Giridih : पार्षद के बाद उपमहापौर या महापौर की मुराद पूरी होने के बाद सब की चाहत कम से कम विधानसभा की दहलीज तक पहुंचने की होती है. पर विगत 5 दशक के इतिहास में ऐसी नौबत नहीं आई है कि कोई अध्यक्ष व उपाध्यक्ष, महापौर व उपमहापौर विधानसभा चुनाव में जीत का मुंह देखा हो. इस बार चुनावी सरगर्मी के बीच दो पूर्व अध्यक्ष व उपाध्यक्ष ने नगर निगम चुनाव से खुद को अलग रखा है. दोनों विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने की जुगत में हैं.
हालांकि यह भी दिलचस्प है कि वार्ड परिषद का चुनाव हारे लोग विधायक बन गये, पर अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को विधायक बनने का सौभाग्य कभी नहीं मिला है. वार्ड पार्षद का चुनाव हारे चंद्रमोहन प्रसाद राज्य के काबीना मंत्री तक बने. वहीं ओमीलाल आजाद गिरिडीह के विधायक बने, पर नगर निगम के मुखिया को यह कभी नसीब नहीं हुआ.
कई अध्यक्ष और उपाध्यक्ष विधानसभा चुनाव में हुए हैं चित
साल 1984 में यह मिथक टूटने के करीब था. पर एक हादसे ने सबकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. नगर पालिका अध्यक्ष रहे रणधीर प्रसाद 1984 में कांग्रेस के टिकट पर गिरिडीह विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार थे. मिलनसार स्वभाव व हर दुखियारी के आंसू पोछने वाले रणवीर प्रसाद की तब चुनावी आंधी चल रही थी. पर इसी बीच एक सड़क हादसे में उनकी संदिग्ध मौत हो गई. 1984 के बाद 2014 में नगर परिषद की अध्यक्ष पूनम प्रकाश ने गिरिडीह और प्रभारी अध्यक्ष रहे विभाकर पांडे ने गांडेय से किस्मत आजमाया. पर दोनों चारों खाने चित हो गए. साख तो गई ही दोनों जमानत भी बचा नहीं पाए.
इस बार टूटेगा मिथक?
अभी नगर निगम चुनाव की सरगर्मी बढ़ रही है. चर्चा निगम चुनाव की होनी चाहिए पर चुनावी सरगर्मी के बीच दो पूर्व अध्यक्ष व उपाध्यक्ष ने चुनाव से खुद को किनारा कर लिया है. दिलचस्प बात यह है कि दोनों भाजपा के हैं और दोनों गिरिडीह विधानसभा क्षेत्र से उम्मीद लगाए बैठे हैं. टिकट किसी एक को मिलनी है. अब टिकट उन दोनों में किसी एक को मिलेगी या नहीं यह भी तय नहीं है. टिकट मिल भी गई तो जीत की कोई गारंटी नहीं.
दूसरी तरफ़ दलीय आधार पर निगम चुनाव ना होने के कारण एक ही दल से कई कई उम्मीदवार होंगे. ऐसी स्थिति में किसी एक का समर्थन कर भविष्य की राह भी मुश्किल नहीं करेंगे. लेकिन करीब आ रही निगम की कुर्सी से दूर होने का बड़ा रिस्क होगा.
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