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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर बहुत कुछ कहा सुना जाएगा. यह बात अलहदा है, कि उनकी अनकही दास्तान पुरुषों की अपेक्षा कम कही जाती है. लेकिन एक महिला रोज कई तरह के संघर्ष करती है. जिसकी कल्पना हम नहीं कर सकते. वैसे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की एक अलग महत्ता है.
जन्म से नारी कोई महिला नहीं होती है. वह महिला बनती है. पितृसत्तात्मक समाज के लिए यह एक नया विमर्श है. अब तो महिला सभी कामों में पुरुषों के बराबर की भागीदार है. ऐसे ही एक लड़की से बहू बनी महिला की दास्तान है. रामगढ़ जिले में अपने पिता के घर लाड़ दुलार से पली-बढ़ी सरोज कुमारी इंटर पास है. 2003 में उसकी शादी गोमिया प्रखंड के सुदूरवर्ती महुआटांड गांव में हुई.
संघर्ष का रास्ता चुना
उन्होंने शादी के पहले ढेरों सपने संजो रखे थे. जब वह एक किसान परिवार में बहु बनकर आई तो यहां एक अलग चुनौती मिली. पूरा ग्रामीण परिवेश था. गांव में बिजली भी नहीं थी. सरोज कुमारी से सरोज देवी बनी महिला ने हिम्मत नहीं हारी और विपरीत परिस्थिति में भी हुनर और काबिलियत के दम पर एक नई इबारत के लिए संघर्ष का रास्ता अख्तियार किया.
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वह बताती है कि उनके पति कृषि कार्य के अलावा एक कपड़ा दुकान में काम करते थे. पति की मेहनत से जितनी कमाई होती थी उससे जिंदगी बहुत अच्छी नहीं चल रही थी. तब वह पिता के घर पर सिलाई बुनाई का जो काम सीखी थी उसे असल जिंदगी में करना शुरू कर दिया. गांव की ही लड़कियों को सिलाई और बुनाई का काम सिखाने लगी. इसी बीच मनरेगा योजना के तहत उनके पति को एक कुआं मिला. जिससे अपने घर पर ही खेती का काम भी शुरू कर दिया.
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महिलाओं को प्रशिक्षण दी
फिर JSLPS में कृषक मित्र के लिए वह चुनी गई. उन्होंने महिला स्वयं सहायता ग्रुप बनाया. महिलाओं को श्री विधि की तकनीक से खेती करने का प्रशिक्षण देने लगी. इसके अलावा वह JSLPS में ही बीआरपी (ब्लॉक रिसोर्स पर्सन) के रूप में स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने का काम करने लगी. संकुल स्तर पर दीदीबाड़ी योजना के लिए भी ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही है. बिरसा हरित ग्राम योजना में आम बागवानी के लिए सखी के रूप में चयनित कर ली गई.
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मेहनत से परहेज नहीं
इस योजना के तहत उसे एक 100 दिन का काम मिल गया है. उसके पति मनरेगा कुआं मिलने के बाद खेत में सब्जियों का उत्पादन कर स्थानीय बाजार में बेचते हैं. उनके दो बच्चे हैं. एक बच्चा मौजूदा समय में डीएवी पब्लिक स्कूल ललपनिया में पढ़ रहा है. वह कहती है कि मेहनत करने से परहेज नहीं करना चाहिए. सफलता अवश्य मिलती है. इस संबंध में गोमिया के बीपीओ राकेश कुमार कहते हैं कि दोनों पति पत्नी काफी मेहनती हैं. अन्य परिवार को भी इनसे प्रेरणा लेने की जरूरत है.
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