Ranchi: झारखंड हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि डीएनए टेस्ट कराने का आदेश स्वाभाविक रूप से पारित नहीं किया जा सकता है. क्योंकि ऐसा करना किसी व्यक्ति की निजता और शारीरिक स्वायत्तता पर कब्जा करने जैसा हो सकता है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की कोर्ट ने पॉक्सो अधिनियम के तहत रेप के आरोपी की अपनी और बच्चे की डीएनए जांच कराने की मांग को लेकर दाखिल याचिका को खारिज कर दिया.
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सुनवाई के दौरान राज्य के वकील ने तर्क दिया कि प्रार्थी पर बच्ची से रेप का गंभीर आरोप हैं. हर मामले में डीएनए परीक्षण करना कोई नियम नहीं है. याचिकाकर्ता द्वारा आईपीसी की धारा 376 के तहत किए गए अपराध के मामले में डीएनए परीक्षण के परिणाम का कोई फायदा नहीं होगा. इसके साथ ही अदालत में यह भी तर्क दिया कि बलात्कार के मामले में चिकित्सा साक्ष्य हमेशा अंतिम नहीं होता है, लेकिन चिकित्सा साक्ष्य द्वितीयक साक्ष्य की भूमिका निभाता है.
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दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 376 के तहत मामले को तय करने के लिए, बच्चे का पितृत्व प्रासंगिक नहीं है. क्योंकि मौखिक साक्ष्य पर इसका फैसला किया जा सकता है, इसलिए डीएनए परीक्षण कराना बच्चे के विचार के लिए प्रासंगिक नहीं होगा.