NewDelhi : अगर अमेरिका और रूस के बीच परमाणु युद्ध हुआ तो आधे घंटे के अंदर 10 करोड़ से ज्यादा लोग मारे जायेंगे. बता दें कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग में परमाणु युद्ध का खतरा बढ़ता नजर आ रहा है. अमेरिका समेत पश्चिमी देश यूक्रेन का समर्थन करते हुए उसे हथियारों की मदद कर रहे हैं. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही धमका चुके हैं कि अगर कोई भी बाहरी बीच में आया तो जो अंजाम होगा वो पहले कभी नहीं देखा होगा.
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एक परमाणु बम एक झटके में लाखों लोगों की जान ले लेगा
एक्सपर्ट पुतिन की इस चेतावनी को परमाणु युद्ध की धमकी से जोड़कर देख रहे है. बता दें कि पूर्व में जापान परमाणु हमला झेल चुका है और उन हमलों में जो लोग बच गये थे, वो आज भी उस दिन को याद कर सहम उठते हैं. स्विट्जरलैंड की संस्था इंटरनेशनल कैंपेन टू अबॉलिश न्यूक्लियर वेपन (ICAN के अनुसार एक परमाणु बम एक झटके में लाखों लोगों की जान ले लेगा. अगर 10 या फिर सैकड़ों बम गिराये गये तो न सिर्फ लाखों-करोड़ों मौतें होंगी, बल्कि धरती का पूरा क्लाइमेट सिस्टम ही बिगड़ जायेगा. जान लें कि इस संस्था को 2017 में नोबेल पीस प्राइज मिल चुका है.
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2 अरब लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच जायेंगे
ICAN के अनुसार एक परमाणु बम पूरा शहर तबाह कर देगा. अगर अमेरिका और रूस के बीच परमाणु युद्ध में 500 परमाणु बमों का इस्तेमाल हो जाता है तो आधे घंटे के अंदर 10 करोड़ से ज्यादा की मौत हो जायेगी. मुंबई की बात करें तो यहां हर एक किलोमीटर दायरे में 1 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं, अगर यहां हिरोशिमा जैसा परमाणु बम गिर जाता है तो एक सप्ताह में 8.70 लाख से ज्यादा लोग मारे जायेंगे. परमाणु युद्ध होने पर 2 अरब लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच जायेंगे. पूरा हेल्थ सिस्टम तबाह हो जायेगा, जिससे घायलों को इलाज भी नहीं मिल सकेगा.
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धरती का तापमान तेजी से कम होने लगेगा
अभी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग से जूझ रही है लेकिन परमाणु युद्ध होने पर धरती का तापमान तेजी से कम होने लगेगा. वो इसलिए क्योंकि इन हमलों से इतना धुआं निकलेगा जो धरती की सतह पर जम जायेगा. अनुमान है कि ऐसा होने पर कम से कम 10% जगहों पर सूरज की रोशनी नहीं पहुंचेगी. अगर दुनियाभर के सारे परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होता है तो इससे 150 मिलियन टन धुंआ धरती के स्ट्रेटोस्फेयर में जम जायेगा. स्ट्रेटोस्फेयर धरती की बाहरी सतह है जो ओजोन लेयर से ऊपर होती है.
दुनियाभर के ज्यादातर इलाकों में बारिश भी नहीं होगी. ग्लोबल रेनफॉल में 45% की कमी आ जायेगी धरती की सतह का औसत तापमान -7 से -8 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाएगा. इसकी तुलना करें तो 18 हजार साल पहले जब हिम युग (Ice Age) था, तब तापमान -5 डिग्री सेल्सियस था. दुनिया 18 हजार साल पीछे चली जायेगी.