- इचाक व कटकमसांडी में लगभग 300 आवास है अधूरा
- मनरेगा के माध्यम से रोजगार मिलता है तो मजदूरी कम
- मकान नहीं बनने से मजदूरों को नहीं मिल रहा है काम
Pramod Upadhyay
Hazaribagh : हजारीबाग जिले में इन दिनों बालू की भारी किल्लत है. बालू के अभाव से कई सरकारी योजनाएं भी बाधित है. यहां कई जरूरतमंदों को सरकार ने अबुआ आवास दिया है, लेकिन बालू के बिना वह भी अधूरा पड़ा है. अब ऐसे में यह भी सवाल उठ रहा है कि अगर कोर्ट का आदेश समय पर नहीं मिलता है तो क्या जरूरतमंद व्यक्ति बरसात में अपने मकान में रह सकेंगे या फिर उन्हें किराए के मकान में ही रहना होगा. इधर अबुआ आवास और प्रधानमंत्री आवास पर भी प्रखंड कार्यालय से खूब जांच की जा रही है और लाभुक पर जल्द से जल्द अधूरे मकान को पूरा करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. जबकि सच्चाई यह है कि अबुआ आवास में मिलने वाली राशि की आधी कीमत बालू खरीदने में ही खर्च हो जा रही है. जिससे आवास अधूरा पड़ा है. अगर कोई लाभुक विभाग के दबाव में अधूरे मकान में या नए अबुआ आवास की शुरुआत कर रहा है तो सरकार की ओर से दी गई अबुआ आवास की पहली किश्त का वह केवल बालू खरीद पा रहा है. अब ना उन्हें दूसरी किस्त मिल रही है और ना ही वह मकान को आगे उठा पा रहे हैं.
अब ऐसे में इचाक प्रखंड और कटकमसांडी में लगभग 300 आवास अधूरे हैं. उन्हें विभाग के द्वारा जल्दी मकान तैयार करने के लिए नोटिस भी दिया जा रहा है. पूरा नहीं करने वाले व्यक्ति पर कार्रवाई एवं रिकवरी भी करने की बात कही जा रही है. वहीं मजदूर भी रोजगार के लिए काफी परेशान हैं. प्रत्येक वर्ष मकान निर्माण में उन्हें रोजगार मिलता था. लेकिन इस वर्ष बालू के अभाव में नए मकान बनाने वाले की संख्या मात्र 15% हो गई है. मकान की रिपेयरिंग करने वालों की संख्या 10% है. मजदूर की संख्या ज्यादा है. अगर उन्हें मनरेगा के माध्यम से रोजगार मिलता है तो मजदूरी कम है. वह प्राइवेट में काम करते हैं तो उनको लगभग 300 से लेकर 400 मजदूरी मिलती है. जबकि मिस्त्री की मजदूरी 500 से लेकर 600 होता है. ऐसे में अब उन्हें रोजगार नहीं मिल पा रहा है. अगर रोजगार किसी मकान में मिलता भी है तो मजदूरी कम कर दी जा रही है. अब या तो वह मजदूरी कम लें या तो फिर घर में बैठकर काम का इंतजार करें.
इस संबंध में कटकमसांडी के मजदूर रिजवान और मिस्त्री मोहम्मद सलीम ने बताया कि हमलोगों की मजदूरी पहले ज्यादा होती थी. क्योंकि काम ज्यादा होता था. लेकिन इस वर्ष ना मकान में काम हो रहा है और ना रिपेयरिंग का काम हो रहा है. यहां तक कि कई सरकारी भवन भी अधूरे हैं. मजदूर की संख्या ज्यादा है, अगर हम काम करना चाहें तो मकान बनाने वाले व्यक्ति सीधा मजदूरी की बात करते हैं. अगर शहर आते हैं तो एजेंट पहले से तैयार रहते हैं. वह काम चल रहे मकान में जाकर मजदूर देने का ठेका ले लेते हैं. जिसकी वजह से मकान बनाने वाले सीधा मजदूर से बात ना करके बल्कि वह मजदूर देने वाले ठेकेदार से बात करते हैं और मजदूरी भी कम होता है. ऐसे में अब झारखंड में नहीं रहने का फैसला ले लिया है. यहां के मजदूर अब वह दूसरे राज्य में मजदूरी करने के लिए विवश हैं.
बालू की किल्लत का फायदा उठा रहे माफिया
बालू की किल्लत का फायदा माफिया उठा रहे हैं. माफिया दोगुना या उससे भी अधिक कीमत पर बालू बेच रहे हैं. सरकारी राजस्व को तो नुकसान पहुंच ही रहा है, माफिया मालामाल हो रहे हैं. वहीं मकान बनाने वाले बालू की कीमत में गिरावट का इंतजार कर रहे हैं. इधर संवेदक भी बालू को लेकर परेशान हैं. वह सड़क, नाली, गली एवं कई भवन को बनाने का ठेका लिये है. जिसका समय भी निर्धारित किया गया है. वैसे में वह बालू के अभाव में धीमी गति से काम कर रहे हैं. यहां तक कि कई संवेदकों ने भी बालू समस्या को लेकर जिला प्रशासन को अवगत भी कराया है. इधर बालू माफिया भी बालू का कारोबार करते देखे जा रहे हैं. वह 2000 सेफ्टी का बालू 5000 में बेच रहे हैं. जबकि डेढ़ सौ सीएफटी बालू 6500 में चोरी छुपे बेच रहे हैं.
क्या कहते हैं लाभुक
इस संबंध में इचाक कटकमसांडी, बड़कागांव के दर्जनों लोगों ने बताया कि सरकार के द्वारा लाभ तो दिया जा रहा है पर बालू के अभाव में आवास अधूरा रह रहा है. इधर विभाग के द्वारा कभी जेल भेजने की धमकी तो कभी रिकवरी का बात की जा रही है. अगर बालू होता तो कोई ऐसा लाभुक नहीं है जो अपना मकान बनाना नहीं चाहेगा. सरकार के द्वारा दी गई राशि से केवल बालू ही खरीद पा रहे हैं. अगर ज्यादा पैसा होता तो सरकार से फिर आवास क्यों लेते. वह खुद मजदूरी कर मकान बना लेते.
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