लोकसभा चुनाव से पहले 11 अप्रैल को लोकनीति-सीएसडीएस का सर्वे सार्वजनिक हुए हैं. सर्वे सीएसडीएस (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटिज) ने किया है. यह सर्वे देश में 10,000 लोगों पर किया गया है. इस संस्था को सबसे अधिक आर्थिक मदद भारत सरकार की संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च की तरफ से मिलता है. सर्वे में वोटरों का मिजाज जानने की कोशिश की गई है. सर्वे में यह बात सामने आयी है कि वोटरों के सामने महंगाई व बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है. इन दोनों को लेकर वह सबसे अधिक चिंतित हैं. यह दोनों मुद्दा लोकसभा चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं. लेकिन हिन्दी के अखबारों या टीवी चैनलों पर इसकी रिपोर्टिंग ना के बराबर है या नाम मात्र. अंग्रेजी में बड़े रिपोर्ट प्रकाशित हुए हैं. इसलिए लगातार न्यूज नेटवर्क, पाठकों के लिए इस सर्वे में आए तथ्यों को विस्तार से बता रहे हैं.
Lagatar News Network : लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे में जो आंकड़े व तथ्य सामने आये हैं, उसके मुताबिक देश के 50 प्रतिशत लोगों के लिए बेरोजगारी व महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा है. कांग्रेस के राहुल गांधी समेत तमाम विपक्षी दलों के नेता इसी मुद्दे पर लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस के घोषणा पत्र में भी बेरोजगारी व महंगाई पर ज्यादा वायदे किये गये हैं. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने हर चुनावी सभा में भ्रष्टाचार, हिंदुत्व, हिंदू-मुसलमान और राम मंदिर का जिक्र जोर-शोर से कर रहे हैं. जबकि सर्वें में यह बात सामने आयी है कि सिर्फ 18 प्रतिशत लोगों के लिए यह मुद्दा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या भ्रष्टाचार, हिंदू-मुस्लिम और राम मंदिर अब मुद्दा नहीं रहा और सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी व महंगाई है. कांग्रेस जिसकी चर्चा करती है, लेकिन भाजपा इस पर बात नहीं करती. तो सवाल उठता है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा गलत पीच पर खेल रही है या कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दल गलत मुद्दे को उठा रहे हैं. हालांकि कांग्रेस के नेता बेरोजगारी और महंगाई का मुद्दा को काफी पहले से उठा रहे हैं, जबकि सीएसडीएस का सर्वे अभी एक दिन पहले आया है.
भ्रष्टाचार व विकास बड़ा मुद्दा नहीं
सर्वे के आंकड़ा यह सवाल खड़ा करता है कि क्या सच में भ्रष्टाचार और विकास लोगों के लिए अब मुद्दा नहीं रहा. वह भी तब जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे हैं. अगर ऐसा है, तो इसकी दो वजह हो सकती है. पहली यह कि जिन नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, उनमें से अधिकांश नेता भाजपा में शामिल हो गये. इससे दोहरा चेहरा बनता है. एक तरफ भ्रष्टाचार का विरोध और दूसरी तरफ भ्रष्टाचार के आरोपी को गले लगाना. दूसरी वजह जांच एजेंसियां. जांच एजेंसियां कार्रवाई तो शुरू करती है बहुत तेजी से. लेकिन वक्त के साथ या तो सुस्त पड़ जाती है या बहुत कम मामलों में अदालत में आरोपों को साबित कर पाती है. वजह चाहे जो भी हो. आम जनता को यही समझ बनती है कि सब राजनीति ही है.
डंका बज रहा है या नहीं, मतलब नहीं
सर्वे के तथ्य यह भी बताते हैं कि विदेशों में भारत का डंका बज रहा है या नहीं. छवि खराब या बेहतर हुई है. हम विश्वगुरू बन गये हैं या मूर्ख. इन बातों से आम लोगों को कोई मतलब नहीं है. सिर्फ दो प्रतिशत लोग इस बारे में बात करते हैं. महंगाई और बेरोजगारी ने उनकी हालात इतनी खराब कर दी है कि उनके लिए विकास भी अब कोई मुद्दा नहीं रहा. उन्हें सबसे पहले रोजगार चाहिए, महंगाई से मुक्ति चाहिए. उसके बाद विकास चाहिए. सर्वे के मुताबिक, सिर्फ 13 प्रतिशत लोगों के लिए विकास कोई मुद्दा है.
