Jamshedpur (Ratan Singh) : सीतारामडेरा चौक में सोमवार को एक कार्यक्रम आयोजित कर बिरसा सेना के सदस्यों में खरसावां गोलीकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि दी. इसकी अध्यक्षता बिरसा सेना के केंद्रीय अध्यक्ष दिनकर कच्छप ने किया. उन्होंने खरसावां गोलीकांड के इतिहास के बारे में मौजूद लोगों को जानकारी दी. बताया कि भारत की आजादी के करीब पांच महीने बाद जब देश एक जनवरी, 1948 को आजादी के साथ-साथ नए साल का जश्न मना रहा था तब खरसावां ‘आजाद भारत के जलियांवाला बाग कांड’ का गवाह बन रहा था. उस दिन साप्ताहिक हाट का दिन था. ओडिशा सरकार ने पूरे इलाके को पुलिस छावनी में बदल दिया था. खरसावां हाट में जुटे करीब पचास हजार आदिवासियों की भीड़ पर ओडिशा मिलिट्री पुलिस गोली चला दी थी.
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जयपाल सिंह मुंडा ने विलय का किया था विरोध
इस गोलीकांड का प्रमुख कारण था खरसावां के उड़ीसा राज्य में विलय का विरोध था. “आदिवासी और झारखंड (तब बिहार) में रहने वाले समूह भी इस विलय के विरोध में थे. मगर केंद्र के दवाब में सरायकेला के साथ ही खरसावां रियासत का भी ओडिशा में विलय का समझौता हो चुका था. 1 जनवरी, 1948 को यह समझौता लागू होना था. तब मरांग गोमके के नाम से जाने जाने वाले आदिवासियों के सबसे बड़े नेताओं में से एक और ओलंपिक हॉकी टीम के पूर्व कप्तान जयपाल सिंह मुंडा ने इसका विरोध करते हुए आदिवासियों से खरसावां पहुंचकर विलय का विरोध करने का आह्वान किया था. इसी आह्वान पर हजारों आदिवासियों की भीड़ पारंपरिक हथियारों के साथ खरसावां में इकठ्ठा हुई थी. इसी भीड़ पर फायरिंग की गई थी. यहां आजाद भारत का सबसे बड़ा नरसंहार आदिवासियों का हुआ था. मौके पर मौजूद सेना के सदस्यों ने शहीदों को श्रद्धांजलि दी एवं नारे लगाए. मौके पर बिरसा सेना के संस्थापक बलराम कर्मकार, सुनील सोरेन, सवान लुगून, रोहित बानरा, दामोदर बानरा, अनिकेत मुण्डा, हरिस हेम्ब्रम, दुर्गा सांडील, बिकास तिर्की, देवेंदर सिंह भूमिज, मंगल सोय, राजु सामड आदि उपस्थित थे.