Ranchi: नए कृषि कानून के विरोध देशभर के किसान प्रर्दशन कर रहे हैं.किसानों का मानना है कि केंद्र के बनाए नए कृषि कानून किसानों के हक में नही है. भाजपा की सहयोगी पार्टी अकाली दल भी कानून के विरोध में एनडीए गठबंधन से अलग हो चुका है. किसान अपनी हक और आधिकार की लड़ाई के लिए दिल्ली पहुंच चुके हैं. ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा किसानों को निरंकारी मैदान में प्रर्दशन के लिए जाने को कहा जा रहा है. लेकिन किसानों का साफ कहना है कि क्या हम निरंकारी मैदान में जाकर क्या सत्संग करेंगे ? केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ किसानों का गुस्सा साफ दिख रहा है. किसान कहते है सरकार केंद्र में बैठ कर किसानों के केवल वोट लेती है. हम जनपथ जाकर संसद भवन का घेराव करना चाहते हैं. हम यहां से अपने घर वापस नहीं जाएंगे. कृषि काननों का विरोध कर रहे किसानों ने अपना इरादा जाहिर कर दिया है. लेकिन झारखंड में विरोध की सुगबुगहाट किसानों से बातचीत में साफ जाहिर होता है. गोडडा में आडानी पावर प्लांट के लिए ली गई जमीन के विरोध में लड़ने वाले किसान भी दिल्ली में प्रर्दशन कर रहे किसानों के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद कर रहे है.
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आप को याद होगा झारखंड के गोडडा जिले में बन रहे आडानी पवार प्लांट के लिए अपनी जमीन कंपनी को नही देने वाले रामजीवन पासवान जिसे आडानी कांपनी के लोगों ने कहा था जमीन नहीं दोगो तो जमीन में गाड़ देंगे, और उनकी लहलहाती धान की फसल को पूरी तरह रौद दिया गया था, वह भी किसानों के आंदोलन के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद करते हुए अपना दर्द भी बयां करते है.
रामजीवन पासवान कहते हैं- आखिर देश में गरीब किसान कहां जाएं, सरकार ही बता दे. किसानों की समस्यओं को सरकार ध्यान नहीं देता. सरकार पूंजीपतियों के इशारे पर कानून थोपने का काम करती है. गोडडा में भी कुछ ऐसा ही हुआ है. अडानी पावर प्लांट के लिए किसानों की जबरन जमीन कानूनों को तक में रख कर लूट लिया गया. इस काम में पुलिस-जिला प्रशासन पूरी तरह अडानी कंपनियों के लिए काम किया था और आज भी कर रहा है. उन्होंने पूछा कि देश में किसानों को कब न्याय मिलेगा. खेती-किसानी को अब महंगा बनाया जा रहा है. किसानों की जमीन भी लूटी जा रही है. कब न्याय मिलेगा कौन किसानों का दर्द समझेगा, सरकारें सिर्फ सत्ता भोगने के लिए लोकलोभवन बात करती है. राज्य में तत्कालीन रघुवर सरकार ने अडानी के लिए जमीन लूटने का काम किया था. लेकिन वर्तमान सरकार ने भी गोडडा के किसानों के साथ न्याय नहीं किया. उनकी लूटी गई जमीन को वापस दिलाने की कोई पहल नही कर रही है.
अब देश में किसानों के स्थान पर कंपनिया ही खेती करेंगे, किसान हो जाएंगे दिहाड़ी मजदूर
अडानी पवार प्लांट कि विरोध खंडे चिंतामणि साह कहते हैं कि अडानी पवार प्लांट ने लॉकडाउन के दौरान 70 प्रतिशत काम पूरा कर लिया गया है. आज भी 10 किसानों ने गैरकानूनी तरीके से हड़पी गई जमीन का मुआवजा नही लिया है. सरकार के रवैये से निराशा होती है. विकास के नाम पर जमीन की लूट की छूट कंपनियों को राज्य में मिली हुई है. न्याय के लिए हमारी लड़ाई से दूर राजनीतिक दल दूर भग जाते है आज पूरे देश में किसानों की जमीन सुरक्षित नहीं है. पूंजीपतियों के इशारे पर कानून ला कर किसानों के उपज पर कब्जा का प्रयास चल रहा है आगे चल कर कंपनियां खुले तौर पर किसानों की भूमि लूटेगी.
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गोडडा में कैसे किसानों की जमीन जबरन लिया गया चिंतामणि साह आगे कहते है संथाल परगना में एसपीटी एक्ट लागू है.झारखंड के संथाल परगना इलाके में एसपीटी एक्ट लागू है. जिसमें स्पष्ट लिखा है कि इलाके की जमीन की खरीद-बिक्री नहीं की जा सकती. एक्ट के सेक्शन 20 के अनुसार, सरकार सिर्फ लोक प्रयोजन के लिए ही जमीन का अधग्रिहण कर सकती है. लेकिन यहां सरकार द्वारा एक निजी कंपनी के लिए जमीन का अधिग्रहण किया गया है. अडानी पावर प्लांट में राज्य सरकार का कोई शेयर नहीं है. और इसका लाभ भी राज्य को नहीं मिलने वाला है.
आइये जानें भू-अर्जन कानून का किस तरह किया गया उल्लंघन
सेक्शन-8 का उल्लंघन
चिंतामणि साह कहते हैं कि भू-अर्जन कानून के सेक्शन-8 में कहा गया है, जिला में अगर पूर्व में किसी परियोजना के लिए जमीन का अधिग्रहण हुआ हो तो पहले उसका उपयोग किया जाये. साह ने बताया कि 2011 में भूषण स्टील प्लांट लगाने के लिए सुंदरपहाड़ी में 1100 एकड़ जमीन अधिग्रहण किया गया था. उस जमीन का उपयोग आज तक नही हुआ. इसके बाद भी बहुफसली भूमि जबरन तत्कालीन डीसी ने अधिग्रहित कर ली.
सेक्शन-26
भू-अर्जन कानून 2013 के सेक्शन-26 में फसल के आधार पर मूल्यांकन करने की बात है. साह कहते हैं कि एसपीटी एक्ट के प्रावधान के अनुसार, संथाल परगना की जमीन बिकाऊ नहीं है, तो किस आधार पर मूल्य का निर्धारण सरकार ने किसानों को जबरन मुआवजा दिया.
सेक्शन-5
भू-अधिग्रहण कानून 2013 के सेक्शन-5 में जनसुनवाई का प्रावधान है. साह कहते हैं कि 6 दिसंबर 2016 को अडानी पावर प्लांट के लिए जमीन अधिग्रहण संबंधी जनसुनवाई लाठी, बंदूक के बल पर और प्रशासन के सहयोग से की गयी. इस तरह सरकार ने जनसुनवाई को भी नौटंकी बना दिया और किसानों का पक्ष सामने नहीं आया.