महंगाई बढ़ी, खर्च निकालना मुश्किल
सर्वे में यह तथ्य भी सामने आया है कि देश के दो तिहाई लोग मानते हैं कि पिछले 5 सालों में महंगाई में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. संपन्न लोगों पर तो इस महंगाई का कोई असर नहीं पड़ा है, लेकिन ग्रामीण व शहरी इलाकों के मिडिल क्लास व गरीब लोगों को लिए यह जानलेवा है. इसके लिए ज्यादातर लोग केंद्र सरकार को जिम्मेदार मानते हैं. 50 प्रतिशत लोग मानते हैं कि जितनी कमाई होती है, उससे घर का खर्च चलाने में दिक्कत हो रही है और वह भविष्य के लिए कुछ भी बचत नहीं कर पा रहे हैं.
मुद्दा |
लोगों का प्रतिशत |
बेरोजगारी |
27 |
महंगाई |
23 |
विकास |
13 |
भ्रष्टाचार |
08 |
राम मंदिर |
08 |
हिंदुत्व |
02 |
विदेश में पहचान |
02 |
आरक्षण |
02 |
अन्य मुद्दे |
09 |
नहीं जानते |
06 |
पांच बड़े सवाल
- – क्या सच में देश की जनता हिन्दु-मुसलमान व राम मंदिर उब चुकी है?
- – क्या सच में देश के सामने अब सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी व महंगाई है?
- – क्या पीएम मोदी और भाजपा गलत पीच पर खेल रहे हैं ?
- – ऐसा तो नहीं यह सर्वे विपक्षी दलों को गलत मुद्दा पकड़ा रहा है ?
- – क्या सच में देश के लोगों के लिए भ्रष्टाचार और विकास कोई मुद्दा नहीं है ?
सर्वे के अन्य तथ्य
- – मुस्लिम, दलित और आदिवासी समुदाय के 62 प्रतिशत लोगों को नौकरी खोजने में दिक्कत हो रही है.
- – ग्रामीण और शहरी इलाके के 62 प्रतिशत लोग मानते हैं कि पांच साल में नौकरी पाने के हालात खराब हुए हैं.
- – देश के 59 प्रतिशत महिलाएं मानती हैं कि पिछले पांच सालों में नौकरी पाना और ज्यादा मुश्किल हुआ है.
- – देश के सिर्फ 12 प्रतिशत लोगों को लगता है कि पांच सालों में नौकरी पाना पहले से आसान हो गया है.
- – उंची जाति के 17 प्रतिशत हिन्दुओं को लगता है कि नौकरी पाना पहले से आसान हुआ है.
- – 57 प्रतिशत हिन्दुओं को लगता है कि पिछले पांच सालों में नौकरी ढ़ूढना मुश्किल हुआ है.
- – सिर्फ 22 प्रतिशत लोग मानते हैं कि जो कमाते हैं, उससे जरुरी खर्चे करने के बाद से कुछ बचा सकते हैं.
