Arvind Jayatilak
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिटेन के नए-नवेले प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को बधाई देते हुए उम्मीद जतायी है कि दोनों देशों के बीच शीध्र ही फ्री ट्रेन एग्रीमेंट (एफटीए) मूर्त रूप लेगा. अच्छी बात यह कि व्यापक और संतुलित व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के विचारों से ऋषि सुनक सहमत हैं. सैंद्धांतिक तौर पर फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) की नींव पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने 2021 में अपनी भारत यात्रा के दौरान रखी थी. उनके बाद लिज ट्रस ने इस प्रस्तावित ट्रेड समझौते का समर्थन कर इसे आगे बढ़ाने पर जोर दिया. अब इस प्रस्तावित ट्रेड समझौता को आकार देने की जिम्मेदारी ऋषि सुनक के कंधे पर है. अगर यह समझौता मूर्त रूप लेता है तो दोनों देशों के हित में होगा. आज भारत और ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय व्यापार तकरीबन चार लाख करोड़ रुपये का है. ऐसे में प्रस्तावित ट्रेड समझौता मूर्त लेता है, तो दोनों देशों को टैक्स में बड़ी राहत मिलेगी. उल्लेखनीय है कि मुक्त व्यापार करार के तहत व्यापार में दो भागीदार देश आपसी व्यापार वाले उत्पादों पर आयात शुल्क में अधिकतम कटौती करते हैं, जिसका फायदा दोनों देशों को मिलता है. चूंकि भारत ने हमेशा से ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के देशों के साथ व्यापार के मामले में एक ‘मुख्य द्वार’ के रूप में देखा है, ऐसे में मुक्त व्यापार समझौता न केवल ब्रिटेन बल्कि भारत के लिए भी फायदे का सौदा होगा. ब्रिटेन ने 2004 में भारत के साथ एक रणनीतिक साझेदारी शुरू की थी. इस रणनीतिक साझेदारी के तहत ब्रिटेन आतंकवाद, परमाणु गतिविधियों और नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत के साथ है. अब यह ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक पर निर्भर करता है कि आपसी संबंधों की नई रणनीतिक साझेदारी को कितनी गंभीरता से लेते हैं. अगर सुनक ट्रेड समझौते के साथ-साथ माइग्रेशन और मोबिलिटी पार्टनरशिप समझौते पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाते हैं तो भारत के प्रशिक्षित लोगों को ब्रिटेन जाने की राह आसान होगा.
देखें तो बदलते वैश्विक परिदृश्य में आतंकवाद से निपटने, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी का समर्थन, पर्यावरण, रक्षा उपकरणों व अत्याधुनिक हथियारों का साझा उत्पादन तथा अफगानिस्तान के हालात जैसे कई अन्य मसलों पर दोनों देशों का सोच एक जैसा है. कई वैश्विक मंचों के जरिए दोनों देश इन मसलों पर अपने-अपने विचार साझा कर चुके हैं. अगर फ्री ट्रेड समझौते पर दोनों देश कंधा जोड़ते हैं, तो दोनों देशों के आर्थिक भागीदारी को नई ऊंचाई मिलेगी. इससे द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि होगी और बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार मिलेगा. फ्री ट्रेड समझौते पर ब्रिटेन का भारत के साथ आना इसलिए उम्मीद जगाता है कि आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बन चुका है. दुनियाभर में भारतीय अर्थव्यवस्था का डंका बज रहा है. आज की तारीख में भारत ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश का तमगा हासिल कर चुका है. आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ष 2030 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन सकता है. एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, अर्थव्यवस्था के आकार में भारत 2027 में जर्मनी से और 2030 में जापान से आगे निकल जाएगा. संभवतः यही वजह है कि ब्रिटेन भारत के साथ ट्रेड डील को लेकर बेहद गंभीर है.
2004 के बाद से देखें तो दोनों देशों के मध्य व्यापार एवं पूंजी निवेश में तीव्रता आयी है. जहां तक द्विपक्षीय व्यापार का सवाल है तो ब्रिटेन भारत का विश्व में दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी देश है. गौरतलब है कि दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार जो 2018-19 में 16.7 अरब डॉलर, 2019-20 में 15.5 अरब डॉलर था, वह अब बढ़कर 40 अरब डॉलर यानी चार लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है. इससे दोनों देशों के तकरीबन 5 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला है. गौर करें तो ब्रिटेन में लगभग 800 से अधिक भारतीय कंपनियां हैं, जो आईटी क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. इस संदर्भ में टाटा इंग्लैंड में नौकरियां उपलब्ध कराने वाली सबसे बड़ी भारतीय कंपनी का दर्जा हासिल कर चुकी है. भारतीय कंपनियों का विदेशों में कुल निवेश 85 मिलियन अमेरिकी डॉलर के पार पहुंच गया है. दूसरी ओर ब्रिटेन से भारत के बीपीओ क्षेत्र में आउटसोर्सिंग का काम भी बहुत ज्यादा आ रहा है. आउटसोर्सिंग दोनों देशों के लिए लाभप्रद है. एक ओर यह ब्रिटिश कंपनियों की लागत कम करता है, वहीं लाखों शिक्षित भारतीयों के लिए रोजगार का अवसर उपलब्ध कराता है.
ब्रिटेन में बड़ी तादाद में अनिवासी भारतीयों की मौजूदगी है. यह संख्या लगभग 2 मिलियन तक पहुंच चुकी है. भारतीय लोग दुनिया के अन्य देशों की तरह ब्रिटेन की आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था को भी शानदार गति दे रहे हैं. तो पिछले दो दशकों में आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के लिए दोनों देशों ने कई तरह की पहल की है. नतीजा ब्रिटेन में परियोजनाओं की संख्या के मामले में भारत दूसरे सबसे बड़े निवेशकर्ता देश के रूप में उभरा है. दूसरी ओर ब्रिटेन भी वर्तमान भारत में कुल पूंजीनिवेश करने वाले देशों में बढ़त बनाए हुए है. आयात-निर्यात पर नजर डालें तो भारत मुख्य रूप से ब्रिटेन को तैयार माल एवं कृषि एवं इससे संबंधित उत्पादों का निर्यात करता है. इसके अतिरिक्त वह अन्य सामान मसलन तैयार वस्त्र, इंजीनियरिंग सामान, चमड़े के वस्त्र व वस्तुएं, रसायन, सोने के आभूषण, जूते-चप्पल, समुद्री उत्पाद, चावल, खेल का सामान, चाय, ग्रेनाइट, जूट, दवाइयां इत्यादि का भी निर्यात करता है.
जहां तक आयात का सवाल है तो भारत इंग्लैंड से मुख्यतः पूंजीगत सामान, निर्यात संबंधी वस्तुएं, तैयारशुदा माल, कच्चा माल व इससे संबंधित अन्य सामानों का आयात करता है. दोनों देश वैश्विक निर्धनता की समाप्ति, वैश्विक संगठनों में सुधार और आतंकवाद के खात्मा के लिए परस्पर मिलकर काम कर रहे हैं. भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले में पाकिस्तान ब्रिटेन के निशाने पर है. पाकिस्तान पर भारत की एयर स्ट्राइक का ब्रिटेन द्वारा समर्थन कर चुका है. अच्छी बात है कि दोनों देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों पर भी सहमत हैं, ताकि 21 वीं शताब्दी की वास्तविकताओं को अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिबिम्बित किया जा सके.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.