Manish Singh
अमरिंदर मेच्योर्ड और जनाधार वाले नेता हैं. सिद्धू मसखरे, बकैत, इनकम्पेटेंट आदमी हैं. इसमें शक नहीं. लेकिन उसको पाकिस्तानी एजेंट बताना, इमरान का दोस्त और बाजवा का करीबी कहना, निहायत घटिया बात है. बात-बात पर विरोधी को गद्दार, देशद्रोही और पाकिस्तानी बताने वाले भाजपाईयों से कितने अलग हैं अमरिंदर? तो काहे की मैच्योरिटी है भाई?
विश्व के बड़े-बड़े महान नेता, पांच-आठ साल में जो महानता अर्जित करनी थी, करके निकल लिए. अपने यहां कब्र में भी कुर्सी साथ दफन करने का रिवाज है.
रमन सिंह छत्तीसगढ़ के एक बढ़िया मुख्यमंत्री थे. दूसरे कार्यकाल के अंत तक भी उनका एक स्टेचर था. मैच्योरिटी होती, तो 14 में जब दिल्ली में सरकार बनी, नेशनल लेवल पर चले जाते. नहीं, मैं तो मुख्यमंत्री ही रहूंगा. माथे पर लिखवा कर आया हूं. अगली दफे हार गए. धूल धूसरित हैं अब. धर्मांतरण पर धरना वरना देते रहते हैं.
वही हाल शिवराज सिंह चौहान का है. तीन कार्यकाल तक सीएम थे, अब मजाक बनते जा रहे हैं. गहलोत का वही हाल है. जियूंगा तो सीएम के बतौर. येदियूरप्पा भी भगाए हटाये ही गए. अमरिंदर भी 80 छू रहे हैं. अरे, नया एरिना देखो भाई. कितना तुमको जनता रिपीट करे, और तुम खुद को कितना दोहराओगे?
ऊंचे पद का अपना दबाव होता है, एक थकान, फेटीग होती है. एक वक्त के बाद आइडियाज औऱ ऊर्जा खत्म होने लगती है. नई लीडरशीप खड़ी करनी चाहिए. उसे रेंस हस्तगत कर बड़े एरिना की ओर बढ़ें या अस्ताचलगामी हो जायें. शीर्ष पर रहते ही. ताकि लोग ब्रेडमैन की तरह याद करें, रवि शास्त्री की तरह नहीं.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.