LagatarDesk : देशभर में पेट्रोल-डीजल की कीमतें आसमान छू रही हैं. लेकिन आम जनता को महंगे पेट्रोल-डीजल से थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद है. दरअसल तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक (OPEC) और रूस समेत अन्य सहयोगी देशों ने जुलाई-अगस्त से कच्चे तेल (Crude Oil ) का उत्पादन (Production) 50 फीसदी बढ़ाने का फैसला किया है. (पढ़े, अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन ने कहा, भारत में धार्मिक स्थलों और अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ रहे हैं )
ओपेक के फैसले से घट सकते हैं कच्चे तेल के दाम
जानकारी के अनुसार, ओपेक समेत अन्य सहयोगी देशों ने कच्चे तेल का उत्पादन प्रतिदिन 6,48,000 बैरल करने का फैसला किया है. जो फिलहाल रोजाना 4.32 लाख बैरल है. ओपेक देशों के इस कदम से वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम में गिरावट आयेगी. जिससे अमेरिका, भारत समेत कई देशों में पेट्रोल-डीजल के दाम घटेंगे. अगर पेट्रोल-डीजल के दाम में गिरावट आयी तो आम जनता को महंगे तेल और इससे बढ़ती महंगाई से राहत मिल सकती है.
कोरोनाकाल में ओपेक देशों ने कच्चे तेल उत्पादन में की थी कटौती
बता दें कि कोरोना काल में कच्चे तेल की खपत कम हो गयी थी. जिसके कारण क्रूड ऑय़ल के दाम कम हो गये थे. दाम को कंट्रोल करने के लिए तेल उत्पादक देशों ने कच्चे तेल के उत्पादन घटाकर प्रतिदिन 4.32 लाख बैरल कर दिया था. लेकिन अब क्रूड ऑय़ल के उत्पदन को धीरे-धीरे बढ़ाया जा रहा है.
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महंगे कच्चे तेल से अर्थव्यवस्था पर मंडरा रहा खतरा
गौरतलब है कि दुनियाभर में महंगाई के पीछे की एक बड़ी वजह कच्चे तेल का महंगा होना है. फरवरी के अंत में रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) शुरू होने के बाद से इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें बेहताशा बढ़ी हैं. इसका कारण रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने से कच्चे तेल की सप्लाई का बाधित होना है. फलस्वरूप दुनिया को विकट महंगाई का सामना करना पड़ रहा है. क्योंकि दुनिया के अधिकतर देशों में महंगाई बढ़ने में पेट्रोल-डीजल की ऊंची कीमतें बड़ी भूमिका निभा रही हैं.
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5 महीने में अमेरिका में कच्चा तेल के दाम 54 फीसदी बढ़े
मालूम हो कि अमेरिका में साल 2022 की शुरुआत से अब तक कच्चे तेल की कीमत 54 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है. हालांकि इस खबर के आने के बाद न्यूयॉर्क में कच्चे तेल का भाव 0.9% गिरा है और ये 114.26 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गय़ा है. कच्चे तेल के उत्पादन में इस बढ़ोतरी से ईंधन के ऊंचे दाम को कम करने में मदद मिलेगी और महामारी से उबर रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में महंगाई का स्तर नीचे आयेगा.
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