Pravin Kumar
Ranchi : झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक चमरा लिंडा ने कहा है कि जून 2016 में हुए राज्यसभा चुनाव में जिस तरह की बातें सामने आ रही हैं, उससे वह काफी आहत महसूस कर रहे हैं. लगातार न्यूज़ से बातचीत में चमरा ने कहा कि पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन को सबके सामने सच बताना चाहिए कि मैं किन हालात में वोट नहीं दे सका था. उन्होंने कहा कि वोटिंग की शाम तक मैं इंतजार करता रहा, लेकिन पार्टी का कोई पदाधिकारी वोट दिलाने के लिए मुझे लेने अस्पताल नहीं आया. जबकि हेमंत सोरेन ने कहा था कि वह खुद मुझे लेने आयेंगे. चुनाव के दिन चार बजे करीब मैंने खुद संपर्क किया, तब मुझे संकेत दिया गया कि मेरे वोट की अब जरूरत नहीं है.
10 जून 2016 को आर्किड अस्पताल में चमरा से मिले थे हेमंत
घटनाक्रम बताते हुए चमरा लिंडा ने कहा कि चुनाव से तीन माह पूर्व से ही मैं बीमार था. चुनाव के एक सप्ताह पहले आर्किड अस्पताल में इलाज करा रहा था. इस बीच एक झूठे मामले में मेरे खिलाफ वांरट निकला गया था. मैं कहां हूं, इसकी जानकारी लोगों को नहीं थी. हमने पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष को सूचना दी कि मैं अपना इलाज आर्किड हॉस्पिटल में करा रहा हूं. हेमंत सोरेन 10 जून को लाव-लश्कर के साथ आर्किड अस्पताल आये. उनसे मैंने कहा कि मैं वोट देना चाहता हूं. मेरे खिलाफ वारंट निकला गया है. सोरेन ने आश्वस्त किया और कहा कि वह खुद वोट दिलाने के लिए ले जायेंगे. मैं शाम तक इंतजार करता रहा. पार्टी का कोई नेता हमें लेने नहीं पहुंचा.
संघर्ष के बल पर जगह बनाई है, सम्मान से बड़ा कुछ नहीं
चमरा लिंडा ने कहा कि मैंने राजनीति में संघर्ष के बल पर अपनी जगह बनाई है. मेरे लिए मान-सम्मान से बड़ा कुछ नहीं है. इस मामले में तरह-तरह की बात हो रही है.यहां तक कहा जा रहा है कि वोट नहीं देने के लिए मैंने पैसे लिये. अब पार्टी और मुख्यमंत्री का कर्तव्य बनता है कि सभी तथ्यों को सामने लायें. वारंट के बाद भी मैं वोट देने के लिए जाने को तैयार था. आखिर क्यों नहीं पार्टी के पदाधिकारी मुझे वोट दिलाने ले गये.
जगन्नाथपुर थाना में दर्ज है हॉर्स ट्रेडिंग का केस
राज्यसभा चुनाव 2016 में गड़बड़ी को लेकर जगन्नाथपुर थाना में दर्ज केस में हॉर्स ट्रेडिंग से संबंधित साक्ष्य एकत्र किये जा रहे हैं. एडीजी सीआइडी अनिल पालटा ने बिशुनपुर के विधायक चमरा लिंडा और पांकी के तत्कालीन विधायक बिट्टू सिंह के मामले में भी जांच का निर्देश रांची पुलिस को दिया है. लेकिन चमरा लिंडा के बयान ने मामले को अलग ही कोण दे दिया है,. चुनाव के वक्त यह भी कयास लगाया जा रहा था कि झामुमो की अंदरूनी राजनीति के कारण बसंत सोरेन की हार हुई. चर्चा यह भी है कि बसंत सोरेन के चुनाव जीतने से पार्टी के वैसे पदाधिकारियों की मुश्किल बढ़ सकती थी, जो तब चुनाव प्रबंधन में लगे थे.
बसंत की हार से झामुमो का लचर चुनाव प्रबंधन सामने आया
जून 2016 के राज्यसभा चुनाव में झामुमो प्रत्याशी बसंत सोरेन को हार का सामना करना पड़ा था. दो सीटों पर हुए चुनाव में संख्या बल के आधार पर एक-एक सीट भाजपा और झामुमो के खाते में जानी तय थी. लेकिन झामुमो उम्मीदवार बसंत सोरेन को हार का मुंह देखना पड़ा था. भाजपा ने अपने दोनों प्रत्याशियों को जीता लिया. झामुमो खेमे के दो विधायकों की क्रॉस वोटिंग और दो के अनुपस्थित रहने के कारण झामुमो प्रत्याशी बसंत सोरेन की हार हुई थी. भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी 29 वोट और महेश पोद्दार 26.66 वोट लाकर जीते थे. बसंत सोरेन के पास कुल 30 वोट थे, पर उन्हें 26 वोट ही मिले. विपक्ष की ओर से झामुमो विधायक चमरा लिंडा और कांग्रेस के पांकी से विधायक बिट्टू सिंह वोट नहीं डाल पाये थे.
क्या चुनाव प्रबंधन में लगे लोग बसंत को हराना चहते थे!
संख्या बल रहते हुए झामुमो उम्मीदवार बसंत सोरेन चुनाव हार गये थे. इस हार के लिए पार्टी के भीतर विशनपुर विधायक चमरा लिंडा को गाहे-बगाहे जिम्मेवार माना जाता है. लेकिन चमरा का बयान सामने आने के बाद राज्यसभा चुनाव का प्रबंधन कर रहे झामुमो के नेताओं पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. इनमें हेमंत सोरेन के साथ साये ही तरह हमेशा मौजूद एक शख्स पर भी उंगलियां उठ रही हैं. यह चर्चा भी थी कि बसंत सोरेन के चुनाव जीतने से उन्हें और पार्टी के कुछ अन्य पदाधिकारियों को परेशानी होगी.