Shyam Kishore Choubey
हेमंत सरकार एक तरह से 28 जनवरी 2020 को अपने पूर्ण रूप-स्वरूप में आयी, जिसको अगले महीने बजट सत्र फेस करना था. इसके वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव सहित जगरनाथ महतो, बादल और मिथिलेश ठाकुर पहली बार मंत्री बने थे, हालांकि रामेश्वर उरांव पूर्व में केंद्र में मंत्री रह चुके थे. इन लोगों को तो खासकर, जबकि पूरी सरकार को ही सारा कामकाज समझना था. लगातार पांच वर्षों तक राज्य में विपरीत राजनीतिक गुण-धर्म की एनडीए सरकार रहने के कारण नौकरशाही को भी समझना-बूझना था. मुख्य सचिव डॉ डीके तिवारी रिटायर कर चुके थे, जबकि डीजीपी केएन चौबे को पुलिस आधुनिकीकरण महकमे का ओएसडी बनाकर दिल्ली रवाना किया जा चुका था.
ऐसी स्थिति में सुखदेव सिंह को मुख्य सचिव बना दिया गया, जबकि एमवी राव को डीजीपी का प्रभार दिया गया. दोनों अतिसंवेदनशील और महत्वपूर्ण पदों पर इन अधिकारियों की तैनाती से सरकार के प्रति पल भर में अच्छा संदेश चला गया. केएन चौबे हालांकि बीच बजट सत्र में 17 मार्च 2020 को दिल्ली भेज दिये गये थे, जबकि डीके तिवारी के रिटायरमेंट के तुरंत बाद पहली अप्रैल 2020 को सुखदेव सिंह को मुख्य सचिव बनाया गया था. बीस साल के झारखंड में वे 23वें मुख्य सचिव बने थे. यह बात यहां इसलिए पहले ही लिखी जा रही है ताकि सरकार की कार्यशैली समझी जा सके.
उधर सरकार बहुत कुछ बूझ-बाझ रही थी, इधर भाजपा और जेवीएम के खेमे में कुछ और ही पक रहा था. भाजपा चूंकि प्रतिपक्ष में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी
थी, इसलिए मुख्य विपक्षी दल का खिताब उसके हवाले था लेकिन इसके लीडर की
घोषणा लंबित थी. खासकर, संसदीय राजनीति में लंबी और लगातार पारी खेलने
वाले सीपी सिंह और नीलकंठ सिंह मुंडा आस लगाये बैठे थे कि उनको नेता प्रतिपक्ष का तमगा मिलेगा लेकिन कुछ हो-हवा नहीं रहा था. सीपी सिंह मुख्य सचेतक, स्पीकर और मंत्री रह चुके थे, जबकि नीलकंठ मुंडा के क्रेडेंशियल में संसदीय कार्य मंत्री और अन्य अहम विभागों का मंत्री पद दर्ज था. भाजपा का शीर्ष नेतृत्व मौन साधे हुआ था.
वहां तो खेल कुछ और ही चल रहा था. जैसा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 17 फरवरी को रांची के जगन्नाथपुर मैदान में हुई बड़ी स्वागत सभा में कहा, बाबूलाल मरांडी काफी मान-मनव्वल के बाद भाजपा में आने को राजी हुए हैं. इसके पहले संवैधानिक प्रक्रिया के तहत उनके दल जेवीएम का भाजपा में विलय कराया जा चुका था.
इसके शेष दो विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को निष्कासित कर अपना नया ठिकाना ढूंढने का रास्ता क्लियर किया जा चुका था. 11 फरवरी को जेवीएम कार्यसमिति की बैठक कर पार्टी के भाजपा में विलय और 17 फरवरी को बाबूलाल के भाजपा में बाकायदा शामिल होने की घोषणा कर दी गयी थी. इन सियासी कर्मकांडों को निभाते हुए बाबूलाल ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर सूचित कर दिया. इसी आधार पर चुनाव आयोग ने जेवीएम का सिंबल ‘कंघी’ फ्रीज कर दिया.
नये चलन की भाजपा में दो ही शीर्ष पुरुष हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और उनके हनुमान अमित अनिल चंद्र शाह, जिन्हें आमतौर पर अमित शाह के नाम से जाना जाता है. उन्हीं अमित शाह ने राजनीतिक व्यूह-रचना के तहत बाबूलाल और उनके कई समर्थकों की 17 फरवरी 2020 को भाजपा में पुनर्वापसी करायी. भाजपा और बाबूलाल ने अपने तईं तमाम सावधानियां बरती लेकिन बाबूलाल की परेशानियां उनकी गृहवापसी के बाद विकराल हो गयीं. यही है राजनीति का घनचक्कर. बाबूलाल के गृह-वास से भाजपा के कतिपय अखाड़िया नेताओं में मायूसी थी, क्योंकि उनका कद छोटा पड़ गया था लेकिन करते क्या, दिल्ली आंख तरेरे बैठी थी. उनका चिंतन इस हद तक जायज था कि वे दशकों से निरंतर पार्टी की सेवा करते आ रहे हैं लेकिन एक ‘भगोड़े’ को उनके समक्ष उच्च आसन दिया जा रहा है.
