NewDelhi : जिन छात्राओं ने हिजाब बैन के खिलाफ याचिका दायर की है वे कट्टरपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के प्रभाव में ऐसा कर रही हैं. हिजाब विवाद को लेकर कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील पेश करते हुए आज आठवें दिन मंगलवार को यह कहा. बता दें कि हिजाब बैन पर दाखिल याचिकाओं की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. सुनवाई के क्रम में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कर्नाटक सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि PFI संगठन लड़कियों को मोहरा बनाकर सांप्रदायिक सौहार्द्र को भंग करने की साजिश कर रहा है.
SC continues hearing the petitions against Karnataka HC verdict which upheld the #HijabBan in educational institutions
Solicitor General Tushar Mehta, appearing for the respondent, submits Karnataka Govt’s order recommending that all students will wear the prescribed uniform pic.twitter.com/uppu55dcfJ
— ANI (@ANI) September 20, 2022
SG Mehta, representing Karnataka Govt, had told SC that a movement started on social media by an org called Popular Front of India. He says there were continuous social media messages that start wearing Hijab and this was not a spontaneous act but part of a larger conspiracy.
— ANI (@ANI) September 20, 2022
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2021 तक किसी लड़की को हिजाब बैन से परेशानी नहीं
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की बेंच के समक्ष कहा कि 29 मार्च 2013 को उडुपी के सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज ने प्रस्ताव पास करके यूनिफॉर्म तय की. उस समय हिजाब को यूनिफॉर्म का हिस्सा नहीं बनाया गया. उस समय किसी भी लड़की को यूनिफॉर्म से परेशानी नहीं हुई. सॉलिसिटर जनरल ने कहा, याचिकाकर्ताओं ने भी जब 2021 में इस कॉलेज में एडमिशन लिया तो उन्होंने भी यूनिफॉर्म के नियमों का पालन किया.
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ये बच्चे वही कर रहे थे, जो PFI उनसे करवा रही थी
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 2022 में PFI ने सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चलाया, जिसका मकसद था लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करके उपद्रव फैलाना. ऐसा नहीं है कि कुछ बच्चियों ने अचानक से तय किया कि वे हिजाब नहीं पहनेंगी. ये सब सुनियोजित षड्यंत्र के तहत हुआ है. ये बच्चे वही कर रहे थे, जो PFI उनसे करवा रही थी.
सॉलिसिटर जनरल के अनुसार अगर राज्य सरकार ने 5 फरवरी को नोटिफिकेशन जारी कर छात्राओं को ऐसे कपड़े पहनने से न रोका होता जो शांति, सौहार्द्र और कानून व्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकते हैं, तो यह कर्तव्य के प्रति लापरवाही होती.
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कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका
याद करें कि 15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट ने उडुपी के सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज की कुछ मुस्लिम छात्राओं द्वारा दायर क्लास में हिजाब पहनने की मां वाली याचिका खारिज कर दी थी. कोर्ट के इसी फैसले को चुनौती देते हुए कुछ लड़कियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिस पर सुनवाई हो रही है. याद करें कि 15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट ने उडुपी के सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज की कुछ मुस्लिम छात्राओं द्वारा दायर क्लास में हिजाब पहनने की मां वाली याचिका खारिज कर दी थी. कोर्ट के इसी फैसले को चुनौती देते हुए कुछ लड़कियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिस पर सुनवाई हो रही है.
सुप्रीम कोर्ट में मौखिक सुनवाई पूरी हो गयी
हिजाब विवाद में सुप्रीम कोर्ट में मौखिक सुनवाई पूरी हो गयी है. खबर है कि कोर्ट ने सभी पक्षों को बाकी दलीलों को लिखित में दाखिल करने के लिए कहा है. सुनवाई के दौरान जस्टिस धूलिया ने कहा कि क्या हम आवश्यक धार्मिक प्रथाओं को अलग कर स्थिति से नहीं निपट सकते? इस पर याचिकाकर्ता के वकील दुष्यंत दवे ने जवाब दिया कि हाईकोर्ट ने तो केवल जरूरी धार्मिक प्रथा पर ही मामले को निपटा दिया.
कोर्ट को इस सवाल का फैसला करना होगा कि क्या कोई धार्मिक प्रथा धर्म का एक अभिन्न अंग है या नहीं, हमेशा इसबात पर सवाल उठेगा कि धर्म का पालन करने वाले समुदाय द्वारा इसे ऐसा माना जाता है या नहीं. एक समुदाय तय करता है कि कौन सी प्रथा उसके धर्म का एक अभिन्न अंग है, क्योंकि समुदाय मेअधिकांश लोगों की राय सम्मलित होती है. अगर समुदाय की आवाज नहीं सुनी गई तो विरोध का का स्वर उठेगा.
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