Saraikela : वैश्विक महामारी कोरोना ने सभी वर्ग पर व्यपाक असर दिखाया है. सरायकेला विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य के कलाकार भी कोरोना के कहर से कला से दूर हो गए हैं और परिवार का जीविकोपार्जन करने के लिए कोई मजदूरी तो कोई रसोईया का काम कर रहा है. इसी में एक कलाकार कामेश्वर भोल हैं जो परिवार का भरण पोषण के लिए रसोईया का काम कर रहे हैं. पद्मश्री गुरु केदारनाथ साहू के सानिध्य में छऊ का ककहरा सीखने वाले कामेश्वर ने सरायकेला छऊ के प्रथम पद्मश्री शुधेंद्र नरायण सिंहदेव के सहयोगी महिला कलाकार के रूप में नृत्य करते थे. कहा जाता है कि कामेश्वर के बिना शुधेंद्र नरायण सिंहदेव नृत्य करने से मना कर देते थे. कामेश्वर की उन्नत नृत्य शैली ने देश ही नहीं विदेशों में भी छऊ को अलग पहचान दी है. इसके बावजूद कामेश्वर आज रोसईया का काम कर अपना और परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं.
सात देशों के अलावे देश के एक दर्जन शहरों में प्रस्तुत कर चुके हैं छऊ नृत्य
उम्र के 64 बसंत पार कर चुके कलाकार कामेश्वर भोल सरकारी सुविधाओं से वंचित हैं. महज 16 वर्ष की किशोरावस्था में पद्मश्री गुरु केदार नाथ साहू से छऊ का ककहरा सीखा था. इसके बाद उन्होंने सरायकेला छऊ के प्रथम पद्मश्री अवार्डी शुधेंद्र नरायण सिंहदेव (शानलाल) के साथ सहयोगी फीमेल कलाकार के रूप में नृत्य प्रस्तुत करते थे. वे नाट्यशेखर वनबिहारी पट्टनायक के साथ नृत्य कर चुके हैं. कलाकार कामेश्वर रूस, पानामा, इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी, इटली सहित देश के दिल्ली, हरियाणा, कोलकाता, मुंबई, बेंगलुरू सहित कई शहरों में सरायकेला छऊ नृत्य प्रस्तुत करते हुए कई अवार्ड जीते हैं. आज भी ये अपने घर में अवार्ड सहेज कर रखे हुए हैं. उन्होंने बताया कि पद्मश्री शुधेंद्र नरायण सिंहदेव के साथ रात्रि, नाविक व चंद्रभागा में फीमेल का रोल अदा करते थे. बताते हैं कि बगैर कामेश्वर के स्व. सिंहदेव नृत्य नहीं करते थे.
वृद्धा पेंशन तक नहीं मिलता
कलाकार कामेश्वर भोल ने बताया कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छऊ का परचम लहराने के बावजूद सरकारी सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं मिलता है. कोरोना काल से पूर्व वृद्धा पेंशन के लिए आवेदन दिया था. परंतु अब तक वृद्धा पेंशन का आवेदन भी स्वीकृत नहीं हुआ है, जिसके कारण परिवार चलाने में काफी परेशानी हो रही है. परिवार में तीन बेटा व एक बेटी है. कोरोना काल में पेट भरने के लिए रसोईया का काम करना पड़ रहा है.