Faisal Anurag
अमेरिकन ड्रीम का आकर्षण बेहतर जीवन और अन्वेषण की ललक रखने वालों को अपनी ओर खींचता रहा है. पहले विश्वयुद्ध की भयावहता अंधरे के बीच इस सपने ने रोशनी पैदा किया था. अमेरिकी जीवन के लोकाचार में यह स्वप्न एकाकार होता गया है. इसके मूल में है : लोकतंत्र, स्वतंत्रता, अवसर और समानता के मूल्य. स्वतंत्रता में समृद्धि और सफलता का अवसर. हर एक के लिए सामाजिक गतिशीलता. यह वह अवसर है, जिसमें किसी भी तरह के भेदभाव की जगह नहीं है.
अमेरिकन ड्रीम वह धारणा है जिसमें कोई भी, चाहे वे कहीं पैदा हुए हों या किस वर्ग में पैदा हुए हों. उन्हें सफलता के लिए तमाम तरह के अवसर जहाँ हर किसी के लिए ऊर्ध्वगामी गतिशीलता संभव है. अमेरिकन ड्रीम बलिदान, जोखिम लेने और कड़ी मेहनत के माध्यम से प्राप्त किया जाता है.
पिछले चार सालों से अमेरिकन फर्स्ट की डोनाल्ड ट्रंप की आंधी में इस विचार को इतिहास में दफन कर दिया गया था. जो बाइडेन और कमला हैरिस की जीत ने एशिया,अफ्रिका, लातिनी दक्षिण अमेरिका और यूरोप के लोगों के लिए फिर से इस सपने को पुनर्जीवित कर दिया है. अमेरिकन फर्स्ट की नीति ने अमेरिका में प्रवास करने,नागरिकता हासिल करने और नौकरी की समानता के अवसर को ठेस पहुंचाया था.
2020 के राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटों ने इस सपने के विचार को फिर से चमक प्रदान किया. अब यह उम्मीद की जा रही है कि अमेरिका में प्रवास करने और नागरिकता हासिल करने के अवसर बढ़ेंगे. खासकर भारत और एशिया के अन्य देशों के अमेरिकी मूल के वोटरों की अपेक्षा यही है. ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका न केवल बेहतर जिंदगी की तलाश के रास्ते बंद किये गये. बल्कि नस्लीय वर्चस्व का बोलबाला रहा है. जाते-जाते दिये गये बयान में ट्रंप ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने वही किया है जो कि उनके वोटरों ने करने के लिए उन्हें अवसर दिया था. यानी अमेरिका में एक प्रभावी रूझान के रूप में वर्चस्व की अवधारणा मजबूत हुई है, जो ब्लैक विरोधी और प्रवासन नीति के खिलाफ है.
बाइडेन हैरिस की सबसे बडी चुनौती भी यही है. खासकर उन भारतीयों के लिए, जो अमेरिका पहुंचकर अपने सपने को साकार करना चाहते हैं. 2020 के चुनाव में अमेरिकन भारतीय के लिए यह बड़ा मुद्दा रहा है. एक सर्वेक्षण के अनुसार, 52 प्रतिशत अमेरिकी भारतीय डेमोक्रेट समर्थक हैं. पिछले 20 सालों में अमेरिका में भारीतय मूल के लोगों की संख्या में 300 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गयी है.
एच 1 बी बीजा का सवाल बेहद संजीदा और अहम हैं. बाइडेन ने हालांकि ट्रंप की अनेक नीतियों को पलट दिया है. बाइडेन का अमेरिका न केवल विश्व स्वास्थ्य संगठन का हिस्सा बना रहेगा. बल्कि वह पेरिस समझौते में वापस लौटेगा. इसके साथ जिन एशियायी देशों के लोगों की अमेरिका प्रवेश की पाबंदी थी, उसे हटा दिया गया है. बाइडेन की इन घोषणाओं के बाद एच1 बी बीजा के लिए रास्ते खोले दिए जाने की संभावना भी प्रबल हो गयी है.
