Jamshedpur (Raj Laxmi) : समय के साथ झोले में राखियों की संख्या जरूर कम हुई है लेकिन पाने वाले के चेहरे पर खुशी की वही झलक 43 सालों से देखने को मिल रही है. यह कहना है उदय कुमार भुईयां का जो पिछले 43 सालों से रक्षा बंधन पर राखियां पहुंचाते आ रहे हैं. उदय 1981 से बिस्टुपुर पोस्ट ऑफिस में डाकिए के तौर पर अपनी सेवा दे रहे हैं. वह कहते हैं हम डाकियों की जिम्मेदारी ही सभी चिट्ठयों को सही सलामत पहुंचाना होता है. लेकिन राखी को लेकर हमारा काम और उत्साह दोनों ही दोगुना हो जाता है. आज भी अपने भाई से दूर रह रही बहन डाक से रक्षा बंधन के वक्त राखी भेजती है.
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50 प्रतिशत घटी राखियों की संख्या, छोटा हो गया राखी का पैकेट
उदय कुमार भुईयां कहते हैं, हालांकि इतने सालों में राखियों की संख्या जरूर कम हुई है. लेकिन इसे पाने वाले के चेहरे पर वही चमक अब भी बरकरार है. अब डाक से राखियों के भिजवाने का चलन 50 प्रतिशत तक घट गया है. लोग तरह तरह के कुरियर सर्विस से भी राखी भिजवाने लगे हैं. राखी के पैकेट के साइज में भी बदलाव आया है. पहले बड़े पैकेट में बहनें राखी भेजती थीं. लेकिन आज पैकेट छोटा हो गया है. राखियों का आकार वक्त के साथ घट गया है. अब बहुत कम राखियों के साथ तोहफा भेजा जा रहा है. सबकी जगह ऑनलाइन बाजार ने ले लिया है. लेकिन अब भी राखी के वक्त डाकिए का इंतजार जारी है.
मैंने लोगों को राखी पाने के बाद खुश होते देखा है: महेंद्र कुमार
वहीं, एक अन्य डाकिया महेंद्र कुमार कहते हैं कि अपने काम को साल भर करते हुए इतनी खुशी नहीं होती जितनी खुशी राखी के वक्त होती है. हम हर साल अपने फर्ज के साथ लोगों को प्यार भी पहुंचाने का काम करते हैं. अभी संडे के दिन भी हमने काम किया था. कल मुर्हरम की छुट्टी थी लेकिन फिर भी हमने राखियां पहुंचाई. आज डाक विभाग में यूनियन की तरफ से हड़ताल है लेकिन फिर भी कुछ डाकिए राखी पहुंचाने का काम पूरा कर ही रहे हैं. तो ये ऐसा वक्त है जब हम छुट्टी से आगे बढ़ कर लोगों की भावना को देखते हुए काम करते हैं. यकीनन राखी की संख्या में कमी जरूर आई है लेकिन मैंने लोगों को राखी पाने के बाद खुश होते देखा है. अब भी लोगों को राखी के वक्त हमारा इंतजार वैसे ही रहता है जैसे 10 साल पहले रहता था. ऑनलाइन के इस चलन ने राखियों की संख्या जरूर कम की है लेकिन हमारी भूमिका वर्षों से वैसी ही बनी हुई है.
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