Rajnish Prasad
Ranchi: झारखंड गठन के बाद सर्व शिक्षा अभियान के तहत 2003 में पारा शिक्षकों को सरकारी स्कूलों में तैनात किया गया था. उस वक्त इनका चयन ग्राम सभा की ओर से किया जाता था. उन्हें मानदेय के तौर पर 10,000 रुपये दिये जाता थे. वो भी इन्हें हर महीने नहीं मिलता था. 5 से 7 महीनों में मानदेय दिया जाता था. चुनाव से पहले इन्हें हर सुविधा देने की बात कि जाती थी, लेकिन चुनाव के बाद इन्हें सरकार की लाठियों के अलावे कुछ नहीं मिला. आंदोलन और लाठीचार्ज में कई पारा शिक्षक की मौत हो चुकी है. पिछली हर सरकार में इनके मानदेय में कुछ न कुछ वृद्धि तो हुई, लेकिन नियमित तौर पर मानदेय मिलने में दिक्कत होती रही. पारा शिक्षक 2004 से सम्मान जनक मानदेय और स्थाई करने की मांग करते रहे हैं. वर्तमान में पारा शिक्षक वेतनमान की मांग को ले कर आंदोलन कर रहे हैं. बीते बुधवार को राज्य भर के पारा शिक्षक मुख्यमंत्री आवास घेरने निकले थे. गुरुवार को सुदिव्य कुमार सोनू ने 10 जनवरी तक इनकी वार्ता मुख्यमंत्री से करने की बात कही है.
हेमंत सरकार में राहत की उम्मीद पाले पारा शिक्षक
2019 झारखंड में जब हेमंत सोरेन कि सरकार बनी, तो पारा शिक्षकों को राहत हुई. हेमंत सरकार में डुमरी विधानसभा के विधायक जगरनाथ महतो को शिक्षा मंत्री बनाए गए थे, झारखंड के वे पहले शिक्षा मंत्री थे. जिन्होंने पारा शिक्षकों को पर्व त्यौहारों पर एडवांस मानदेय दिया. उन्होंने पारा शिक्षकों को स्थायी किया और पीएफ समेत कई सुविधाए देने की घोषणा की. हालांकि इन्हें अभी तक मानदेय और पीएफ की सुविधा नहीं दी गयी है. 2021 में पारा शिक्षकों के मानदेय में बढ़ोत्तरी की गई. जो पारा शिक्षक टेट पास थे, उनके मानदेय में 50 प्रतिशत और जो पारा शिक्षक टेट पास नहीं थे, उनके मानदेय में 40 प्रतिशत की वृद्धि की गई. वहीं जो पारा शिक्षक आकलन परीक्षा पास कर गए. उनके मानदेय 10 प्रतिशत का बढ़ाया गया. हर साल 4 प्रतिशत मानदेय बढ़ाया जाएगा.
होते रहे हैं आंदोलन
1 नवंबर 2004 को पहली बार पारा शिक्षक सम्मान मानदेय और स्थाई करने की मांग को ले कर आंदोलन किये. इस आंदोलन के बाद इनके इनके मानदेय में 1000 रुपये की बढ़ोतरी की गई. 2008 में अपनी मांगों को लेकर आंदोलन पर उतरे उस वक्त झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोडा थे, उस वक्त भी इनके ऊपर लाठीचार्ज किया गया. गिरिनाथ सिंह की अध्यक्षता में हाई लेवल कमेटी बनाई गई जिसमें रवींद्र नाथ महतो, सुखदेव भगत, अपर्णा सेनगुप्ता, पारा शिक्षक बिनोद बिहारी महतो और पारा शिक्षक बिनोद तिवारी सदस्य थे. कमेटी ने अपना रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. रिपोर्ट के आधार पर नियमावली बनायी गयी, लेकिन कुछ नहीं हुआ. 2010 में शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने. उन्होंने फिर से कमेटी बनायी. 2014 में फिर से मानदेय में बढ़ोत्तरी और स्थाई करने की मांग को लेकर आंदोलन किया. 2014 में मातृ अवकाश की सुविधा दी गई. 2016 में अपनी मांगों को लेकर फिर से आंदोलन पर उतरे पारा शिक्षक, उस तब मुख्यमंत्री रघुवर दास थे. 2018 में इनका आंदोलन फिर से तेज हुआ और कई दिनों तक अपनी मांगों को ले कर रांची के मोरहाबादी मैदान में बैठे रहे. इस आंदोलन में ऊपर लाठीचार्ज किया गया, जिसमें कई पारा शिक्षकों को अपनी जान गवानी पड़ी. रघुवर दास के कार्यकाल में इन्हें मानदेय 2-3 महीने देर से मिलता रहा. अब हेमंत सरकार से इनकी आस टिकी हुई है.