हालांकि यह आसान भी साबित नहीं होगा, क्योंकि ट्रप चुनाव जरूर हार गये हैं. लेकिन अब तक इन्होंने अपनी हार स्वीकार नहीं किया है. इसका मतलब यही है कि ट्रंप के विचारों को अमेरिकनों के एक हिस्से का समर्थन प्राप्त है. जो नस्लवादी अमेरिका के सपना देखता है. जिसमें बाहर के लोगों के लिए जगह नहीं है. ट्रंप विदाई के समय यही तो कह रहे हैं.
बीबीसी के अनुसार: अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पद छोड़ने से पहले अपनी विदाई संबोधन में कहा कि हमने वही किया जो हम करने आए थे. बल्कि उससे भी ज़्यादा किया. यूट्यूब पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में उन्होंने कहा कि मैंने बेहद मुश्किल लड़ाईयां लड़ीं, क्योंकि आपने मुझे ऐसा करने के लिए चुना था.
ट्रंप के सहयोगी अब भी 2024 का सपना देख रहे हैं. यानी ट्रंप ने हार नहीं मानी है. इसका एक मतलब तो यही है कि अमेरिका के भीतर ऐसे सामाजिक बदलाव चार सालों में हुए हैं. जो हर एक के समानता के खिलाफ है. जॉर्ज फ्लायड की हत्या के बाद यह विवाद गहराया था और ब्लैक लाइव मैटर ने अमेरिका में इन नीतियों का जोरदार विरोध भी किया था. यानी समानता के संदर्भ को जीवित किया.
बाइडेन और हैरिस के लिए एक ऐसा अमेरिका मिला है, जो न केवल विश्व के स्तर पर नेतृत्व की धाक खो चुका है. बल्कि आर्थिक तौर पर भी उसकी अनेक समस्याएं हैं. उन्होंने बड़े प्रोत्साहन पैकेज का एलान कर इस दिशा में कदम उठाया है. ट्रंप के रक्षा मंत्री पोंपियों ने जाते-जाते चीन, रूस,ब्राजील और भारत के संबंधों को लेकर जो बयान दिया है. उसके भी गहरे निहितार्थ हैं. पोंपियों ने चीन में बिगर मुसलमानों के सवाल को उठाया है, जिसे बाइडेन के रक्षा मंत्री ने भी अपनी रणनीति का हिस्सा बताया है. लेकिन पोंपियों ने ब्रिक्स के चार देशों को लेकर जो टिप्पणी की है, उससे क्षेत्रीय गठबंधनों के संतुलन को लेकर चिंता पैदा हो सकती है.
पोंपियों ने कहा है कि सी और आर आई और बी के लिए घातक हैं. सी से मतलब चीन और आर से रूस है. आई इंडिया के लिए इस्तेमाल किया गया है और बी ब्राजील के लिए. ब्रिक्स भारत,चीन,ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका का एक व्यापार गठबंधन है.
ट्रंप ऐसे गठबंधनों को कभी सराहते नहीं रहे. बाइडेन के दौर में अपेक्षा की जा रही है कि वह एक नए तरह के वर्ल्ड ऑर्डर के लोकतांत्रिक साझेदार बनने की दिशा में कदम उठाएंगे. हालांकि इसकी राह आसान नहीं है.
अमेरिकन ड्रीम अपने आंतरिक मामले में चाहे जितनी समानता की वकालत करता रहा हो, दुनिया के स्तर पर उसकी छवि भिन्न रही है. अमेरिका की फांस अब भी इरान और अफगानिस्तान है. बाइडेन इन सवालों के हल के लिए क्या नयी रणनीति अपनायेंगे. यह कहना आसान नहीं है. उत्तर कोरिया की अलग चुनौती है. चीन और अमेरिका के संबंध तो खराब हैं ही.
इसलिए अगले चार सालों में अमेरिका विश्व शांति, पर्यावरण पारिस्थितिकी असंतुलन और लोकतंत्र बाइडेन हैरिस की सबसे बड़ी चुनौती है. आंतरिक फ्रंट पर ट्रंप शासन के दौर में उभरे विवादों का हल और आर्थिक विकास,सामाजिक सुरक्षा और प्रवासियों के हितों की रक्षा का सवाल अहम है, तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिकी साख की स्थापना की चुनौती है.