Anand Kumar
आम तौर पर केंद्र सरकार और ज्यादातर राज्य सरकारों में यह परंपरा रही है कि अगर संसद अथवा विधानसभा का सत्र चल रहा हो, तो सरकारें बड़े नीतिगत निर्णयों की जनकारी सदन के माध्यम से जनता को देती हैं. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब सदन चल रहा हो, तो देश अथवा जनता की जनता अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से इसमें भाग ले रही होती है. सदन में जनता से जुड़े मुद्दों पर सवाल पूछे जाते हैं. विभिन्न विषयों पर चर्चा की जाती है, विधेयक लाये जाते हैं और बड़े फैसले लिये जाते हैं.
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लेकिन झारखंड में इस परंपरा का पालन शायद ही कभी किया गया है. झारखंड को बने 20 वर्ष हो गये. मौजूदा विधानसभा झारखंड की पांचवीं विधानसभा है. चालू बजट सत्र इस पंचम विधानसभा का चौथा सत्र है. इस सत्र तक सदन की यह 21वीं बैठक है. झारखंड की पहली विधानसभा में कुल 14 सत्र हुए और कुल 115 बैठकें हुईं. दूसरी विधानसभा में सत्रों की संख्या 12 थी और बैठकों की संख्या 117. तीसरी विधानसभा 14 सत्रों में चली और इसकी 97 बैठकें हुईं. चौथी विधानसभा में सर्वाधिक 17 सत्र चले और कुल 127 बैठकें हुईं.
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संभवतः यह पहली बार हुआ
लेकिन संभवतः यह हेमंत सरकार में ही पहली बार हुआ है, जब मंत्रिपरिषद ने कोई बड़ा नीतिगत फैसला लिया और इसकी जानकारी नियमित ब्रीफिंग में न देकर सदन में दी. पिछले 12 मार्च को झारखंड मंत्रिपरिषद ने बेरोजगारों को सालाना 5000 भत्ता, निजी क्षेत्र में स्थानीय युवाओं को 75 प्रतिशत आरक्षण तथा सड़क हादसे में मौत होने पर आश्रित को एक लाख रुपया मुआवजा देने का फैसला किया था. लेकिन कैबिनेट की बैठकों में होनेवाली नियमित ब्रीफिंग में कैबिनेट सचिव अजय कुमार सिंह ने कहा था कि कुछ फैसलों के बारे में वह नहीं बता सकते, इस बारे में मुख्यमंत्री स्वयं बतायेंगे.
स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा
कैबिनेट की बैठक से लौट कर मेरे वरिष्ठ सहयोगी ने जब इस बात की चर्चा मुझसे की तो मैंने उन्हें कहा भी था कि जरूर सदन का सत्र जारी होने की वजह से इसकी घोषणा नहीं की गयी है. क्योंकि मुख्यंत्री स्वयं इसकी जानकारी सदन को देंगे. यही स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा रही है. लेकिन चूंकि झारखंड में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था और क्रेडिट लेने की होड़ में सरकारें प्रेस कांफ्रेस या नियमित ब्रीफिंग में बड़े नीतिगत और लोकलुभावन फैसलों की जानकारी देती रही थीं. इसलिए यह विश्वास कर पाना मुश्किल था कि सरकार दो दिन तक सदन की कार्यवाही आरंभ होने का इंतजार करेगी. लेकिन ऐसा ही हुआ.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोमवार को चलते सदन में बेरोजगारी भत्ता, निजी क्षेत्र में आरक्षण और दुर्घटना में मृतक के आश्रितों को मुआवजा देने की तीन बड़ी घोषणाएं कर संसदीय प्रणाली और परंपराओं में अपनी गहन आस्था और विश्वास का परिचय दिया. उन्होंने कहा, हम आयेंगे-जायेंगे, सरकार बनेगी-गिरेगी, लेकिन संस्थाएं बनी रहनी चाहिए.
मंत्रिपरिषद के ये फैसले 12 मार्च को ले लिये गये थे
मुख्यमंत्री ने कहा कि मंत्रिपरिषद ने ये फैसले 12 मार्च को ही ले लिये थे. किंतु बजट सत्र होने की वजह से प्रदेश सरकार ने लोकतांत्रिक मर्यादा और संसदीय परंपरा को ध्यान में रखते हुए नीतिगत निर्णय पर बाहर कोई भी आधिकारिक या सार्वजनिक घोषणा नहीं की. ऐसा करना सदन की अवमानना होती है. इसलिए वह राज्य मंत्रिमंडल की ओर से लिये गये नीतिगत फैसले से आज सदन को अवगत कराना चाहते हैं.
हेमंत सोरेन झारखंड के पहले मुख्यमंत्री नहीं हैं. लेकिन वे पहले ऐसे मुख्यमंत्री जरूर हैं, जिन्होंने मीडिया में लोकप्रियता और वाहवाही की कीमत पर संसदीय शालीनता और मर्यादा को तरजीह दी. राजनीतिक नेताओं के लिए ऐसा कर पाना मुशिकल होता है. आज के समय में, जब संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिशें जारी हैं, हेमंत सोरेन ने झारखंड में एक स्वस्थ परंपरा को शुरू करने की पहल की है. इसकी सराहना और स्वागत किया जाना चाहिए. उम्मीद है कि यह सरकार और इसके बाद आनेवाली सरकारें इसका अनुसरण करती रहेंगी.
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