Krishnan Iyer
CAA, NRC, NPR का क्या होगा? नफरत, दंगे और झूठ का मोदी सरकार का सबसे बड़ा हथियार अपनी मौत की ओर अग्रसर है. उत्तरप्रदेश के चुनाव में CAA मुद्दा नहीं रहेगा, ये तो तय है. दो दिन पहले संसद में यूनियन गवर्नमेंट ने CAA को लागू करने के लिए 9 जनवरी 2022 तक का समय बढ़ाने की बात कही है. मतलब तब तक के लिये इसे सस्पेंड कर दिया है.
10 जनवरी 2020 के बाद लगातार CAA को सस्पेंड किया जाता रहा है. पर जिस CAA कानून के नाम पर दंगे हुए या कथित रूप से करवाने के आरोप लगे, उसे लागू करने के लिये लगातार समय क्यों बढ़ाया जा रहा है. सवाल यह उठने लगा है कि क्या देश के गृह मंत्री अमित शाह इसे लागू कराने में विफल साबित हो गये हैं.
देखा जाये तो CAA का सबसे बड़ा निशाना था बंगाल, पंजाब, केरल, तमिलनाडु, असम और पूरा नॉर्थ ईस्ट. असम के अलावा बीजेपी की बाकी राज्यों में करारी हार हुई है. और कम से कम वर्ष 2026 तक बंगाल जैसे सूबे में CAA का नामलेवा कोई नहीं रहा. मोदी सरकार का पूरा प्लान फेल हो गया.
CAA तो पहला स्टेप है. CAA को पूरा करने के लिए NRC और NPR भी जरूरी है. देश के हर नागरिक को वापस लाइन में खड़ा होना पड़ेगा. शायद मोदी सरकार के रणनीतिकार अब यह समझने लगे हैं कि अगर इस रास्ते पर आगे बढ़ें, तो अबकी बार जनता उनको खुद चौराहे पर ले आए. साउथ, नॉर्थ ईस्ट और बंगाल में इसे लेकर क्या होगा, यह अब मोदी सरकार अच्छे से समझ चुकी है.
CAA में आजतक ये नहीं बताया गया है कि कौन-कौन से कागज से नागरिकता साबित होगी. दूसरी बात ये है कि अब तक पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से किसी ने भी CAA के तहत नागरिकता का आवेदन नहीं किया है. क्योंकि आवेदन की कोई प्रक्रिया आज तक तय नहीं की गई है.
मोदी सरकार पर विपक्ष का आरोप है कि CAA का सबसे बड़ा खतरा ये है कि CAA एक मुस्लिम विरोधी कानून है. इस कानून से तमिल, बंगाली, सिख जैसी कौम सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी. शायद यही वजह है कि मोदी सरकार अब CAA की जगह परिसीमन पर ज्यादा ध्यान दे रही है. हालांकि यह भी देश को बांटने वाला ही साबित हो सकता है. पर क्या परिसीमन पर भी CAA की तरह विफलता ही हाथ लगेगी!
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.