हजारीबाग वन्यप्राणी अभयारण्य: यहीं पर उग्रवादियों ने पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी पर चलाई थी गोली
Pramod Upadhyay
Hazaribagh: जिले से करीब 15 किलोमीटर दूर एनएच-33 के किनारे 80 किमी में फैला हजारीबाग वन्यप्राणी अभयारण्य कभी नक्सलियों का पनाहगार हुआ करता था. समय इस तरह बदला कि अब यंहा पर्यटकों की भरमार है. कभी यहां गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई देती थी. माओवादी घने जंगलों का लाभ उठा कर जन अदालत लगाया करते थे, लेकिन वक्त बदला और नक्सलियों को यह स्थल छोड़ कर भागना पड़ा, जहां अब जंगली जीव-जंतुओं की आहट सुनाई पड़ती है. हजारीबाग समेत झारखंड और बाहर के राज्यों से भी सैलानी यहां की मनोरम प्राकृतिक वादियों की छटा निहारने के लिए आते हैं. सैलानी यहां कुछ वक्त बिताने पहुंचते हैं. कभी इसे नेशनल पार्क का दर्जा प्राप्त था. लेकिन घटती जंगली जीवों की वजह से अब यह वन्यप्राणी अभयारण्य कहलाने लगा है. यह अभयारण्य बिहार और बंगाल की सीमा से जुड़ा हुआ है. यहां तरह-तरह के जानवरों, मोटे मोटे पेड़ों और जंगल का नजारा देखने के लिए जगह-जगह टावर बने हुए हैं. इसमें एक नंबर टावर पर चढ़ कर देखने से कई अद्भुत चीजें दिखती हैं. इसमें जंगल का पूरा नजारा देखा जा सकता है.
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90 के दशक में था नक्सलियों का बोलबाला
90 के दशक में यहां उग्रवादियों का बोलबाला था. पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी पर यहां वर्ष 2003 में गोलियां भी चलीं थीं. वहीं राज्यपाल का काफिला भी आधे रास्ते से लौट गया था. वर्चस्व को लेकर माओवादी और नक्सली संगठन टीपीसी के बीच एक बार मुठभेड़ भी हुई थी. उसमें टीपीसी के तीन सदस्यों की मौत भी हुई थी. माओवादियों का वर्चस्व इतना बढ़ गया कि जन अदालत लगा कर मौत का फरमान भी सुनाने लगे थे. लेकिन माहौल बदला और सरकार की ओर से पर्यटन को बढ़ावा दिया गया, जिससे माओवादियों की आमद कम होती चली गयी.
नया साल मनाने उमड़ी सैलानियों की भीड़
अब रजडेरवा गेस्ट हाउस में बड़ी संख्या में सैलानी आकर ठहरते हैं. वन्य अभयारण्य में भ्रमण कर जंगली जीव-जंतुओं के साथ- साथ प्राकृतिक छटा का आनंद उठाते हैं. कैफेटेरिया में चाय- कॉफी के साथ लजीज व्यंजन का लुत्फ उठाते हैं. परिजनों और मित्रों के साथ वहां चने जैम में वोटिंग का मजा ही कुछ और ही है. गुजरते 2023 और नए साल 2024 के स्वागत के लिए वहां सैलानियों की भीड़ उमड़ पड़ी है. शहर, आसपास के गांवों और दूरदराज से भी लोग वन्यप्राणी अभयारण्य में पिकनिक मनाने के लिए अपने परिवार और दोस्तों के साथ भारी संख्या में पहुंच रहे हैं.
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ग्रामीणों को मिलता है रोजगार
वही वही रजडेरवा के आसपास बस छोटे-छोटे गांवों के ग्रामीणों के चेहरे पर मुस्कान है. वो कहते हैं कि एक वक्त था कि जंगल में प्रवेश करने में भी डर लगता था. लेकिन अब यहां सैलानियों की भीड़ उमड़ रही है. इससे हम ग्रामीणों को रोजगार भी मिल रहा है. इस पार्क में छोटी-छोटी दुकान लगाकर सैलानियों की सेवा करने का मौका मिल रहा है. इससे इलाके में खुशहाली आयी है. रोजगार भी मिल गया है. अगर सरकार इस स्थल को सुंदरीकरण कर दे, तो यहां देश-विदेश से भी लोग आना ज्यादा पसंद करेंगे.