Ranchi: शहर के कई सामाजिक- सांस्कृतिक संगठनों और समाजकर्मियों ने जिला प्रशासन के मोरहाबादी में धारा 144 लगाने के फैसले की आलोचना की है. खास कर तीस जनवरी के गांधी शहादत दिवस के मद्देनजर इसे वापस लेने या सुधार की मांग भी की है.
इसे लेकर विज्ञप्ति जारी कर कहा गया है कि इस फैसले पर अमल का मतलब यह होगा कि रविवार को रांची में शहादत दिवस का आयोजन भी नहीं होगा! बता दें कि उसी मैदान में महात्मा गांधी की विशाल प्रतिमा है, जहां महामहिम राज्यपाल और मुख्यमंत्री सहित, गांधी को अपना आदर्श मानने वाले (और उनके प्रति श्रद्धा का दिखावा करने वाले भी) दो अक्टूबर और तीस जनवरी को बड़ी संख्या में जुटते हैं. 26 जनवरी और 15 अगस्त को भी वहां गांधी के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करने, उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने वालों की भीड़ जुटती है.
बेशक प्रशासन ने यह एहतियाती कदम कुछ दिन पहले उस क्षेत्र में हुई गोलीबारी और एक कथित गैंगस्टर की हत्या के कारण उठाया है. फैसले का यही कारण बताया भी गया है.फिर भी 28 जनवरी को यह निर्णय करते हुए इतना ध्यान रखना चाहिए था कि दो दिन बाद ही तीस जनवरी है.
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वैसे भी धारा 44 लगाने, यानी चार से अधिक लोगों को एक साथ जमा होने पर पाबंदी लगाने से कार या बाइक पर सवार दो तीन तमंचाधारी बदमाशों को गोली चलाने से कैसे रोका जा सकता है, यह भी समझ से परे है. मोरहाबादी या झारखंड में कहीं भी अपराधियों का बेखौफ होना पुलिस प्रशासन की विफलता का भी प्रमाण है. इस पर नियंत्रण के उपाय करने की जरूरत है. मगर जहां अपराध की घटना घटी, उस पूरे इलाके में 144 लगाना शायद ही कारगर हो.
इस फैसले से एक सवाल सहज ही जेहन में आता है कि क्या झारखंड में सचमुच गांधी को मानने वालों की सरकार है? है, तो क्या मुख्यमंत्री, इस सरकार में शामिल कांग्रेस और उसके मंत्रियों को एहसास है कि जिला प्रशासन के इस निर्णय से उनकी कैसी छवि बन सकती है?
सामाजिक संगठनों ने कहा, हम प्रशासन और सरकार का ध्यान इस बात की ओर भी दिलाना चाहते हैं कि इस बार यह आयोजन इसलिए भी खास हो गया है, क्योंकि गांधी से नफ़रत करने वाली ताकतें गांधी की हत्या को जायज ठहराने की मुहिम चला रही हैं. गांधी के हत्यारे गोडसे को महिमा मंडन करने का अभियान चल रहा है.
अब भी समय है. जिला प्रशासन पुनर्विचार करे. इस फ़ैसले को वापस ले; या कम से कम तीस जनवरी को उस मैदान में आयोजन की छूट दे. यह राज्य सरकार की छवि के लिहाज से भी बेहतर होगा कि वह इस मामले में संज्ञान लेकर उचित फैसला ले.
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इन सामाजिक कार्यकर्ताओं,बुद्धिजीवियों, पत्रकारों ने जतायी सहमति
चंद्रभूषण चौधरी (समाजवादी जन परिषद), मधुकर (पत्रकार), यशोनाथ झा (पत्रकार), कुमुद (समाजकर्मी), डॉ करुणा झा, किसलय (पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता), मेघनाद (फिल्मकार, समाजकर्मी), अशोक वर्मा, बलराम एवं अफजल अनीस, (सोशल एक्टिविस्ट), एमजेड खान (सचिव, जनवादी लेखक संघ, जलेस), रणेंद्र (प्रगतिशील लेखक संघ), विनोद कुमार (पत्रकार-लेखक), श्रीनिवास (समाजकर्मी) इनके अलावा कई सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं बुद्धिजीवियों ने इस बयान पर अपनी सहमति जतायी है.