक्ष के एलान में हो रही लेटलतीफ़ी ने नेताओं के सारे जोश फुस्स होते दिख रहे हैं. संगठन के कार्यक्रम को लेकर सभी ठंडे पड़ गये हैं.
हेमंत के मास्टरस्ट्रोक का भी असर
दिल्ली में राहुल गांधी की हल्ला बोल रैली के बाद मान लिया गया था कि ज़िलाध्यक्ष के दावेदारों की शुभ घड़ी आ गई है. लेकिन हेमंत सोरेन की सदस्यता पर लटकी तलवार और रांची टू रायपुर रिसोर्ट पोलिटिक्स के बाद पहले अड़ंगा लगा. थोड़ी उम्मीद बची थी तो हेमंत सोरेन ने 1932 के खतियान पर कैबिनेट की मुहर लगाकर पूरी कर दी. सरकार में रहकर 1932 के खतियान पर कांग्रेस भले ही बुझे मन अपनी पीठ थपथपा रही हो. लेकिन भीतर ही भीतर 1932 को लेकर कांग्रेस भी हिली हुई है. राजनीतिक पंडित पर कह चुके हैं कि हेमंत सोरेन के इस दांव से बीजेपी को कम और कांग्रेस को सबसे ज़्यादा नुकसान होगा.
आलाकमान ही माईबाप
पहले विधायक कैश कांड, फिर हेमंत का मास्टर स्ट्रोक. बहाना कुछ भी हो लेकिन ज़िलाध्यक्ष बनने का ख़्वाब पाले नेताओं ने भी आलाकमान के आगे सरेंडर कर दिया है. हालांकि कोई भी नेता अपने दिल का हाल कहने से बच रहा है. प्रतिक्रिया देने के बजाय नेता अब ये कहते फिर रहे हैं कि आलाकमान जो चाहेगा, वही करेगा. ज़्यादा भागदौड़ से कुछ हासिल नहीं होने वाला. हालांकि वो इतना ज़रूर कहते हैं कि इंतज़ार की इंतहा हो गई.
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