नौकरी को लेकर किसमें कितनी चिंता
वर्ग |
लोगों का प्रतिशत |
पिछड़ा वर्ग |
63 |
अनुसूचित जाति |
63 |
अनुसूचित जनजाति |
59 |
मुसलमान |
67 |
हिंदू |
57 |
71 प्रतिशत मानते हैं महंगाई बढ़ी
गरीब |
76 प्रतिशत |
मुसलमान |
76 प्रतिशत |
एससी-एसटी |
75 प्रतिशत |
नौकरी नहीं मिलने के दोषी कौन
केंद्र सरकार |
21 प्रतिशत |
राज्य सरकार |
17 प्रतिशत |
दोनों सरकारें |
57 प्रतिशत |
महंगाई बढ़ने के दोषी कौन
केंद्र सरकार |
26 प्रतिशत |
राज्य सरकार |
12 प्रतिशत |
दोनों सरकारें |
56 प्रतिशत |
बढ़ा है भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार बढ़ा है |
55 प्रतिशत |
केंद्र सरकार दोषी |
25 प्रतिशत |
राज्य सरकारें दोषी |
16 प्रतिशत |
दोनों सरकारें दोषी |
56 प्रतिशत |
वर्किंग एज ग्रुप के 83 प्रतिशत लोग बेरोजगार, अधिकांश के पास योग्यता नहीं
वर्किंग एज ग्रुप यानी 15 साल से अधिक उम्र के महिला-पुरुषों में 83 प्रतिशत लोग बेरोजगार हैं. देश के 111 करोड़ वर्किंग एज ग्रुप के महिला-पुरुषों में 69.50 करोड़ बेरोजगार हैं. उन्हें जॉब (नौकरी) नहीं मिलता. सवाल यह है कि क्या हम इसी स्थिति में पहुंच रहे हैं या सब ठीक ठाक है. आईएलओ (इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाईजेशन के यह आंकड़े वह भयावह हालात की तरफ इशारा कर रहे हैं.
वर्किंग एज ग्रुप के अधिकांश लोग काम करने की योग्यता नहीं रखते. उनकी शिक्षा सही ढ़ंग से नहीं हुई. उन्होंने कोई स्किल नहीं सीखा और काम सीखना व ठीक से करना नहीं चाहते हैं. बात शिक्षा की करें, तो 111 करोड़ वर्किंग एज ग्रुप के लोगों में 20 प्रतिशत छठी पास भी नहीं है. 38 प्रतिशत लोग 10वीं या 12वीं पास हैं और 12 प्रतिशत लोग स्नातक हैं. युवाओं की इस स्थिति के लिए हमारी सरकारें जिम्मेदार हैं. सरकारें सिर्फ पांच साल में वोट मांगने आती है, आम लोगों के लिए कुछ करती नहीं. लोकलुभावन योजनाओं की बारिश है. गारंटियों का दौड़ है, लेकिन स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं. लाखों सरकारी पद रिक्त पड़े हैं. बहरहाल, कोई नहीं जानता यह वर्किंग ग्रुप कब विस्फोट कर जाएं. हाल में परचा लीक की घटनाओं के बाद युवाओं का गुस्सा देखने को मिला है. अगर जल्द ही हम सब ठीक है, विश्व गुरु, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और धर्म की राजनीति के बड़बोलेपन से बाहर नहीं निकलें, तो इसे विस्फोट करने से कोई नहीं रोक सकता.
सीएमईआई के अनुसार
- – देश की कुल जनसंख्या- 140 करोड़
- – वर्किंग एज ग्रुप की संख्या – 111 करोड़
- – 111 करोड़ में से 92.2 प्रतिशत महिलाएं बेरोजगार हैं – करीब 51 करोड़
- – 111 करोड़ में से 33.6 प्रतिशत पुरुष बेरोजगार हैं – करीब 18.50 करोड़
- – अलग-अलग कामों में लगे परुषों की संख्या – करीब 40 करोड़
- – अलग-अलग कामों में लगे महिलाओं की संख्या – करीब चार करोड़
कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक रोजगार
- – दुनिया – 26 प्रतिशत
- – भारत – 44 प्रतिशत
- – चीन – 24 प्रतिशत
- – बंग्लादेश – 37 प्रतिशत
देश में नौकरी की स्थिति
- – केंद्र सरकार के संस्थानों में स्वीकृत पदों की संख्या – 39.77 लाख
- – केंद्र सरकार के संस्थानों में खाली पदों की संख्या – 9.64 लाख
- – सिर्फ रेलवे में खाली पदों की संख्या – 2.50 लाख
- – देश भर के विद्यालयों में शिक्षकों के कुल रिक्त पद – 8.40 लाख
- – कक्षा एक से सात के लिए शिक्षकों के रिक्त पद – 7.00 लाख
- – कक्षा आठ से 10 के लिए शिक्षकों के रिक्त पद – 1.20 लाख
- – मनरेगा में काम करने वाले रजिस्टर्ड मजदूरों की संख्या – 44 करोड़
- – मनरेगा में काम करने वाले एक्टिव मजदूरों की संख्या – 13 करोड़