महाभारत का उदाहरण दे झारखंड हाईकोर्ट ने बेटे को दिया आदेश
एक व्यक्ति पर जन्म के साथ कारण कुछ ऋण होते हैं, उसमें माता-पिता का ऋण भी शामिल होता है, जिसे हमें चुकाना होता है
Vinit Abha Upadhyay
Ranchi: झारखंड हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में आदेश दिया है कि बेटे को हरहाल में अपने बुजुर्ग पिता को गुजारे के लिए रकम देनी होगी. हाईकोर्ट ने परिवार अदालत के उस फेसले पर मुहर लगाई, जिसमें बेटे को आदेश दिया गया था कि उसे अपने पिता को हर महीने 3000 रुपए बतौर भरण-पोषण देने होंगे. इस फैसले के खिलाफ मनोज नाम के शख्स ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
अपने इस फैसले में अदालत ने कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं. अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि यदि आपके माता-पिता आश्वस्त हैं, तो आप भी आश्वस्त महसूस करते हैं, यदि वे दुखी हैं, तो भी आप दुखी महसूस करेंगे. माता-पिता बीज हैं, तो आप पौधा हैं,आपको अपने माता-पिता की अच्छाई और बुराई दोनों विरासत में मिलती है और एक व्यक्ति पर जन्म लेने के कारण कुछ ऋण होते हैं, जिसमें पिता और माता का ऋण भी शामिल होता है, जिसे हमें चुकाना होता है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सुभास चांद की कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई.
क्या है मामला
दरअसल, कोडरमा की परिवार अदालत ने एक व्यक्ति को उसके पिता को 3000 रुपए का मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था, जिसके खिलाफ मनोज नाम के व्यक्ति ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी. सुनवाई में अदालत को यह बताया गया कि पिता के पास कुछ कृषि योग्य भूमि है, फिर भी वह उस पर खेती करने में सक्षम नहीं हैं. वह अपने बड़े बेटे प्रदीप कुमार साव पर भी निर्भर है, जिसके साथ वह रहता है. पिता ने पूरी संपत्ति में अपने छोटे बेटे मनोज साव को बराबर-बराबर हिस्सा दिया है, लेकिन 15 साल से अधिक समय से उनका भरण-पोषण उनके छोटे बेटे ने नहीं किया है. पिता ने अदालत को बताया कि मनोज कुमार गांव में एक दुकान चलाता है, जिससे उसे प्रति माह 50,000 रुपए की कमाई होती है इसके अलावा कृषि भूमि से उसे प्रति वर्ष 2,00,000 रुपये की अतिरिक्त आय होती है. इस पर परिवार अदालत ने छोटे बेटे को अपने पिता को 3000 रुपए हर महीने देने का आदेश दिया. इसके खिलाफ छोटे बेटे मनोज ने हाईकोर्ट की शरण ली थी.
हाईकोर्ट ने दी ये दलील
हाईकोर्ट के जस्टिस सुभाष चांद ने अपने आदेश में महाभारत के दौरान यक्ष और युधिष्ठिर के बीच हुई बातचीत का भी जिक्र किया है. उन्होंने लिखा- महाभारत में यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा: पृथ्वी से भी अधिक वजनदार क्या है? स्वर्ग से भी ऊंचा क्या है? हवा से भी क्षणभंगुर क्या है? और घास से भी अधिक असंख्य क्या है? इस पर युधिष्ठिर ने उत्तर दिया: मां धरती से भी भारी है, पिता स्वर्ग से भी ऊंचा है, मन हवा से भी क्षणभंगुर है और हमारे विचार घास से भी अधिक असंख्य हैं. इसकी व्याख्या करते हुए जस्टिस सुभाष चांद ने बेटे को अपना पवित्र कर्तव्य निभाने का आदेश दिया है.