Arjun Mandal
Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) धनबाद रेल मंडल में ख़ाकी वर्दीधारियों की नाक के नीचे खुलेआम अवैध वेंडरों की जमींदारी चलती है. स्टेशन के अलावा यात्री गाड़ियों में इन्हीं अवैध वेंडरों का राज है. चलती गाड़ियों में उनका एरिया तय है. यहां से वहां तक हमारा, वहां से तुम्हारा. किसी वेंडर से पूछने पर खुलेआम कहता है- हां बाबू मैं अपनी जमींदारी बेचता हूं. ऐसे ‘ जमींदारों ‘ का एरिया तय है. आगे के लिए जमींदारी दूसरे वेंडर के हवाले कर दी जाती है. धनबाद स्टेशन पर भी इन्हीं अवैध वेंडरों की चलती है. वे रेल परिसर से लेकर प्लेटफॉर्म तक हर जगह बेखौफ अपनी दुकान सजाते हैं. चलंत दुकानें लेकर घूमते रहते हैं.
हर वेंडर का अपना ठिकाना और क्षेत्र
इन अवैध वेंडरों का क्षेत्र बंटा हुआ है. धनबाद-आसनसोल, धनबाद-गया, धनबाद-चंद्रपुरा, गोमो-कोडरमा, गोमो-बोकारो, गोमो-चोपन और सीआईसी खंड के सभी स्टेशन और वहां से गुजरने वाली ट्रेनें अवैध वेंडरों के शिकंजे में हैं. वेंडर आगे नहीं जाए, इस पर भी नजर रखी जाती है. अगर कोई वेंडर किसी दिन नहीं पहुंचता है तो वह क्षेत्र किसी अन्य वेंडर को ‘बेच’ दिया जाता है.
हर जगह बंटता है अवैध उगाही का शेयर
धनबाद रेल मंडल में एक हजार से अधिक अवैध वेंडर हैं, जो रोजाना एजेंट को 100 रुपये देकर स्टेशनों और ट्रेनों में खाद्य व पेय पदार्थ की बिक्री करते हैं. धनबाद से एक सरगना पूरे धंधे पर नजर रखता है. सरगना इन वेंडरों से प्रतिदिन 25 हजार रुपये तक की उगाही करता है. इस हिसाब से प्रतिमाह उनकी आमदनी लगभग साथ-आठ लाख और सालाना 90 लाख रुपये होती है. इस अवैध उगाही का शेयर सब जगह बंटता है. जब भी कोई वेंडर एजेंट को पैसा देने से इंकार करता है, तो एक-दो दिन में सलाखों के पीछे पहुंच जाता है व जुर्माना देने के बाद ही छूटता है.
सभी ट्रेनों में अवैध वेंडरों का बोलबाला
पूर्व मध्य रेलवे के ट्रेनों के प्रवेश करते ही अवैध वेंडरों का कब्जा देखने को मिल जाता है. स्लीपर हो, जेनरल अथवा एसी बोगी, अवैध वेंडर बेधड़क अपना धंधा चलाते रहते हैं. ग्रैंड कॉर्ड लाइन पर गया से आसनसोल के बीच ट्रेनों में आईआरसीटीसी की खानपान व्यवस्था रहने के बावजूद बड़ी संख्या में अवैध वेंडर सक्रिय हैं. उनका आतंक राजधानी एक्सप्रेस को छोड़कर सभी ट्रेनों में है. राजधानी में वीआईपी यात्रियों का डर रहता है. अवैध वेंडरों को खाकी वर्दी वाले का भी समर्थन हासिल है. इसलिए वे बिना डर-भय के सामान बेचते हैं. रोक-टोक करने पर वे यात्रियों से उलझने में भी देर नहीं करते.
सस्ता नाश्ता-खाना, बीमारी को दावत
अवैध वेंडर सस्ते में प्लेटफार्म और ट्रेनों में बासी नाश्ता-खाना यात्रियों को उपलब्ध कराते हैं. यह अलग बात है कि इस तरह का नाश्ता-खाना यात्रियों को बीमार भी कर रहा है. किसी के पास ‘ रेल नीर’ नहीं मिलेगा. दूसरा जल बेचने पर रोक है. लेकिन रोकने वाला ही चांदी के जूते के आगे नतमस्तक है. जाहिर है इस अवैध व्यापार को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है. भले ही यात्रियों का हाजमा बिगड़ रहा हो. कई बार यात्री इन वेंडरों से खरीदे विषाक्त भोजन से ट्रेन व प्लेटफॉर्म पर ही फूड प्वाइजनिंग के शिकार हो जाते हैं. कोई कार्रवाई नदारद है. किसी भी स्टेशन पर और ट्रेनों में खुलेआम अवैध वेंडर खाद्य और पेय पदार्थ बिक्री करते देखे जा सकते हैं. इस संबंध में जिम्मेवार अधिकारियों ने यह कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया कि सूचना मिलने पर वे कार्रवाई करते हैं.