Ranjit Kumar
पलामू का साहित्यिक इतिहास रहा है. जिसके पन्ने पर कई नामचीन साहित्यकारों, कवियों के नाम दर्ज हैं. कह सकते हैं कि कभी पलामू की हरियाली में इन साहित्यकारों, कवियों की गूंज जोर शोर से सुनाई देती थी. उनके काव्यपाठ से पलामू गुलजार रहता था. लेकिन समय के साथ मंचों के अभाव में अब थोड़ा सन्नाटा पसर गया है. साहित्यकार और कवि अब भी हैं पर उनकी आवाज शिद्दत के साथ सुनाई नहीं देती. वहीं कोरोना काल ने इस स्थिति को और भी खराब कर दिया. याद कीजिये यहां कभी वार्षिक साहित्य सम्मेलन हुआ करता था. लोग अपनी अपनी रचनाओं के साथ इस सम्मेलन में पहुंचते थे और फिर साहित्यिक रंग का जो नजारा देखने को मिलता था वह कमाल का होता था. लोग अब भी उ दौर को याद करते हैं.
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पलामू की धरती पर साहित्य की खेती बराबर होती रही है. इस धरती पर कुछ ऐसे वटवृक्ष अभी भी धरोहर के रूप में खड़े हैं, जिन लोगों ने साहित्य के क्षेत्र में मिसाल कायम की है. इनमें कोई एक नाम नहीं, बल्कि अनेक नाम हैं. किन किन को याद किया जाए, किन-किन की उपलब्धियां गिनाई जाए. दरअसल हम जिस दौर से गुजर रहे हैं वह भय -असुरक्षा और संदेह का दौर है. हर कोई जीवन की बुनियादी जरूरतों के लिए जूझ रहा है. ऐसे ही समय के लिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा था कि मनुष्य पर सभ्यता के आवरण जैसे -जैसे चढ़ते जाएंगे वैसे- वैसे कवि कर्म कठिन होता जाएगा. कह सकते हैं कि यह साहित्यिक दौर आज खुद दुविधा की स्थिति में है.वर्ष 2021 में भी पलामू की धरती से कई पुस्तकें प्रकाशित हुई. लेकिन साहित्यिक गतिविधियों के लिये जो माहौल पहले था, उसे वापस लाने का प्रयास होना चाहिये. यानी चर्चाओं के लिये मंच का आयोजन होना चाहिये. हम सन्नटा शब्द का इस्तेमाल तो कर रहे हैं, लेकिन सन्नाटा, खामोशी में भी आवाज होती है. उसे समझने की जरुरत है. इसलिये सबकी कोशिश हो कि पलामू में एक बार फिर साहित्यिक मंच गुलजार हो.