Jamshedpur : गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू का 117 वां जन्मदिन सोमवार को दिशोम जाहेर करनडीह में धुमधाम से मनाया गया. इस अवसर पर जाहेर थान कमिटी के अध्यक्ष सीआर माझी सहित अन्य ने गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू के चित्र पर माल्यार्पण कर तथा दीप प्रज्वालित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए सीआर माझी ने कहा कि आज ही के दिन दो महान आत्माओं का इस धरती पर जन्म हुआ था. एक थे भगवान बुद्ध और दुसरा पंडित रघुनाथ मुर्मू जिन्होंने आदिवासी समाज के लिए ओल चिकि लिपि का आविष्कार किया. उनको बचपन से ही इस बात की कमी महसूस हुई की शिक्षा के बिना समाज का उत्थान संभव नहीं है. इसलिए अपनी मातृभाषा में पढ़ाई हो इसके लिए उन्होंने लिपि बनाने पर जोर दिया. गुरु गोमके ने कहा था कि जिस जाति की अपनी भाषा, लिपि अथवा कोई धर्म नहीं होगा वैसे जातियों का इस धरती पर कोई अस्तित्व ही नहीं रहेगा. गुरु गोमके ने संताली भाषा (ओलचिकी) में कई किताबें लिखी है.
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उनमें से खेरवाड़ बीर, बिदु चंदान, दाड़े गे धोन, रोनोड़, ओल चेमेद, पारसी पोहा, हितल, होड़ सेरेञ,लाकचार सेरेञ आदि प्रमुख है. श्रद्धांजलि समारोह में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया. जिसमें 45 लोगों ने स्वैच्छिक रुप से रक्तदान किया. कार्यक्रम में गणेश टुडु, कुशाल हांसदा, जोबा मुर्मू आदि ने अपने विचार व्यक्त किया. वीर प्रताप मुर्मू ने कार्यक्रम का संचालन किया. सभा को सफल बनाने के रवीन्द्र नाथ मुर्मू, बुढान माझी, दीपक हांसदा, सुशील, मिर्जा मुर्मू, कुशा सोरेन, कमल लोचन मार्डी, घासीराम सोरेन, समरेंद्र मार्डी, पिताम्बर माझी आदि का योगदान रहा.