LagatarDesk: इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया ने अपने प्री-बजट मेमोरेंडम में केंद्र सरकार से सभी जीवन बीमा पॉलिसियों की अवधि 10 साल करने या टैक्स में अधिक छूट के साथ बनाने की सिफारिश की है. संस्थान ने सुझाव दिया है कि जीवन बीमा पॉलिसियों पर टैक्स की छूट अब पॉलिसी अवधि के आधार पर दी जानी चाहिए, न कि प्रीमियम की राशि पर, जो वर्तमान में दी जा रही है.
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Section 10 Under Sec 10-D के अनुसार टैक्स की छूट वास्तविक पूंजीगत बीमा राशि के प्रीमियम पर आधारित है. जिसके कारण अधिक प्रीमियम वाली बीमा पॉलिसी पर टैक्स की कटौती की जाती है. ICAI ने कहा कि जिन पॉलिसीधारकों को बीमा कवर की जरूरत होती है, उन्हें अधिक प्रीमियम के कारण टैक्स से राहत नहीं मिलती है.
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इन पॉलिसीधारकों को राहत देने के लिए ICAI ने सरकार को सुझाव दिया है कि टैक्स में छूट प्राप्त करने के लिए प्रीमियम पर आधारित टैक्स में छूट को आधार नहीं बनाया जाना चाहिये. इसके स्थान पर 10 या उससे अधिक साल की पॉलिसी पर छूट देनी चाहिये. इस बदलाव से पॉलिसी अवधि के आधार पर टैक्स छूट के माध्यम से लंबी अवधि के निवेश में मदद मिलेगी.
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LIP को Capital Assets मानने की दी सलाह
वर्तमान समय में बीमा पॉलिसी कर योग्य है. इसमें बीमाधारकों को किसी भी तरह की छूट नहीं मिलती है. ICAI का कहना है कि पॉलिसी मेच्योर होने के बाद निकासी के समय इससे प्राप्त आय पर धारकों को टैक्स देना होता है.
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समयसीमा को बढ़ाने की दी सलाह
ICAI ने यह भी सुझाव दिया है कि बीमा कंपनियों को अनिश्चितकालीन समय में व्यापार घाटे को दूर करने की अनुमति दी जानी चाहिए. वर्तमान समय में व्यापार को आगे बढ़ाने और बंद करने के लिए समय सीमा केवल 8 साल है. ICAI ने कहा कि यह समय सीमा किसी भी कंपनी के लिए पर्याप्त नहीं है.
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