Jadugoda : आजादी के पहले ब्रिटिश द्वारा जादूगोड़ा थाना क्षेत्र के बोड़ामडेरा गांव में राखा कॉपर माइंस के पीछे संचालित की जाने वाली खदान का अस्तित्व मिटने के कगार पर है. चिमनी और सुरंग के रूप में इसके अवशेष मात्र हैं. अंग्रेजों के जमाने में यह क्षेत्र सोना खदान (गोल्ड) के लिए प्रसिद्ध था. खदान से निकले सोने को परिष्कृत करने के लिए यहां चिमनी युक्त मशीनें लगाई गई थीं. लेकिन कालांतर में सरकार के उदासीन रवैये के कारण खदान के रख-रखाव पर ध्यान नहीं दिया गया. अगर यह खदान फिर से खुले तो स्थानीय लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिल सकता है. इससे इनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी. उल्लेखनीय है कि पूर्वी सिंहभूम जिले में अंग्रेजों के जमाने की कई चीजें आज भी उपलब्ध हैं. जादूगोड़ा थाना क्षेत्र के राखा स्थित हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) भी अंग्रेजों की ही खोज है. इस कॉपर माइंस को भारत सरकार द्वारा संचालित किया जा रहा है.
सोना के लिए खोली गई थी खदान
ग्रामीण के अनुसार उनके दादा-परदादा बताते थे कि राखा कॉपर माइंस के पीछे अंग्रेजों ने दोनों पहाड़ों के बीच एक माइंस खोली थी, जहां सोना मिलता था. ठीक माइंस के सामने एक चिमनी बनाई गई थी, जहां सोने को पिघलाया जाता था. इसके बाद उस सोने को अंग्रेज अपने देश भेजते थे. परंतु आजादी के साथ यह खदान भी बंद हो गई. अंग्रेज देश छोड़ते वक्त खदान को सील कर चल गए थे. हालांकि यहां चिमनी और कुछ घरें आज भी मौजूद हैं. जिस गड्ढे से सोना निकलता था, वहां सालों भर पानी भरा रहता है. गांव के चरवाहों का कहना है कि पहले उस तरफ मवेशी चराने जाते थे, लेकिन गड्ढे में कई जानवर गिर जाते थे. इससे उनकी मौत हो जाती थी. इसके बाद चिमनी की ओर जाना छोड़ दिए.
खदान में ग्रामीण करते थे काम
गांव के माझिया बास्के (58), नंदलाल महापात्र (60) और गुरबा माझी (60) बताते हैं कि वर्षों पहले इस माइंस में उनके परिवार के लोग काम करते थे. तब यहां सोना पाए जाने की बात कही जाती थी. माइंस में आसपास के कई लोगों को रोजगार मिल जाता था। यदि यह माइंस दोबारा खुल जाती तो क्षेत्र का विकास होता.
बूढ़ी खदान के नाम से जानी जाती था माइंस
बूढ़ी खदान सुनने में अजीब सा लगता है, परंतु इस नाम के पीछे का अर्थ है कि यहां के आदिवासी भाषा में गांव के बच्चों और बुजुर्ग महिलाओं को प्यार से बूढ़ी बुलाया जाता है और इस खदान में उस समय केवल महिलाओं को ही काम करने की इजाजत थी. इसलिए इस खदान का नाम बूढ़ी खदान पड़ा था.