New Delhi : मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने शनिवार को संयुक्त बयान जारी कर कहा कि गाजा में संघर्ष विराम का आह्वान करने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर मतदान से भारत का दूर रहना स्तब्धकारी है. इससे पता चलता है कि भारत की विदेश नीति अब अमेरिकी साम्राज्यवाद के अधीनस्थ सहयोगी होने के रूप में आकार ले रही है. नेशनल खबरों के लिए यहां क्लिक करें
#WATCH | Delhi: On the Israel-Hamas conflict, CPI(M) leader Sitaram Yechury says, “What is happening in Gaza is against humanity. There’s only one solution to this conflict, to take steps toward the UN’s two-state mandate. Innocent people are being killed… India’s vote in the… pic.twitter.com/IVnaxGnkwE
— ANI (@ANI) October 28, 2023
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संघर्ष विराम प्रस्ताव को भारी बहुमत पारित किया
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी और भाकपा महासचिव डी राजा ने गाजा में नरसंहार करने वाले आक्रमण को रोकें शीर्षक वाले बयान में कहा कि भारत का यह कदम फलस्तीनी मुद्दे को लेकर भारत के लंबे समय से जारी समर्थन को निष्फल कर देता है. उन्होंने कहा, यह चौंकाने वाली बात है कि भारत आम नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी एवं मानवीय दायित्वों को कायम रखने शीर्षक वाले उस प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहा, जिसमें गाजा में जारी इजराइली हमलों के मद्देनजर मानवीय संघर्ष विराम का आह्वान किया गया और जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भारी बहुमत पारित किया.
इजराइल ने गाजा पट्टी में हवाई और जमीनी हमले तेज कर दिये
बयान में कहा गया, भारी बहुमत से अपनाये गये प्रस्ताव पर मतदान से भारत का अनुपस्थित रहना यह दर्शाता है कि अमेरिकी साम्राज्यवाद के अधीनस्थ सहयोगी होने के रूप में और अमेरिका-इजराइल-भारत साठगांठ को मजबूत करने के लिए मोदी सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदमों से भारतीय विदेश नीति किस हद तक आकार ले रही है. यह कदम फलस्तीनी मुद्दे के लिए भारत के लंबे समय से जारी सहयोग को निष्प्रभावी बना देता है. दोनों वामपंथी दलों ने कहा कि जैसे ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस प्रस्ताव को पारित किया, इजराइल ने गाजा पट्टी में नरसंहार करने वाले हवाई और जमीनी हमले तेज कर दिये.
इजराइल ने गाजा में संचार के सभी माध्यम काट दिये
उन्होंने तत्काल युद्धविराम का आह्वान करते हुए कहा कि इजराइल ने गाजा में संचार के सभी माध्यम काट दिये हैं, जहां 22 लाख फलस्तीनी रहते हैं. बयान में कहा गया, संयुक्त राष्ट्र महासभा के भारी जनादेश का सम्मान करते हुए तत्काल संघर्षविराम होना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र को 1967 से पहले की सीमा के साथ दो-राष्ट्र समाधान और पूर्वी यरूशलम को फलस्तीन की राजधानी घोषित करने के लिए सुरक्षा परिषद के जनादेश को लागू करने के मकसद से खुद को फिर से सक्रिय करना होगा.
भारत ,ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, जापान, यूक्रेन , ब्रिटेन मतदान से दूर रहे
संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 193 सदस्यों ने 10वें आपातकालीन विशेष सत्र में जॉर्डन द्वारा पेश किये गये मसौदा प्रस्ताव पर मतदान किया और इसे बांग्लादेश, मालदीव, पाकिस्तान, रूस और दक्षिण अफ्रीका सहित 40 से अधिक देशों द्वारा सह-प्रायोजित किया गया. भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, जापान, यूक्रेन और ब्रिटेन मतदान से दूर रहे.