-ट्राइबल इम्पावरमेंट लाइवलीवुड प्रोजेक्ट का 963 करोड़ रूपए नहीं दे रहा विभाग, महीनों से मंत्री सेल में पड़ी है संचिका
-जेटीडीएस 14 ट्राइबल जिलों में कराता है क्लाइमेट बेस्ड एग्रीकल्चर और मार्केटिंग
Kaushal Anand
Ranchi: आदिवासी कल्याण विभाग द्वारा संचालित (झारखंड ट्राइबल डेवलपमेंट सोसायटी) जेटीडीएस झारखंड के ट्राइबल जिलों में आदिवासियों के आर्थिक उत्थान का काम करता है. जेटीडीएस ट्राइबल इंपावरमेंट लाइवलीवुड प्रोजेक्ट के तहत क्लाइमेट बेस्ड खेती कार्य करवाता है. इतना ही नहीं इस खेती की मार्केटिंग की व्यवस्था भी खुद ही करता है, ताकि आदिवासी किसानों को खेती के बाद उनके द्वारा उत्पादित सामानों का सही मूल्य मिल सके.
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गंभीर नहीं दिख रहा संबंधित विभाग
आदिवासी किसानों के उत्थान को लेकर विभाग कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अब तक इस प्रोजेक्ट का 963 करोड़ रूपए आवंटित नहीं हो सका है. विभागीय अफसरों से मिली जानकारी के अनुसार इसकी संचिका कैबिनेट में जा चुकी थी. मगर ऐन वक्त पर इसे वापस ले लिया गया. कुछ इनक्वाईरी के साथ अब भी मंत्री सेल में पड़ा हुआ है. जानकारी के अनुसार संचिका अबतक मंत्री सेल आप्त सचिव स्तर पर लटकी हुई है. यह संचिका मंत्री तक पहुंची ही नहीं है. इसके कारण महती योजना का काम लटका पड़ा है. रबी फसल का मौसम अब समाप्त हो चुका है. अब खरीफ फसलों की बुआई का समय निकट आ गया है. ऐसे में अगर समय पर पैसे का आवंटन नहीं हुआ तो खरीफ फसलों की खेती पर भी संकट आएगी.
110 प्रखंडों को किया जाना है कवर
इससे पहले जेटीडीसी 14 ट्राइबल जिलों के 32 प्रखंडों को कवर करता था. कुल 2.50 लाख हाऊस होल्ड को कवर किया गया था. इसके लिए 280 करोड़ रूपए खर्च किए गए थे. अब इसकी संख्या मंत्री के निर्देश के बाद बढ़ाया गया है. अब 14 ट्राइबल जिलों के कुल 110 प्रखंडों और कुल 60 लाख लाभुकों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया है. इसका बजट बढ़कर 963 करोड़ रूपए हो गया, लेकिन अबतक आवंटन नहीं हो पाया.
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मौसम और क्लाईमेट बेस्ड खेती करवाता है जेटीडीएस
आदिवासी कल्याण विभाग की संस्था जेटीडीएस ट्राइबल जिलों में मौसम और क्लाईमेट बेस्ड खेती करवाता है. सुखाड़ में डीएसआर (डायरेक्ट सीड्स राइज) टेक्नोलॉजी से खेती करवाता है, इस पद्धति से कम पानी में भी धान आदि की खेती होती है और किसानों को अच्छा मुनाफा हो जाता है. यह एक ऐसा धान का बीज है जो कम पानी में उन्नत किस्म का धान उत्पादित करता है. न केवल धान बल्कि इस विधि से बरसाती सब्जी का भी उत्पादन होता है.
कई किस्म के होते हैं बुना धान
जेटीडीएस जो बुना धान का बीज तैयार करवा रहा है, उसके कई किस्म हैं. जिसमें आईआर-64, डीआरटी-1, डीआरआर-44 एवं एमटीवी-1010 शामिल हैं. इन बीजों से जो धान की खेती की जा रही है, वह न केवल कम पानी में होता बल्कि उन्नत किस्म के धान इससे होते हैँ. सामान्यत: इसकी खेती दोन-2 प्रकार की जमीन में आसानी हो जाती है. टांड जमीन में इस बीज से खेती हो सकती है.
इस विधि से ठंड के दिनों में साग-सब्जी की खेती
इससे न केवल धान बल्कि खरीफ फसलों के अतिरिक्त रबी फसलों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. खरीफ के मौसम में बरसाती साग-सब्जी के साथ-साथ रबी के मौसम में साग-सब्जी, तरबूज की भी खेती शुरू की गई है. विभिन्न प्रशिक्षण के माध्यमों से जेटीडीएस द्वारा लाभुकों की क्षमता विकसित की गई है. बीते गर्मी के मौसम में भी लाभुकों द्वारा सब्जी की खेती की गयी. इसका उत्पादन आय का एक अच्छा माध्यम है. लाभुकों को विभिन्न सिंचाई स्त्रोतों जैसे कुआं, चुआं, डोभा, तालाब आदि उपलब्ध कराए गए हैं. इसका उपयोग कर लोग अपनी जमीन पर सालों भर खेती कर रहे हैँ.
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मार्केटिग की भी व्यवस्था करवाता है जेटीडीएस
जेटीडीएस न केवल खेती करवाता है बल्कि इसे राज्य एवं अंतर्राज्यीय स्तर पर मार्केटिंग की व्यवस्था भी कराता है. इससे आदिवासी किसानों द्वारा उत्पादित फसलों का वास्तविक मूल्य मिल जाता है और बिचौलिए के चंगुल से वे बच जाते हैं. खेती शुरू होने के साथ ही किसानों के साथ एग्रीमेंट कर लिया जाता है ताकि फसल निकल कर आने के बाद उसे बेचने के लिए बिचौलिए के हाथ का खिलौना न बनना पड़े. इससे किसान उत्साहित होकर खेती करते हैँ और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो जाती है.