Gladson Dungdung
14 अगस्त 2023 को झारखंड जनाधिकार महासभा, सा-हजया मंच, आदिवासी अधिकारमंच एवं अंबेडकर विचार मंच के एक प्रतिनिधिमंडल ने झारखंड के मुख्य सचिव एवं पुलिस महानिदेशक से मिलकर राज्य में धार्मिक व सामुदायिक सद्भाव तोड़ने वाली जनसभाओं एवं सोशल मीडिया पोस्ट्स के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की है. प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी व संघ से संबंधित संगठन बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद एवं जनजाति सुरक्षा मंच से जुड़े नेता झारखंड के विभिन्न जिलों में जनसभाओं का आयोजन कर धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के विरुद्ध भड़काउ भाषण देते हैं, जिससे राज्य में तनाव की स्थिति बन रही है. प्रतिनिधि मंडल को सुनने के बाद दोनों वरिष्ठ अधिकारियों ने राज्य में धर्म एवं सम्प्रदाय के नाम पर घृणा फैलाने वालो के खिलाफ कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है. यहां प्रश्न उठता है कि क्या झारखंड को मणिपुर बनाने की तैयारी चल रही है? झारखंड अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए विख्यात है. यह सांस्कृतिक विरासत मूलतः आदिवासी जीवन दर्शन से विकसित हुई है, जिसका मूल आधार सहअस्तित्व, सामुदायिकता एवं समानता है.
लेकिन अब इस संस्कृति में सांप्रदायिकता का जहर घुल चुका है. संघ परिवार ने यहां सत्ता हथियाने के लिए लोगों को धर्म के नाम पर बांटते हुए एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास तेज कर दिया. 2024 में होने वाले लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव के मद्देनजर संघ परिवार ने फिर से नफरत की राजनीति को हवा देनी शुरू कर दी है. झारखंड के आदिवासी बहुलक्षेत्रों में इस मुहिम को ‘जनजाति सुरक्षा मंच’ के बैनर तले अंजाम देकर आदिवासियों के बीच सांप्रदायिक नफरत एवं वैमनस्य फैलाने का प्रयास हो रहा है.
इसी तरह बजरंग दल एवं विश्व हिन्दू परिषद् के बैनर तले जगह-जगह पर जनसभाओं का आयोजन कर पूरे राज्य में धार्मिक उन्माद फैलाते हुए इसे मणिपुर बनाने की कोशिश हो रही है. मणिपुर और झारखंड की भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं धार्मिक स्थिति कमोबेश एक जैसा ही है. संघ परिवार ने मणिपुर में वहां की जमीन और संवैधानिक लाभ को आधार बनाकर मैतेई लोगों को कुकी आदिवासियों के खिलाफ भड़काया, जिसका परिणाम भयावह हिंसा के रूप में सामने आया. ये दोनों समुदाय के लोग लंबे समय से साथ-साथ रहते आये थे, लेकिन सिर्फ सांप्रदायिक राजनीति की वजह से अब वे एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं. झारखंड की अंदरूनी स्थिति और भी ज्यादा भयावह है. ध्रुवीकृत सांप्रदायिक राजनीति का हिस्सा बनने के बाद राज्य के पांच प्रमुख आदिवासी समुदाय, उरांव, मुंडा, हो, खड़िया एवं संताल, धर्म के आधार पर अपने ही समुदाय के लोगों से नफरत करने के लिए कुछ समूह प्रयास कर रहे हैं. हालांकि इसके कामयाब होने की आशा नहीं है. बावजूद इसके प्रयासों के संदर्भ में सचेत और अवगत रहना चाहिए. एक बार फिर से ‘डीलिस्टिंग’ के नाम पर वोट बैंक में तब्दील करने की कोशिश हो रही है.
संघ के कुछ नेता जनसभाओं में नफरती भाषणों में कहते हैं कि ईसाई धर्मावलंबी आदिवासियों को एसटी की सूची से बेदखल कर देना चाहिए. इसी तरह ‘लिस्टिंग’, जो मणिपुर हिंसा का मूल आधार था, झारखंड के लिए भी बड़ा मुद्दा है. मणिपुर में जहां मैतेई समुदाय के लोग एसटी का दर्जा मांग रहे हैं, वहीं झारखंड में ‘कुड़मी महतो’ एसटी होने का दावा ठोंक रहे हैं. इन दोनों ओबीसी जातियों का कहना है कि ब्रिटिश हुकूमत के समय उन्हें एसटी का दर्जा प्राप्त था, हालांकि सच्चाई यह है कि ब्रिटिश हुकूमत के समय ‘एसटी’ शब्द प्रयोग में था ही नहीं. मैतेई एवं कुड़मी महतो लोग आदिवासी समुदायों की अपेक्षा सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से ज्यादा सशक्त हैं. यही वजह है कि मैतेई लोगों को एसटी का दर्जा मिलने से जहां मणिपुर के 34 आदिवासी समुदायों को उनकी जमीन, इलाका एवं संवैधानिक अधिकार छीने जाने का भय सता रहा है तो वहीं कुड़मी महतो को एसटी का दर्जा देने से झारखंड के 32 आदिवासी समुदायों का हक एवं अधिकार असुरक्षित होने की आशंका है.
झारखंड में कुड़मी महतो मूलतः भाजपा, आजसू पार्टी एवं जेएमएम के मतदाता हैं. कुड़मी महतो जेएमएम की उत्पति काल से ही पार्टी से जुड़े हुए है, जिन्हें संघ परिवार अपने पक्ष में करना चाहता है. जैसे कांग्रेस के आदिवासी मतदाताओं को धर्म के नाम पर भड़काकर उसने अपने पक्ष में किया. इस बार ध्रुवीकरण की रणनीति बहुत स्पष्ट है. झारखंड के आदिवासी बहुल क्षेत्र में ‘डीलिस्टिंग’ का मुद्दा उछलना है, कुड़मी महतो बहुल इलाके की ‘लीस्टिंग’का मुद्दा एवं बाकी क्षेत्रों में ‘सांप्रदायिकता ’ के नाम पर धार्मिक उन्माद फैलाकर भाजपा के लिए वोट बैंक सुरक्षित करना है. लेकिन क्या इस नफरत की राजनीति पर लगाम नहीं लगाना चाहिए? 28 अपैल 2023 को ‘नफरत फैलाने वाले भाषण’से संबंधित दायर रिट याचिका सं. 943/2021 ‘अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम यूनियन आफ इंडिया एवं अन्य’के मसले पर सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश देते हुए ऐसी घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज करने तथा शिकायत दर्ज कराने का इंतजार किये बिना अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है. अदालत का आदेश सभी नफरती भाषण देने वालों पर लागू होगा, चाहे वे किसी भी धर्म के हों. अदालत ने जोर देकर कहा कि राष्ट्र की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति की रक्षा की जानी चाहिए. अदालत ने ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए, 153बी, 505 एवं 295ए के तहत कार्रवाई करने को कहा है. अफसोस की बात यह है कि झारखंड में ‘घर्म एवं सम्प्रदाय’को लेकर खुल्लेआम नफरत फैलाने वालों के खिलाफ अबतक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. इसलिए समय रहते झारखंड सरकर को सचेत होकर ऐसे मामले में त्वरित कार्रवाई करने हेतु राज्य के प्रत्येक थाना को दिशा निर्देश जारी करना चाहिए, ताकि झारखंड को मणिपुर बनने से रोका जा सकेगा.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.