– आईएमए ने की क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट को पांच सालों तक शिथिल करने की मांग
– क्लिनिकल स्टैब्लिशमेंट एक्ट के नोडल पदाधिकारी के साथ आईएमए में किया गया परिचर्चा
Ranchi: आईएमए झारखंड ने सरकार के प्रतिनिधि के साथ बैठक कर क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट के नोडल पदाधिकारी साथ बैठक कर चर्चा परिचर्चा किया. आईएमए के सचिव डॉ प्रदीप सिंह ने कहा कि इस परिचर्चा में आईएमए ने सरकार की बातें सुनी और सरकार की बातों को भी सरकार के प्रतिनिधि के सामने रखा. क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट में बदलाव को लेकर एक सुझाव की प्रति भी स्वास्थ्य विभाग के प्रतिनिधि डॉ एसएन झा को सौंपा है. आईएमए नोडल पदाधिकारी के सामने छोटे अस्पतालों को इस एक्ट में संसोधन नहीं होने से होने वाली परेशानियों से अवगत कराया.
गरीब मरीजों को इलाज के लिए करना पड़ेगा बड़े अस्पतालों का रूख
रांची आईएमए के अध्यक्ष डॉ शंभू प्रसाद ने कहा कि एक्ट लागू हो जाने से छोटे अस्पताल बंद हो जाएंगे. इससे गरीब मरीजों को भी बड़े और महंगे अस्पतालों में इलाज कराने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
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हरियाणा की तर्ज पर छूट देने की मांग
डॉ आरएस दास ने कहा कि क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट में विसंगतियों को लेकर सरकार के सामने अपनी बातें रखी हैं. उन्होंने कहा कि जब सरकार ने पार्लियामेंट से पास किया था उस वक्त भी सेंट्रल आइएमए विसंगतियों पर अपना ध्यान आकृष्ट कराया था. पेंशेंट को स्टैबलाइज कर दूसरे स्थान में रेफर करने को कहा जाता है, ऐसे में कई मरीजों के जान का नुकसान हो सकता है. ऐसे में इसपर संशोधन की आवश्यकता थी पर झारखंड ने बिना किसी संसोधन की मांग की है. आईएमए ने कहा कि इसमें बदलाव नहीं होने से डॉक्टर दंपति द्वारा चलाए जा रहे अस्पताल, 50 बेड तक के अस्पताल का संचालन कठिन हो जाएगा. इसलिए क्लिनिकल स्टैब्लिशमेंट में इन अस्पतालों को हरियाणा की तर्ज पर छूट देने की मांग की है.
छोटी सर्जरी के लिए भी छोटे अस्पतालों की तुलना में कॉर्पोरेट अस्पतालों में लगता है चार गुणा पैसा
क्लिनिकल स्टैब्लिशमेंट एक्ट को बिहार, असम और यूपी में लागू नहीं किया गया है. आईएमए महिला विंग की अध्यक्ष डॉ भारती कश्यप ने कहा कि झारखंड आइएमए भी नहीं चाहता कि यहां बिना मानको के साथ अस्पताल खुले. उन्होंने कहा कि इस एक्ट में जो नियम हैं वो इतने कड़े हैं कि छोटे अस्पतालों को चलाना कठिन हो जाएगा. इसलिए डॉक्टर कपल द्वारा चलाए जा रहे अस्पतालों के साथ 50 बेड तक के अस्पतालों को इसमें छूट देनी चाहिए. बड़े बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों में छोटी-मोटी सर्जरी में छोटे अस्पतालों की तुलना में चार गुणा तक फीस देना पड़ता है.
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