खैर, दूसरे दिन भाजपा विधायक दल की बैठक की खानापूरी कर बाबूलाल को विधानसभा में दल के नेता पद ‘चयनित’ कर लिया गया. संबंधित पत्र दल के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने स्पीकर को सौंप दिया. बाबूलाल को संतोष हुआ कि वापसी के साथ उनको मान-सम्मान मिला और सदन के अंकगणित के हिसाब से मुख्यमंत्री न सही, नेता प्रतिपक्ष का आसन तो मिल ही गया, लेकिन मैन प्रपोजेज गॉड डिस्पोजेज. बाबूलाल की यह प्रसन्नता क्षणिक साबित हुई. अपोजिशन बेंच में उनके बैठने की व्यवस्था तो कर दी गयीं, लेकिन स्पीकर ने नेता प्रतिपक्ष का मान नहीं दिया. उनके ‘मन’ में संशय उत्पन्न हो गया और उन्होंने पूरा मामला विधिक राय के लिए महाधिवक्ता के सुपुर्द कर दिया. जब बाबूलाल पर सदन में पेंच फंसा दिया गया तो उनकी डाल से बिछड़े और कांग्रेस के कंधे पर सवार हुए विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की के साथ भी समान न्याय करते हुए वही बर्ताव किया गया. हालांकि 18 फरवरी को दिल्ली जाकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के समक्ष प्रदीप और बंधु ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली थी.
रांची लौटकर उन दोनों यहां प्रदेश कार्यालय में भी सदस्यता ग्रहण की औपचारिकता पूरी की लेकिन सदन में उनको कांग्रेस विधायक की मान्यता मिलनी बाकी ही रही. बाबूलाल, प्रदीप और बंधु की दलीय मान्यता का सवाल महाधिवक्ता के पाले में डाल स्पीकर निश्चिंत हो गये. इसी के साथ 28 फरवरी 2020 से हेमंत सरकार के बजट सत्र की शुरूआत निर्विघ्न न हो सकी. बाबूलाल को नेता प्रतिपक्ष की मान्यता देने के सवाल पर कई दिनों तक सदन बाधित रहा. भाजपा विधायक सदन की कार्यवाही प्रारंभ होते ही नेता प्रतिपक्ष के मसले पर बवाल काटते रहे. वेल में उतर कर हंगामा करते रहे. कई दिनों तक ऐसा ही चला. प्रश्नकाल बाधित होता रहा. सामान्यतः शांत स्वभाव वाले बाबूलाल ने एक दिन तैश में आकर स्पीकर से यहां तक कह दिया कि मान्यता नहीं देनी तो डिस्क्वालिपफाइ ही कर दीजिये.
जैसा कि राजनीति में होता है, स्पीकर ने विधिक राय का रोना रोया तो मरांडी ने भरे सदन में कहा, अब इस सवाल पर हमारे विधायक वेल में नहीं जायेंगे, आपको जब निर्णय लेना होगा, ले लीजिएगा. कोरोना ने यहां भी इफेक्ट दिखाया और कई सारी अनुदान मांगें गिलोटिन पर चढ़ाकर पास कराते हुए सदन चार दिन पहले ही 23 मार्च को स्थगित कर दिया गया. नवंबर 2019 से चीन के बाद अमेरिका, यूरोप, इंग्लैंड आदि से होता हुआ जनवरी 2020 में कोरोना नामक अदृश्य वायरस केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली आदि प्रदेशों में घुसपैठ कर कोहराम मचाने लगा था. इसके प्रभाव से नोवल कोरोना या कोविड-19 नामक अतिसंक्रामक महामारी देखते-देखते तड़पा-तड़पाकर प्राण ले लेने पर आमादा थी. स्थिति इतनी विकट और अविश्वासभरी हो गई थी कि बगलवाले ने छींका या खांसा तो आप गये. मार्च के अंतिम सप्ताह से उसका झारखंड में भी इफेक्ट आने लगा था.
इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना योद्धाओं के सम्मान में 22 फरवरी की शाम अपनी-अपनी बालकनी या छत पर दीपक जलाने, ताली-थाली और शंख-घड़ियाल बजाने का आह्वान किया था. अगले दिन उन्होंने 24 मार्च की आधी रात के बाद यानी 25 मार्च से पूरे देश में लॉकडाउन लागू करने की घोषणा कर डाली थी.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार है.