Davos : जितनी जल्दी संभव हो सके, भारत गेहूं के निर्यात पर लगी पाबंदी पर दोबारा विचार करे. अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जिवा ने भारत से यह गुहार लगायी है. खबरों के अनुसार क्रिस्टालिना ने दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में कहा कि भारत द्वारा निर्यात पर पाबंदी लगाये जाने से अन्य देश भी ऐसा करने की सोच सकते हैं, जिससे वैश्विक समुदाय इस संकट से निपटने के लिए तैयार नहीं हो पायेगा.
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भारत को 1.35 अरब लोगों का पेट भरने की जरूरत है
उन्होंने एक अंग्रेजी वेबसाइट से बातचीत के क्रम में कहा, मैं भारत की सराहना करती हूं कि उसे 1.35 अरब लोगों का पेट भरने की जरूरत है. मैं समझ सकती हूं कि लू की वजह से गेहूं की उत्पादकता कम हुई है लेकिन फिर भी मैं भारत से अपील करती हूं कि वह गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के अपने फैसले पर दोबारा विचार करें, क्योंकि और देश भी इसी नक्शेकदम पर चल सकते हैं, जिससे हम खाद्यान्न संकट से निपटने में नाकाम हो जायेंगे.
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रूस -यूक्रेन युद्ध की वजह से गेहूं की सप्लाई प्रभावित
अगर भारत ने निर्यात पर पाबंदी हटा ली तो उसे कितनी मदद मिलेगी? इसके जवाब में जॉर्जिवा ने कहा कि रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से गेहूं की सप्लाई प्रभावित हुई है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि भारत कितना निर्यात कर सकता है और किन-किन देशों को निर्यात कर सकता है. अगर गेहूं का निर्यात मिस्र और लेबनान जैसे देशों में किया जाता है तो यकीनन बहुत प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि ये उन देशों में शामिल हैं, जहां सप्लाई बाधित होने से सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है.
कहा कि मिस्र और लेबनान में न केवल भुखमरी का खतरा है बल्कि सामाजिक अशांति फैल सकती है, जिससे वैश्विक स्थिरता प्रभावित हो सकती है. बता दें कि चीन के बाद गेहूं के सबसे बड़े उत्पादक देश भारत ने 13 मई को तत्काल प्रभाव से गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है,
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भारत जी-20 समूह का सदस्य होने के नाते अपनी जिम्मेदारी निभाये
जर्मनी के कृषि मंत्री सेम ओजडेमिर ने कहा है, अगर हर कोई निर्यात पर प्रतिबंध लगा देगा या बाजार बंद कर देगा तो इससे संकट और गहरायेगा. हम भारत से आग्रह करते हैं कि जी-20 समूह का सदस्य होने के नाते वह अपनी जिम्मेदारी निभाये. फरवरी में शुरू हुए रूस, यूक्रेन युद्द की वजह से गेहूं की सप्लाई प्रभावित हुई थी जिससे वैश्विक बाजारों पर प्रभाव पड़ा है. प्रधानमंत्री मोदी ने जर्मनी की अपनी यात्रा के दौरान वैश्विक स्तर पर गेहूं की कमी को स्वीकार करते हुए कहा था कि देश के किसान दुनिया का पेट भरने के लिए आगे आये हैं. जब-जब मानवता पर संकट पड़ा है, भारत ने उसका हल निकाला है.