Vishwajit Bhatt
Jamshedpur : बच्चों की मौत के मामले में झारखंड की चर्चा देश-दुनिया में होती रहती है. हो-हल्ला मचता है, टीम गठित होती है और कुछ दिन बाद सब शांत. बच्चों को दर्जनों जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिए टीके लगाए जाते हैं. सभी तरह के टीके बाजार में उपलब्ध हैं. लेकिन अफसोस ! गरीब पैसे की तंगी के कारण सभी टीके नहीं लगवा पाते हैं और सरकार की अपनी मजबूरियां है. बाजार में 21 तरह की बीमारियों के टीके उपलब्ध हैं. लेकिन सरकारी अस्पतालों में सिर्फ आठ बीमारियों के टीके ही दिए जाते हैं.
प्रति एक हजार बच्चों में सलाना मृत्यु दर
नवजात (जन्म के 28 दिन के भीतर) – 21
शिशु (जन्म के एक साल के भीतर) – 30
जन्म के पांच साल के भीतर – 34
बाजार में उपलब्ध टीके व कीमत
बीमारी – टीका (इंजेक्शन) – खुराक – कीमत
पोलियो – आईपीवी – तीन – 650
निमोनिया – पीसीवी – तीन – 2400
निमोनिया – सिनफ्लोरिक्स – तीन – 3800
टायफायड – टीसीवी – दो – 1945
फ्लू – फ्लू टेट्रा – दो – 2170
मेनिगोकॉकल – एमसीवी – दो – 4000
हेपेटाइटिस-ए – हेप-ए – दो – 1950
जापानी बुखार – जेई-एन – दो – 650-800
मीजल्स, मम्स, रूबेला – एमएमआर-2 – दो – 600
चिकनपॉक्स – दो – 2000
चिकनपॉक्स – पीवीसी बूस्टर – एक – 2400-3800
पोलियो बूस्टर – आईपीवी – एक – 650-700
सर्वाइकल कैंसर – गार्डासिल (सर्वारिक्स) – दो – 3000
सर्वाइकल कैंसर – देशी टीका- (सेरवेवेक) दो – 200-400
लिवर कैंसर – हेपावैक – तीन – 1000
सरकार जो टीके लगाती है, उसका बाजार कीमत
टीका – दाम (रुपये में)
बीसीजी व ओपीवी – 420
हेपेटाइटिस-बी – 250
पेंटावेलेंट – दर्द वाला 600 व दर्द रहित 3100
रोटावायरस – 680
आईपीवी – 680
पीसीवी – 2400-4000
खसरा-रूबेला – 800
जेई-1, 2 – 800
टीके पर हर साल सरकारी खर्च 530.40 करोड़
उपलब्ध आंकड़े के अनुसार झारखंड सरकार हर साल आठ लाख बच्चों का टीकाकरण कराती है. बाजार भाव के अनुसार जन्म से लेकर पांच वर्ष की आयु तक एक बच्चे के टीकाकरण पर सरकार को 6,630 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. इस हिसाब से आठ लाख बच्चों के टीकाकरण पर सरकार को कुल पांच अरब, 30 करोड़, 40 लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं.
सभी तरह के टीके लगाए तो खर्च होंगे 2193 करोड़
इस समय बाजार में कुल 15 तरह टीके हैं. सक्षम व्यक्ति अपने बच्चों को ये टीके लगवाते हैं. गरीब परिवार के लोग सरकारी अस्पताल में टीके लगवाते हैं. सरकारी अस्पतालों में सभी तरह के टीके नहीं लगते. अगर सरकार सभी 15 तरह के टीके लगाये तो प्रति बच्चा 27,415 रुपये खर्च करने पड़ेंगे. इस हिसाब से कुल आठ लाख बच्चों के टीकाकरण पर 21 अरब, 93 करोड़, 20 लाख रुपये खर्च करने पड़ेंगे.
कड़वी है सच्चाई
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक निमोनिया के कारण 2018 में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत के मामले में भारत दूसरे स्थान पर रहा. इस बीमारी से भारत में 1.77 लाख बच्चों की मौत हो गई. हेपेटाइटिस बी से भारत में हर साल दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है. कैंसर को लेकर आए हालिया शोध से पता चला कि भारत में 14 साल तक के 50 से ज्यादा बच्चों व किशोरों की मौत हर रोज कैंसर से हो जाती है.
79 साल के डॉक्टर बचा रहे जान तो सरकार क्यों नहीं?
टाटा मेन हॉस्पिटल (टीएमएच) के 79 साल के सेवानिवृत्त शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. जेएन वेगड खुद आगे आकर बच्चों का टीकाकरण कर रहे हैं और गरीब व असहाय लोगों के बच्चों की जान बचा रहे हैं. वे गरीब व असहाय लोगों के बच्चों को अपनी जेब से 50 प्रतिशत छूट देकर तमाम जानलेवा बीमारियों के टीके लगवा रहे हैं. उनका यह अभियान पिछले पांच साल से चल रहा है. वे इतने वृद्ध हैं कि उन्होंने प्रैक्टिस भी छोड़ दी है, लेकिन बच्चों को टीका लगाने में पीछे नहीं हटते हैं. अब सवाल ये उठता है कि जब एक वयोवृद्ध चिकित्सक ऐसा बीड़ा उठा सकते हैं, तो सरकार आगे आकर बच्चों की जान बचाने की पहल क्यों नहीं कर रही है?
झारखंड के 196 में 68 प्रखंड हाई रिस्क जोन में
नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे-5 के आंकड़ों में झारखंड में बच्चों के टीकाकरण की स्थिति को दयनीय बतायी गयी है. राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में झारखंड के कुल 196 प्रखंडों में से 68 प्रखंडों को हाई रिस्क जोन में रखा गया है. 120 प्रखंड मीडियम रिस्क जोन में है, तो आठ प्रखंडों को लो रिस्क जोन में रखा गया है. झारखंड में जीरो डोज बच्चों की संख्या की भी निगरानी होती है. इसकी स्थिति असंतोषजनक है.
लगातार हो रहा टीकाकरण : सिविल सर्जन
पूर्वी सिंहभूम जिले के सिविल सर्जन डॉ. साहिर पाल ने कहा कि जिले में लगातार टीकाकरण चलता है. ग्रामीण क्षेत्र के आंगनबाड़ी केंद्रों में हर सप्ताह गुरुवार और शनिवार को और शहरी क्षेत्र के आंगनबाड़ी केंद्रों में सप्ताह में चार दिन बच्चों को टीके लगाए जाते हैं.