Ranchi : पूर्व मंत्री देव कुमार धान ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में लोहार जाति को पिछड़ी जाति माना है. इसका हम स्वागत करते हैं. परंतु झारखंड में निवास करने वाली लोहरा जाति आदिवासी है तथा वे अन्य राज्य में निवास करने वाले लोहरा जाति से बिल्कुल अलग है. झारखंड में अनुसूचित जनजाति की सूची में सूचीबद्ध है. उन्होंने कहा कि झारखंड की लोहरा जाति आदिवासी समुदाय का अभिन्न अंग है. 1932-35 के सर्वे खतियान में लिपिकीय त्रुटि के कारण उनकी जाति लोहरा की जगह लोहार दर्ज हो गया है.
लोहार पिछड़ी जाति और लोहरा अनुसूचित जनजाति अलग-अलग
डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान मोरहाबादी रांची के द्वारा पिछड़ी जाति के लोहार और अनुसूचित जनजाति के लोहरा समुदाय का तुलनात्मक अध्ययन के उपरांत 2002 को जांच प्रतिवेदन झारखंड सरकार को सौंपी गयी है. जिसके आलोक में कार्मिक प्रशासनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग झारखंड सरकार के द्वारा पत्रांक संख्या 07/जाति 019-08/04, 355 दिनांक 19-01-2006 को आदेश जारी किया गया है. इसमें लोहार पिछड़ी जाति और लोहरा अनुसूचित जनजाति के अंतर को दर्शाया गया है.
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सरकार निगरानी समिति का गठन करे
ज्ञात हो कि राज्य के दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल अर्थात रांची, खूंटी, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा में रह रहे पिछड़ी जाति के लोहार, जिनके ऊपर झारखंड उच्च न्यायालय का आदेश आया है, वे लोहार इस प्रमंडल में खतियानी निवासी नहीं हैं. जो भी इन जिलों में खतियानी निवासी हैं, वे मूल रूप से लोहरा अनुसूचित जनजाति है. वे आदिवासी समुदाय के सदस्य हैं. देवकुमार धान ने कहा कि वे झारखंड सरकार से मांग करते हैं कि उच्च न्यायालय के आदेश को आदिवासी वर्ग की लोहरा जनजाति में थोपने का काम न हो. इसके लिए सरकार एक निगरानी समिति का गठन करे, ताकि झारखंड में निवास करने वाले आदिवासी लोहरा समुदाय के साथ किसी भी प्रकार की नाइंसाफी ना हो सके.
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