Kiriburu : वन ग्रामों को राजस्व ग्राम का दर्जा दिलाने के लिए सारंडा के दसों वन ग्रामों के लोगों ने सारंडा ग्राम सभा परिषद के बैनर तले शुक्रवार को अंतिम ग्राम सभा करमपदा मैदान में ग्रामीण मुंडा राजेश की अध्यक्षता में संपन्न हुई. करमपदा, नवागांव एवं भनगांव की ओर से की गई इस संयुक्त ग्राम सभा में सारंडा में अंग्रेजों द्वारा बसाये गये दसों वन ग्राम करमपदा, नवागांव, भनगांव, थलकोबाद, दीघा, बालिबा, कुमडीह, तिरिलपोसी, नयागांव एंव बिटकिलसोय के मुंडा, डकुआ व गणमान्य ग्रामीण शामिल हुए. बैठक में सारंडा के तमाम दस वन ग्रामों को राजस्व ग्राम का दर्जा देने के अलावा सरकार द्वारा संचालित तमाम प्रकार की बुनियादी सुविधाएं, विकास योजनाएं को धरातल पर उतारने, खतियान से संबंधित तमाम प्रकार की त्रुटियों को दूर करने, वनाधिकार से संबंधित जरूरी पट्टा देने आदि मांग की गई.
एशिया के सबसे बड़े साल जंगल में वन आधारित कोई उद्योग नहीं
ग्रामीण मुंडाओं ने कहा कि छत्तीसगढ़, बिहार, बंगाल, ओड़िशा आदि राज्य सरकारों ने वर्षों पूर्व तमाम वन ग्रामों को राजस्व गांव का दर्जा देकर वहां विकास कार्य प्रारम्भ कर चुकी है लेकिन झारखंड की पूर्व अथवा वर्तमान की सरकारें अब तक ऐसा नहीं कर सकी है. वन ग्रामों का विकास के नाम पर विकास रुपी कुछ खाना तो परोसा गया है लेकिन वह भी कंकड़-पत्थर डाल कर, जो न निगलते बन रहा है और न ही उगलते. अर्थात विकास के नाम पर स्कूल भवन नया-पुराना है लेकिन शिक्षक व संचार सुविधा नहीं, तिरिलपोसी में स्वास्थ्य उप केन्द्र है लेकिन चिकित्सक नहीं, सारंडा के किसी गांव में एम्बुलेंस सुविधा नहीं है. ग्रामीणों को प्रखंड, जिला मुख्यालय व हाट-बाजारों तक जाने के लिये यातायात सुविधा नहीं है. पंचायत से जुड़े कार्य, सरकारी राशन, बैंक व डाकघर के कामों के लिये दर्जनों किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. ऐसी व्यवस्था की वजह से हमारे बच्चे मैट्रिक तक पास नहीं हो पाते जिससे वह किसी प्रतियोगिता में शामिल नहीं हो पाते हैं और हमारे गांव के युवा रोजगार से वंचित रह जाते हैं. यातायात सुविधा के अभाव में ग्रामीण अपने-अपने वन व कृषि ऊत्पाद को बाजार में बेच नहीं पाते हैं. प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए का वन उत्पाद बाजार उपलब्ध नहीं होने के कारण जंगल में ही नष्ट हो जा रहा है. सिंचाई व पेयजल की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. एशिया का सबसे बड़ा साल जंगल कहा जाने वाला सारंडा जंगल में वन आधारित कोई उद्योग एवं पर्यटन स्थल के रूप में विकास नहीं होना दुर्भाग्य की बात है. सारंडा के गांवों का विकास के नाम पर अब तक सरकारी पदाधिकारियों व ठेकेदारों के गठजोड़ ने अरबों रुपए की लूट की है. अर्थात सारंडा स्थित कुदलीबाद से कुमडीह समेत कई सड़क, पुल-पुलिया, चेकडैम, इंदिरा आवास, चापाकल आदि बिना पूर्ण अथवा कार्य प्रारंभ हुए पैसे की पूरी निकासी हो चुकी है. सारंडा की खनिज व वन संपदाओं का दोहन कर छोटे शहर भी विकसित व सुविधा संपन्न होते जा रहे हैं लेकिन उन संपदाओं के बीच रहने वाले हम प्रकृति व पर्यावरण प्रेमी ग्रामीण अपने-अपने गांवों में तिल-तिल मरने व सुविधाओं को हासिल करने हेतु संघर्ष करने को मजबूर हैं.
नशापान और अंधविश्वास से दूर रहने की अपील की गई
ग्राम सभा ने तमाम ग्रामीणों से अपील की कि वह नशापान व अंधविश्वास से दूर रहें क्योंकि यह दोनों चीज समाज व परिवार की प्रगति व उन्नति के सबसे बड़े बाधक हैं. हड़िया हमारी पूजा की सामग्री है जिसे पूजा के दौरान प्रसाद के रूप में ही लें. हमारी बहनें हड़िया बेचने बाजार जाती हैं जहां कई बार शर्मशार करने वाली बड़ी व जघन्य घटनायें घट चुकी हैं जो समाज के लिये गंभीर चिंता की बात है.
प्रत्येग गांव की अलग-अलग ग्राम सभा के लिए डीसी ने कहा था
सारंडा ग्राम परिषद के महासचिव एवं सचिव क्रमशः आलोक अजय तोपनो और सांतियल भेंगरा ने बताया कि सभी दस वन ग्रामों की संयुक्त ग्राम सभा पहले करके उसका ज्ञापन आयुक्त, उपायुक्त, सारंडा डीएफओ आदि अधिकारियों को दिया गया था जिसमें उपायुक्त द्वारा कहा गया था कि प्रत्येक गांव का अलग-अलग ग्राम सभा कराकर दीजिए. उसी आलोक में अलग-अलग गांवों की ग्राम सभा कराया गया है, आज आखिरी गांव का ग्राम सभा संपन्न हुआ. इसके बाद ग्राम सभा से पारित पत्र को उक्त अधिकारियों को पुनः दिया जायेगा.
ग्राम सभा में कौन-कौन रहे मौजूद: इस ग्राम सभा में बिनोद होनहागा (मुंडा, बालिबा), मसीह चरण तोपनो (मुंडा, दीघा), जगमोहन होनहागा (मुंडा, थोलकोबाद), मंगरा मुंडा (मुंडा, भनगांव), सुन्दर बोदरा (मुंडा, नयागांव), शांतियल भेंगरा (बिटकिलसोय), सरगेया अंगारिया (कुमडीह), आलोक अजय तोपनो (दीघा), बिरबल गुड़िया (तिरिलपोसी), देवधारी कुमार, परमेश्वर तोरकोड (करमपदा), चन्द्रराम मुंडा, साबन गुड़िया, जबलुन डोडराय, बिनराय गुड़िया, रोलेन तोपनो, इस्राईल गोडसरा आदि सैकड़ों ग्रामीण व महिलाएं मौजूद थीं.